आज फिर
एक दोस्त के मरने की ख़बर आयी
अंततः तो हम सभी को जाना है
मेरी बारी भी जल्द ही आएगी
वह क्या मृत्यु से पहले की पीड़ा है
जो उसे इतना डरावना बना देती है?
क्या यह तय है
कि कहीं कोई दया की मौत भी है?
लेकिन
मृत्यु बाद की चिंता भी तो एक समस्या है
उस दूसरे संसार की रौशनी और अंधेरा
जब मैं जीवन के बाद के इस रस्ते पर जागूँगा
तो यह जीवन बहुत याद आएगा
निश्चित रूप से
अगर मैं जीवन के बाद के जीवन पर यक़ीन करता हूँ
तो पहले ही उसे जीना शुरू कर चुका हूँ
या कहें की नित्य और अनंत को जीने लगा हूँ
इस आज में?
काव्यानुभूति
हर महीने इस श्रंखला के लिए
इसी तरह मैं कुछ निरर्थक बातें छांटता हूँ
और उस चीज़ में बदल देता हूँ
जिसे कविता कहते हैं
हो सकता है किसी नौजवान कवि को
यह पुरानी लगे और वो कहे कि ” इस पूरे संसार में
कहीं कुछ नहीं है -ऐसा दिखाना तो कोई कविता नहीं?”ठीक है!
“संसार में कहीं कुछ नहीं” – यह बताना निश्चित रूप से
कोई
कविता नहीं
मानवीय इतिहास की हर चीज़
हर क्रिया में
जो सच है-अच्छा है-सुंदर है,
वही सब कुछ कविता है
इसमें अच्छे लोग और विचार भी
शामिल हैं
और यह लिखा जा चुका है
कि जब पाप बढ़ते हैं तो ईश्वरीय कृपा ऐसी चीज़ों में
और भी
इज़ाफ़ा कर देती है
इस सबको खोजना
महसूस करना सुगंध की तरह
और इससे खुश होना ही
कवि होना है!
कविता
आम तौर पर
जब हम किसी से बात करते हैं
तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता
कि बोलने वाला शब्दों को कितना सजा-संवार कर
पेश कर रहा है
अगर इनके पीछे गंभीरता नहीं होगी
तो ये कभी नहीं छू पा पाएंगे
सुनने वाले के दिल को
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
कि कितने भव्य हैं किसी कविता में आने वाले प्रतीक
यदि उनमें वह वास्तविकता नहीं
जो लोगों को जगाती है
लोग कहते हैं
कि विचार और शब्द दो अलग चीज़े हैं
लेकिन हक़ीक़त यह है कि विचार और भाव
महसूस किए जाते हैं शब्दों में ही
जैसे कि कहा जाता है – “भाषा में सोचना”
जैसे कि
एक आदमी महसूस कर सकता है
सुगंध के ज़रिए उस गुलाब की भी खूबसूरती
उस पड़ोसी से भी ज़्यादा
जिसके बगीचे में वह खिला है
या जैसे
राह किनारे खर-पतवारों का कांपना
किसी और को भी प्रेरित कर सकता है
अफ़सोस के आंसू बहाने के लिए
कविता खुद पैदा होती है
जीवन में आती है
और सार्वभौमिक संवेदना और करुणा से लिखी जाती है
इसीलिए कभी भी
कविता को खोजने, पाने या लिखने की
कोशिश मत करो
संसार का एक आश्चर्य है यह भी
मत बांधों इसे
स्वामित्व या स्वार्थ की लगाम से!
अनुनाद को एक आध बार ही देख पाया हूं। जब भी देखा अच्छा लगा हॆ। संपर्क करना चाहा हॆ लेकिन ई-मेल पता नहीं हॆ। हो सके तो सूचित कीजिए। उचित समझेंगे तो रचनाएं भी भेजी जा सकती हॆं। खॆर..।
कोरिया ऒर कोरिया के साहित्य आदि के प्रति मेरी विशेष रुचि हॆ।अत: इन कविताओं को पढ़कर सुख पहुंचा हॆ। बधाई। साहित्य अकादमी ने 1999 में कोरियाई कविताओं के मेरे द्वारा किए गए अनुवादों की एक पुस्तक ’कोरियाई कविता-यात्रा’ प्रकाशित की थी जिसके लोकापर्ण समारोह में उस पर मंगलेश डबराल जी ने एक बहुत ही अच्छा लेख पढ़ा था जो बाद में प्रकाशित भी हुआ। इस पुस्तक में कवि गू सांग (Ku Sang) की भी कविता संकलित हॆ: शीर्षक हॆ-कॊवा॥ कविता यूं हॆ:
काँय काँय, काँय काँय
कहो दोस्तो
न सही ऒर कुछ,
थोड़ा अफ़सोस तो कर ही सकता हूं तुम्हारे लिए
क्योंकि मेरे पास तो हॆ
गीतों की एक अन्तहीन सूची
तुम्हें खुश करने को
हालाँकि हॆ एक ही राग मेरे पास
रच सकता हूं मॆं केवल
काँय काँय, काँय काँय।
शुभकामनाएं–दिविक रमेश