एक गाँधी अध्ययन केन्द्र के सेमिनार का निमंत्रण मिलने पर अचानक निराला की यह कविता याद आने लगी है ………..इसके लगाने के लिए फोटो की खोज की तो इंगलैंड में गाँधी जी के नाम पर खुले इस तंदूरी करी विशेषता वाले रेस्तरां की यह अद्भुत फोटो हाथ लगी !
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बापू, तुम मुर्गी खाते यदि…………तो इससे ज़्यादा क्या होता !
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि
तो क्या भजते होते तुमको
ऐरे-ग़ैरे नत्थू खैरे – ?
सर के बल खड़े हुए होते
हिंदी के इतने लेखक-कवि?
तो क्या भजते होते तुमको
ऐरे-ग़ैरे नत्थू खैरे – ?
सर के बल खड़े हुए होते
हिंदी के इतने लेखक-कवि?
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि
तो लोकमान्य से क्या तुमने
लोहा भी कभी लिया होता?
दक्खिन में हिंदी चलवाकर
लखते हिंदुस्तानी की छवि,
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि?
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि
तो क्या अवतार हुए होते
कुल के कुल कायथ बनियों के?
दुनिया के सबसे बड़े पुरुष
आदम, भेड़ों के होते भी!
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि?
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि
तो क्या पटेल, राजन, टंडन,
गोपालाचारी भी भजते- ?
भजता होता तुमको मैं औ´
मेरी प्यारी अल्लारक्खी !
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि !
***
शिरीष आप सदा के लिए असंभव हो, क्या कविता है और क्या तस्वीर [हालाँकि वो कविता के समक्ष फीकी है ]
बापू तुम मुर्गी खाते यदि ………..,कितना बड़ा व्यंग लिख दिया था निराला जी ने उस समय …..हिंदी के कवि लेखक तो अब भी सिर के बल हैं ,बापू के जाने के बाद भी .
waah!!
bahut khoob ji badhai ho .
कुछ कहने के लिये शब्द ही नही है मेरे पास!
बढिया है भई शिरीष .. बापू के नाम से मुर्गी तो अभी भी बहुत से लोग खा रहे हैं..
superb post !!!
तस्वीर ने कविता को जो अर्थवत्ता दी है उसका कोई सानी नहीं मिलेगा।
अदभूत है…..
behtarin, jawab nahin iska.
चुटीला व्यंग्य।
निराला के व्यंग्य को समझना हो तो हंसराज रहबर की पुस्तक 'तिलक से आज तक' पढ़ें।
गोखले, गांधी और उनके चेलों के पाखण्ड (यह जानते हुए भी कि इस शब्द के प्रयोग पर हो हल्ला मच सकता है, मैं लिख रहा हूँ। लेखक ने यही शब्द लिखा है) को यह कृति सप्रमाण अकाट्य तर्कों से उद्घाटित करती है।
बहुत ही उम्दा पोस्ट ! अद्भुत कोलाज़!!
महा कवि की इस मामूली सी कविता को प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया.
पता च्लता है कि महान लोग बहुत सी साधारण चीज़े लिखते रहते हैं. महान रचना तो कभी अचानक ही लिख ली जाती है.
लिखते रहने की हिम्मत आती है.
' अनुनाद ' पर शायद अब तक की सबसे अच्छी प्रस्तुति . निराला की कविता तो ख़ैर बेमिसाल और कालजयी है ही ; शिरीष जी ने जिस कलात्मक अंतर्दृष्टि से एक दुर्लभ फोटोग्राफ और उस पर अपने प्यारे-से 'कैप्शन' के साथ इसे
पेश किया है ; उसका भी कोई जवाब नहीं !
———पंकज चतुर्वेदी
कानपुर
यह रचना साधारण नहीं है; इस बात को समझने के एक बार विचार करें कि जब लोग गाँधी की स्तुति कर रहे थे वैसे दौर में यह कविता लिखी गई है। एक बात पहले ये जरूर जाने कि यह कब और क्यूँ लिखी गई।