बग़ावत पर उतरा ईश्वर – फ़रोग फ़रोख्जाद
चयन, अनुवाद और प्रस्तुति – यादवेन्द्र यदि मैं ईश्वर होती तो एक रात फरिश्तों को बुलाती और हुक्म देती कि गोल सूरज को लुढका कर
चयन, अनुवाद और प्रस्तुति – यादवेन्द्र यदि मैं ईश्वर होती तो एक रात फरिश्तों को बुलाती और हुक्म देती कि गोल सूरज को लुढका कर
हिसाब ब्लेड से पेंसिल छीलते में एक पूर्ण विराम भर कट सकती है उंगली लेकिन अश्लील होता बिल्कुल सफ़ेद काग़ज़ पर गिरना अनुस्वार भर भी
मेरे प्रिय कवि गिरिराज किराडू की ये नई कविताएँ कई वजहों से महत्वपूर्ण हैं। पहली बात ये कि इनमें से पहली को लोक गायकों से
तिन मोए (1933 -2007 )बर्मा(अब म्यांमार) के राष्ट्रकवि माने जाते हैं,हांलाकि सरकारी तौर पर उन्हें यह पदवी नहीं दी गयी। ऊपरी बर्मा के एक गाँव
ख़ुदा से सवाल मेरे ख़ुदा ! यह क्या वशीभूत कर लेता है हमें प्यार में ? क्या घटता है हमारे भीतर बहुत गहरे ? और
(1943 में जन्मी निकी जियोवानी अफ्रीकी मूल की अमरीकी कवयित्री हैं, इनकी कविताओं में नस्लीय गौरव और प्रेम की झलक है। निकी वर्जीनिया में अंग्रेज़ी