1
हवा है एक अंधी माँ
लाशों के ऊपर से
लड़खड़ाती गुज़रती
लड़खड़ाती गुज़रती
कफ़न भी नहीं
बादलों को बचाओ तो सही
बादलों को बचाओ तो सही
मगर कुत्ते हैं बहुत ज्यादा तेज़
2
चाँद है कब्रिस्तान
रौशनी का
और सितारे हैं
कलपती औरतें
3
हवा थक गई
ढो-ढोकर ताबूत
और एक ताड़ के पेड़ के सहारे
टिक गई
टिक गई
एक उपग्रह ने पूछा:
अब किस तरफ?
हवा की बेंत के भीतर की ख़ामोशी बुदबुदाई:
“बग़दाद”
और ताड़ के पेड़ में आग लग गई
4
खुरचती हैं टटोलती हैं सैनिकों की उँगलियाँ
प्रश्न चिन्हों की भाँति मुड़े हुए
हँसियों की तरह
हवा के गर्भ में
हँसियों की तरह
हवा के गर्भ में
वे तलाशती हैं हथियार
….
….
धुंए और चुक चुके यूरेनियम के सिवा
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
5
कितना संकरा है यह रास्ता
जो सोया पड़ा है
जो सोया पड़ा है
दो लड़ाइयों के बीच
लेकिन मुझे इसे पार करना होगा.
6
बग़दाद में
बहुत दूर किसी गुम्बद पर बैठा
एक सारस है दिल मेरा
उसका घोंसला हड्डियों से बना हुआ
और मौत का आसमान उसका
7
ऐसा पहली बार नहीं हुआ
कि भ्रांतियों ने अपना मुँह
कि भ्रांतियों ने अपना मुँह
हमारे खून से धोया
हमारी हड्डियों का जामा पहनते हुए
वे फिर निहार रही हैं
उफ़क़ के आईने में
वे फिर निहार रही हैं
उफ़क़ के आईने में
8
लड़ाई लार टपकाती है
हाँफते हैं अत्याचारी और इतिहासकार
बच्चे के चेहरे पर
एक सलवट मुस्काती है
एक सलवट मुस्काती है
कौन खेलेगा
दो लड़ाइयों के बीच के अंतराल में
9
नहरुल-फुर’अत है एक लम्बा जुलूस
शहर थपथपाते हैं
उसके कंधे
उसके कंधे
जब ताड़ के पेड़ बिलखते हैं
10
एक बच्चा खेल रहा है
समय के बागीचे में
समय के बागीचे में
भीतर से मगर
उसे पुकारती है लड़ाई:
उसे पुकारती है लड़ाई:
अन्दर आ जाओ!
11
कब्र है एक आईना
जिसमें निहारता है बच्चा
और देखता है ख्वाब:
मैं कब बड़ा होकर
बनूँगा अपने पिता की तरह
…
मुर्दा
12
नहर दिजला और नहरुल-फुर’अत
हैं दो तार
मौत के बाजे के
और हम हैं गीत
या कि बेसुरी उँगलियाँ
13
ढाई लड़ाइयों से मैं हूँ
इस कमरे में
इस कमरे में
जिसकी खिड़की वह कब्र है
जिसे खोलने से डरता हूँ मैं
एक आईना है दीवार पर
जिसके सामने मैं जब होता हूँ खड़ा
विवस्त्र
हँसती है मेरी हड्डियाँ
और मैं सुनता हूँ
दरवाज़े पर मौत की उँगलियाँ को
गुदगुदी करते
दरवाज़े पर मौत की उँगलियाँ को
गुदगुदी करते
14
इस क्षण के उदर पर
मैं रखता हूँ अपने कान
विलाप है सुनाई देता
रखता हूँ दूसरे क्षण पर
-वही!
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नहरुल-फुर’अत (Euphrates) और नहर दिजला (Tigris) इराक़ से होकर बहने वाली नदियों के नाम हैं.
(सिनान अन्तून का परिचय और एक कविता यहाँ है; व्हाइट हाउस के सामने प्रदर्शन कर रही महिला की तस्वीर मेरे अपने कैमरे से ली गई है. और हाँ, इराक़ पर अमेरिकी हमले की आज सातवीं बरसी है.)
.युद्ध के बाद बहती हवा की आँखों देखी ने मन को ठूंठ पर चीथड़े की तरह टांग दिया …असमर्थता .मनहूसी और उदासी तारी है हर ओर .बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. आभार.
वहाँ एक ऐसी संवेदना तो बची …जिसने हवा के माथे की सलवटें देखी …वरना युद्ध के बाद तो कुछ भी नही बचता …न ही जीवन और न ही हवा …
सिनान अंतून की इन कविताओं को पढ़ते हुये उस विभीषिका से गुजरने जैसा महसूस हुआ .लड़ाइयों का अंत क्या है ? युद्ध से गुजरने के बाद हासिल क्या होता है ? सिर पीटती खामोशी मे जीतने या हारने का भाव बचता है क्या ???
likh liya gaya hai
in kavitaao ko sundar kaise kahu…kaash hamara samay itna beshrm nahi hota…lekin kya karu in k lekhika ko salaam…aap ko dhanywaad maharaj in kavitao ko pdane k liye…