अनुनाद

फ़र्ज़ी कविता – एगुस सर्जोनो : अनुवाद एवं प्रस्तुति – यादवेन्द्र

इंडोनेशिया की नयी पीढ़ी के सबसे चर्चित कवियों में शुमार किये जाते हैं एगुस सर्जोनो.देश की सांस्कृतिक हलचलों के केंद्र बांडुंग नगर में 1962 में जन्मे सर्जोनो कविताओं के अलावा कहानी,नाटक और आलोचनात्मक निबंध भी लिखते हैं.पाँच कविता संकलनों के अतिरिक्त उनकी कई और किताबें प्रकाशित हैं और दुनिया की अनेक भाषाओँ में उनकी कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं.एक महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका का संपादन करने के साथ वे इंडोनेशिया की युवा पीढ़ी( छात्र और अध्यापक) के बीच कविता को लोकप्रिय बनाने के लिए कई अन्य कवियों के साथ मिल कर कैम्प लगाते हैं.देश के राष्ट्रीय नाटक संस्थान में अध्यापन करने वाले सर्जोनो अपने देश की राजनैतिक हलचलों के प्रति बेहद मुखर रहे हैं..सुहार्तो के शासन काल में उनकी अनेक रचनाओं पर प्रतिबन्ध लगाया गया था.सैनिक तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों में सर्जोनो अग्रणी रहे हैं.यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी एक महत्वपूर्ण कविता जो देश काल से परे जा कर दुनिया भर के भ्रष्टाचार से जूझते समाजों को गहरी संवेदना के साथ संबोधित करती है.

गुड मार्निंग सर…गुड मार्निंग मैडम…
फर्जी मुस्कराहट मुँह पर चिपका के बच्चे बोले
फर्जी किताबों से पढ़ा उन्होंने
फर्जी इतिहास
पढाई ख़तम कर लेने के बाद
अपने ढेर सारे फर्जी नंबर देख के
वे खुद हतप्रभ अवाक् रह गए.
स्कूल में उनके नंबर अच्छे नहीं आये थे
सो फर्जी तारीफ की चिट्ठियां लिख लिख के
लिफाफे लिए वे गए अपने मास्टरों के घर
फर्जी मुस्कराहट लिए मास्टरों ने
उनके हाथों से लिफाफे यह कहते हुए ग्रहण किये
कि बुरे नंबर बदल कर अच्छे नंबर दे देंगे
पर मुस्कुराहटों की तरह ये आश्वासन भी फर्जी.
वक्त बीता..स्कूल से निकल कर
वही बच्चे बनते गए फर्जी अर्थशास्त्री…
फर्जी वकील…फर्जी किसान..
फर्जी इंजिनियर…
इनमें से कुछ बन गए फर्जी मास्टर..
फर्जी वैज्ञानिक…फर्जी कलाकार भी..
इस तरह बड़े तपाक से वे
फर्जी नेता बन कर फर्जी अर्थव्यवस्था के सहारे
जोर शोर से करते रहे फर्जी विकास.
जाने किन किन फर्जी चीजों का नाम ले ले कर
फर्जी आयात और फर्जी निर्यात करते करते..
वे अंधाधुंध फर्जी व्यापार का डंका पीटते रहे
मजे की बात कि फर्जी बैंक
धूमधाम से मुनाफे दिखा दिखा के
फर्जी बोनस और गिफ्ट बाँटते रहे.
पर इनके आजू बाजू एक और अभियान चलता रहा…
फर्जी परमिट और फर्जी चिट्ठियाँ दिखा दिखा के
वे गुपचुप ढंग से फर्जी अफसरों की मिलीभगत से
राष्ट्रीय बैंक से कर्ज लेने का जुगाड़ करते रहे.
जनता फर्जी धन और फर्जी विदेशी मुद्रा से
कारोबार करती रही
इसीलिए अंत में फर्जी उछाल के बोझ तले
विदेशी मुद्राएँ लड़खड़ा कर गिरने लगीं
चारों ओर अफरा तफरी मची…संकट इतना गहराया
कि फर्जी सरकार संभाल नहीं पाई अपनी फर्जी किस्मत
और औंधे मुँह धराशायी हो गयी.
फर्जी लोग फर्जी जश्न मनाते रहे
फर्जी समारोहों में फर्जी बयानबाजी करते रहे
सार्वजनिक बहसों में ऊँचे स्वर में
आगाज किया जाता रहा लोकतंत्र का
चिल्ला चिल्ला कर
पूरी तरह से फर्जी तौर पर।
***
प्रस्तुति: यादवेन्द्र

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