मिरास्लोव होलुब की कुछ कवितायेँ…चयन और प्रस्तुति : यादवेन्द्र कुछ दिनों से मेरे मन में ये विचार आ रहा था कि विज्ञान में अच्छी शोहरत पाए लोगों की इतर प्रवृत्तियों के बारे में कुछ Read More » September 28, 2010
नगाड़े ख़ामोश हैं और हुड़का भी – रमदा गिरदा पर एक स्मृतिलेख रामनगर में इंटरनेशनल पायनियर्स द्वारा आयोजित पहली अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता(1977) के दौरान गिरीश तिवाड़ी (गिरदा) से पहली बार मिला था। Read More » September 21, 2010
उस अलाव से कुछ बच ही निकलता है : मार्टिन एस्पादा उस अलाव से कुछ बच ही निकलता है विक्टर और जोअन हारा के लिए I.क्योंकि हम कभी नहीं मरेंगे: जून 1969 विक्टर गा उठा हलवाहे Read More » September 11, 2010
शुभा के जन्मदिन के मौके पर उनकी दो रचनाएं एक बढ़ई काम करते हुए कई चीज़ों पर ध्यान नहीं देता मसलन लकड़ी चीरने की धुन, उसे चिकना बनाते समय बुरादों के लच्छों का आस-पास Read More » September 6, 2010