अनुनाद

अनुनाद

वाक़या – अमीरी बराका की एक कविता


वह लौट कर आया और गोली मार दी. उसने उसे गोली मार दी. जब वह लौटा,
उसने गोली मारी, और वह गिरा, लड़खड़ाते हुए, शैडो वुड के पीछे,
नीचे, गोली लगी हुई, मरता हुआ, मृत, एकदम निश्चल.

ज़मीन पर, लथ-पथ, गोली से मारा गया. फिर वह मरा,
वहाँ गिरने के बाद, सनसनाती हुई गोली ने, फाड़ दिया उसके चेहरे को
और क़ातिल पर खून की खासी बौछार पड़ी और पड़ी धुंधली रौशनी.
मरने वाले की तस्वीरें हर तरफ हैं. और उसकी आत्मा
चूस लेती है उजाले को. मगर वह ऐसे अँधेरे में मरा जो उसकी आत्मा से भी काला था.
और जब वह मर रहा था हर चीज़ गिर पड़ी अंधाधुंध

सीढ़ियों से नीचे

कोई खबर नहीं है हमारे पास

क़ातिल के बारे में, सिवाय इसके कि वह आया, कहीं से वह करने
जो उसने किया. और ताकते हुए शिकार को सिर्फ एक गोली मारी,
और जैसे ही खून बहना बंद हुआ उसे छोड़ कर चला गया.हमें पता है कि

क़ातिल शातिर था, तेज़ और खामोश, और यह भी कि मरने वाला
शायद उसे जानता था. इसके अलावा, मरने वाले के भावों के लिथड़े खट्टेपन, और उसके हाथों और उँगलियों में
जकडे ठंडे आश्चर्य के सिवाय, हम कुछ नहीं जानते.

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(ब्लैक आर्ट्स मूवमेंट के प्रवर्तक अमीरी बराका दूसरे विश्व-युद्ध के बाद वाले दौर के संभवतः सबसे अधिक विवादास्पद अमेरिकी साहित्य-संस्कृतिकर्मी हैं. नाइन-इलेवन के बाद लिखी गई उनकी कविता ‘समबडी ब्लू अप अमेरिका’, जिसमें वे इस हादसे को अमेरिकी और इज़राइली सरकारों का साझा षड्यंत्र बताते हैं, काफी विवादग्रस्त हुई थी).

0 thoughts on “वाक़या – अमीरी बराका की एक कविता”

  1. कविता में गोली की सनसनाहट से भी बढ़कर इंसान के इंसान न होने की तेज़ झनझनाहट है जो सर्द रक्त की तरह जमी हुई हो गयी है जैसे

  2. धन्यवाद भारत भाई, आपने मेरी कई दिनों की इच्छा पूरी कर दी. उम्मीद है आगे भी ऐसी पोस्ट लगाना जारी रखेंगे. अमरीका की राजनितिक और नैतिक असलियत वहाँ के ब्लैक मूवमेंट्स से ही सामने आनी है – एक बार फिर शुक्रिया.

  3. तेज प्रभाव जगाती कविता है। कुछ-कुछ मुक्तिबोधीय तर्ज है। इस कवि का तेवर देखकर इनकी अन्य कविताओं में रूचि बढ़ गई है।
    विश्व कविता में नए झरोखे खोलते रहने के लिए आभार।

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