अनुनाद

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निज़ार कब्बानी की एक कविता – अनुवाद एवं प्रस्तुति : मनोज पटेल

ख़ुदा से सवाल


मेरे ख़ुदा !
यह क्या वशीभूत कर लेता है हमें प्यार में ?
क्या घटता है हमारे भीतर बहुत गहरे ?
और टूट जाती है भीतर कौन सी चीज भला ?
कैसे वापस पहुँच जाते हैं हम बचपन में जब करते होते हैं प्यार ?
एक बूँद केवल कैसे बन जाती है समंदर
और लम्बे हो जाते हैं पेड़ ताड़ के
और मीठा हो जाता है समंदर का पानी
आखिर कैसे सूरज हो जाता है कीमती कंगन एक हीरे का
जब प्यार करते हैं हम ?मेरे ख़ुदा :
जब प्यार होता है अचानक
कौन सी चीज छोड़ देते हैं हम ?
पैदा होता है क्या हमारे भीतर ?
कमसिन बच्चों से क्यों हो जाते हैं हम
भोले और मासूम ?
और ऐसा क्यों होता है कि जब हंसता है हमारा महबूब
दुनिया बरसाती है यास्मीन हम पर
क्यों होता है ऐसा कि जब रोती है वह
सर रखके हमारे घुटनों पर
उदास चिड़िया सी हो उठती है दुनिया सारी ?

मेरे ख़ुदा :
क्या कहा जाता है इस प्यार को जिसने सदियों से
मारा है लोगों को, जीता है किलों को
ताकतवर को किया है विवश
और पिघलाया किया है निरीह और भोले को ?
कैसे जुल्फें अपनी महबूबा की
बिस्तर बन जाती हैं सोने का
और होंठ उसके मदिरा और अंगूर ?
कैसे हम चलते हैं आग में
और मजे लेते हैं शोलों का ?
कैदी कैसे बन जाते हैं जब प्यार करते हैं हम
गोकि विजयी बादशाह ही रहे हों क्यों न ?
क्या कहेंगे उस प्यार को जो धंसता है हमारे भीतर
खंजर की तरह ?
क्या सरदर्द है यह ?
या फिर पागलपन ?
कैसे होता है यह कि एक पल के अंतराल में
यह दुनिया बन जाती है एक मरु उद्यान…. प्यारा एक नाजुक सा कोना
जब प्यार करते हैं हम ?

मेरे ख़ुदा :
कहाँ बिला जाती है हमारी सूझ-बूझ ?
हो क्या जाता है हमें ?
ख्वाहिशों के पल कैसे बदल जाते हैं सालों में
और अवश्यम्भावी कैसे हो उठता है एक छलावा प्यार में ?
कैसे जुदा हो जाते हैं साल से हफ्ते ?
मिटा कैसे देता है प्यार मौसमों के भेद ?
कि गर्मी पड़ती है सर्दियों में
और आसमान के बागों में खिलते हैं फूल गुलाब के
जब प्यार करते हैं हम ?

मेरे ख़ुदा :
प्यार के सामने कैसे कर देते हैं हम समर्पण,
सौंप देते हैं इसे चाभी अपने शरण स्थल की
शमां ले जाते हैं इस तक और खुशबू जाफ़रान की
कैसे होता है यह कि गिर पड़ते हैं इसके पैरों पर मांगते हुए माफी
क्यों होना चाहते हैं हम दाखिल इसके इलाके में
हवाले करते हुए खुद को उन सब चीजों के
जो यह करता है साथ हमारे
सबकुछ जो यह करता है.

मेरे ख़ुदा :
अगर हो तुम सचमुच में ख़ुदा
तो रहने दो हमें प्रेमी
हमेशा के लिए.
***

0 thoughts on “निज़ार कब्बानी की एक कविता – अनुवाद एवं प्रस्तुति : मनोज पटेल”

  1. मनोज पटेल जी! निजार कब्बानी की इतनी सारी कविताओं का इतना बेहतर अनुवाद करके महत्तवपूर्ण कार्य कर रहे हैं.आप लोगों को बहुत बहुत धन्यवाद.

  2. मेरे खुदा :
    जब प्यार होता है अचानक
    कौन सी चीज छोड़ देते हैं हम ?
    पैदा होता है क्या हमारे भीतर ?
    कमसिन बच्चों से क्यों हो जाते हैं हम ???
    क्या है कोई जवाब ?????????????????

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