अमित श्रीवास्तव की लम्बी कविता
महाकुम्भहज़ारों हज़ार साल पुराना हिन्दू धर्म (?) ख़तरे में है बचाओ एक सौ आठ फीट लम्बी धर्म ध्वजाजो महज सहजता के लियेबावन फीट की भी
महाकुम्भहज़ारों हज़ार साल पुराना हिन्दू धर्म (?) ख़तरे में है बचाओ एक सौ आठ फीट लम्बी धर्म ध्वजाजो महज सहजता के लियेबावन फीट की भी
बेट्सी का क्या कहना है 1965 में हरिकेन बेट्सी ने बहामा और दक्षिण फ्लोरिडा से होकर लुइज़िआना तट पहुंचकर न्यू ओरलेंस को जलमय कर
कुछ बातरतीब बातों की एक बेतरतीब पड़ताल हर युवा कवि अपनी रचना और विचार-प्रक्रिया में ख़ुद को पूर्वज कवियों से साझा करता है। मेरे लिए
(अग्रज राजेश जोशी को विनम्रता और विश्वास के साथ …..ये दाग़ दाग़ उजाला ये शबगज़ीदा सहर को याद करते हुए)इसी रात में घर है सबकाजो
प्रेमीगौरैये का वो जोड़ा हैजो समाज के रौशनदान मेंउस समय घोसला बनाना चाहते हैंजब हवा सबसे तेज बहती होऔर समाज को प्रेम परउतना एतराज नहीं
काम क्या होता है बारिश में खड़े-खड़े इंतज़ार कर रहे हैं हम फोर्ड हाइलैंड पार्क की लम्बी कतार में लगे हुए. काम के लिए.
यह चित्र कवि द्वारा सम्पादित-प्रकाशित लघु पत्रिका का है उपस्थित तो रहे हम हर समारोह में अजनबी मुस्कराहटों और अभेद्य चुप्पियों के बीच अधूरे पते