अनुनाद

शायक आलोक फेसबुक से…

दोस्त रिजवान
उस लड़की का क्या
जो कर आई थी मुंह काला
सुबह के उजास में ?

भाई, वह है अब
तीन बच्चों की अम्मा
तीन कोठरी का मकां उसका
सोती है चौके में .

और वह मुआ बुड्ढा कैसा
मिट्टी पड़ी के उसके जिसम
कोढ़ निकले थे ?

अरे कुछो मालुम न कि ?
इ होवे उसकी दूसरी पत्नी
पहली के दडबे से निकाले रहौ
नाजनीन एगो बेटी रहे
उसके रहे कौनो और आशिक
जब बात फैले रहो
बूढ़े ने तुम्हरी वाली को पनाह दियो
बातें मूंछन बचाए के रही !

आ .. इ चौके में काहे सोती है ?

देखो, नाजनीन के ब्याह
मामुजाद भाई से हुआ
आवारा रहे
अलीगढ में अन्दरो रहले
उ डाले तुम्हरी वाली पे नजर
बुड्ढा त खांसी से मरे
तो तुम्हरी वाली ने पाला है कुत्ता
कुत्ता कमरे में सोये कैसे
तो ये सोती है चौके में
कुत्ता आ साथिन उसकी भूंके है
हर आहट पे
आ सलामत रहती है तुम्हरी वाली

रिजवान, एक प्रेम कविता लिखनी है उसपर

सनकाओ मत भईये
फूटल पहाड़ भई
जिसम देखो हो उसके …..

****

0 thoughts on “शायक आलोक फेसबुक से…”

  1. भाषा और संवाद दोनों का बेहतर सम्प्रेषण …..कहीं टूटती नही लय….और अभिव्यक्ति उम्दा …घटनात्मक परिपेक्ष में खरी उतरती रचना …..शुभकामनाएं बेहतर लेखनी के भविष्य हेतु ….सादर…

  2. भाषा का जबरदस्त प्रयोग .. पूरी कविता एक कथा के रूप में विकसित होती है .कवि की कुछ बेहतरीन कविताओं में से एक ..

  3. बहुत बढ़िया….
    पहले हमें लगा था शायक जी अनुवाद करते हैं…..कुछ अनुवादित सी लगती हैं उनकी रचनाएं…

    बेहतरीन लेखन है उनका…

    शुक्रिया सांझा करने के लिए.
    अनु

  4. बहुत ही उम्दा रचना है ये शायक की…शायक को मैं फेसबुक पर नियमित रूप से पढ़ती आई हूँ….एक अलग किस्म का आकर्षण होता है इनकी रचनाओं में…यथार्थ के बेहद करीब…हर क्षेत्र पर इनकी पकड़ खूब अच्छी है ख़ास कर स्त्री मनोविज्ञान की तो खासी समझ रखते हैं और उसे शब्दों में भी खूब अच्छे से उकेरते हैं…बधाई शायक…धन्यवाद अनुनाद…

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