अनुनाद

फिलीस्तीनी-अमरीकी कवि सुहीर हम्माद की कविता – तीसरी किस्त / चयन, अनुवाद तथा प्रस्तुति : यादवेंद्र

क्या करूंगी मैं
(अरब देशों को युद्ध की आग में झोंकते अमरीकी प्रशासन को सम्बोधित)

मैं थिरकूंगी नहीं तुम्हारी रणभेरी पर
मैं अपनी अंतरात्मा भी नहीं करूंगी तुम्हारे हवाले
न ही समर्पित करूंगी अपनी अस्थियां
तुम्हारे युद्धोन्मादी उद्घोष के लिए

मैं थिरकूंगी नहीं तुम्हारी थाप पर
मुझे मालूम है प्राणहीन है यह थाप
मैं अच्छी तरह जानती हूं जिस चमड़ी पर तुम दे रहे हो थाप
कल थे उसमें प्राण
तुमने किया उसका वध
चुरा लाए जंगल से
और खींचकर चढ़ा दिया नगाड़े पर

मैं तुम्हारी उन्मादी युद्धधुन पर तो बिलकुल नहीं थिरकूंगी
घूम-घूमकर जोशीले उद्घोष भी नहीं करूंगी
न ही तुम्हारे लिए करूंगी संहार
और खास तौर पर मैं जान तो न्यौछावर करने से रही तुम पर
मैं स्यापा भी नहीं करूंगी मृतकों के लिए
चाहे वह वध हो या हो खुदकुशी
मैं तुम्हारे पाले में कतई नहीं बैठने वाली

न ही झूमूंगी बमों के स्वागत में
महज़ इसलिए कि ऐसा ही कर रहे हैं बाक़ी सब
सब के सब हो सकते हैं गफ़लत में –
जीवन कोई तुक्का नहीं है
न ही यह है दोयम दर्ज़े का असबाब
यह तो खास हक़ है हमारा

मैं कभी नहीं भूलूंगी कि कहां जड़ें हैं मेरी
मैं बजाऊंगी तो सही पर अपना ही ढोल बजाऊंगी
अपने प्रिय को बुलाऊंगी पास
मिलकर हम बांधेंगे तान के साथ तान
जो देखते-देखते बन जाएगी नृत्य की धमक

हमारी आदमीयत ढोल की थाप पर करेगी नृत्य –
मैं कैसे नाचूं किसी और के हुक्म पर
क्यों दे दूं तुम्हें अपना नाम?

मैं नहीं साधूंगी अपनी लय तुम्हारी थापों के लिए
नाचूंगी मैं और करूंगी डटकर मुक़ाबला भी
अड़ी रहूंगी मैं और नाचूंगी भी

इस एक पल की धड़कन भी ज्यादा प्रबल है मौत से
रणभेरी से ज्यादा मुखर हैं ये सांसें !

0 thoughts on “फिलीस्तीनी-अमरीकी कवि सुहीर हम्माद की कविता – तीसरी किस्त / चयन, अनुवाद तथा प्रस्तुति : यादवेंद्र”

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिए अनुनाद जी बहुत बहुत आभार .
    कृपया मेरे ब्लॉग समयचक्र का भी निरीक्षण कर अभिव्यक्ति प्रदान करने का कष्ट करे.

  2. बहुत खूबसूरत ऒर सामयिक कविता है.आतंकवाद से लोहा लेते इस समय की आग में यह कविता प्रतिरोध का एक नया सॊन्दर्यशास्स्त्र भी गढ़ती है.

  3. निसंदेह सुन्दर तथा यथार्थपरक कविता है। लेकिन मेरा मानना है की अमेरीकी ही नही बिलायती तथा स्केंडेवीयन देश भी इस काली करतुत मे शामिल है। तो फिर दोष सिर्फ अमेरीका को हीं क्यों। और फिर अरबी आतंकवादीयो की शह पर पाकिस्तान जो दुष्टता इस क्षेत्र में करता रहा है, वह भी जेहन मे आता है ।

  4. mitr,kisi kavi ki kavita me kya aya aur kya chhut gaya…is par hamari bahas ho skti hai,par antim nirnay khud kavi ka hi hoga.main nahi jaanta ki apki is tipaani ka kavi khud kya jawab deti,par mujhe lagta hai ki america me rahne wale ek philistini(vishal falak par dekhen to arabi)vyakti ke liye duniya me yudhdhonmad ki sansriti viksit karne ke liye america ko jimmewar thahrana jaha jyada sahaj hai,wahi jyada sahaspurn bhi hai.

    yadvendra

  5. आपकी प्रस्तुति कमाल की होती है जिसका क्या कहने.आप बहुत ही मुश्किल रचनाये लाते है जिसका पृस्ट्भूमि बिल्कुल अलग होकर भी पुरी तरह से आपना सा लगता है मानो अपने अंतर्मन की अभिव्यति हो.बहुतब् खूबसुरत रचना……….

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top