अनुनाद

अनुनाद

एक पागल आदमी की चिट्ठी – विमलेश त्रिपाठी की लम्‍बी कविता

विमलेश त्रिपाठी ने इधर, कहानी और कविता, दोनों में अपनी एक महत्‍वपूर्ण जगह बनाई है। अनुनाद का उनसे आग्रह था कविता के लिए, जिसके जवाब में मुझे नौ खंडों में यह कविता मिली है। कवि ने इसे एक लंबी कविता श्रृंखला, जो अभी अधूरी है… कहा है। मैंने पाया है कि अकसर युवासाथियों की ऐसी कविताओं में अधूरापन ही उन्‍हें एक सम्‍पूर्ण अर्थ और अभिप्राय देता है। इस कविता का फैलाव मुझे आश्‍वस्‍त करता है कि कविता में विचार और द्वन्‍द्व के लिए अब भी भरपूर स्‍थान और सम्‍मान है। कविता में आए बाऊल गीत गाने वाले आदमी के गले की नीली नसें फूलकर मोटी जाती हैं, यह बात ऐसी कविता को लिखने वाले कवि के दिमाग़ की नसों के लिए भी कही जाएगी। आज की कविता में यह बहुत कुछ साबुत और जिन्‍दा  होने की तसल्‍ली है, जो मुझे इसे कविता को पढ़ते हुए मिली है…पाठकों की ओर से आने वाली टिप्‍पणियों में इस कविता पर भरपूर बात हो पाएगी, ऐसा मेरा विश्‍वास है। 

विमलेश की कविता पहली बार अनुनाद पर छप रही है। इससे पहले उनके कविता संग्रह पर कविमित्र महेश पुनेठा की समीक्षा प्रकाशित करने का अवसर हमें मिला है। एक पागल आदमी की इस चिट्ठी को अनुनाद पर सम्‍भव कर पाने के लिए कवि को मेरा शुक्रिया।  

वैन गॉग का एक प्रसिद्ध भू-चित्र

                              

एक
पागल आदमी की चिट्ठी –
1

एक नाम लिखा होता है
एक अस्पष्ट -सा चित्र बना होता
जिसमें कई चेहरे होते हैं
कोई भी चेहरा साबुत नहीं

कुछ जरूरी शब्द धुंधलाए
पिघल गए होते हैं खारे पानी से


वह जीवन भर रहती है
एक गंदे पोटले में

एक पागल आदमी की चिट्ठी
कभी पोस्ट नहीं होती…।

*  
एक
पागल आदमी की चिट्ठी –
2

पागल आदमी की चिट्ठी में
प्रेम नहीं लिखा होता
प्रेम की जगह एक लिपि अंकित होती है
उसकी आप ब्राह्मी, खरोष्ठी या कैथी
से तुलना नहीं कर सकते

वह एक अन्य ही लिपि होती है
समझने की शक्ति जिसे दुनिया के सारे भाषाविद् खो
चुके हैं

पागल आदमी की लिपि को

समझता
है एक दूसरा पागल आदमी

और बहुत ऊंचे स्वर में रविन्द्रनाथ का लिखा
कोई एक बाऊल गीत गाता है
गाते हुए उसके गले की नीली नसें
फूल कर मोटी हो जाती हैं

वह हर रात सोने के पहले
कागज के कई टुकड़े निकालता है
तसल्ली करता है कि वे सभी साबुत और जिंदा हैं

बाद इसके वह झर-झर रोता है
पोंछता है खुद अपने आंसू
कई पुराने कागज के टुकड़े उसके चारों ओर खड़े हो जाते हैं
इबाबत की मुद्रा में

पागल आदमी के रोने की आवाज
दुनिया का एक भी आदमी नहीं सुनता..।

** 
एक
पागल आदमी की चिट्ठी –
3

लिखा होता है एक देश का नाम
और ऐन उसके उपर रस्सियों से बंधी
पेड़ पर झूलती
एक किसान की लाश आंकी हुई

पास उसके हंसते हुए
खाए अघाए लोग

भाषण
देते-बहस करते

जिनके नीचे लिखा होता है –
सम्मानित नागरिक

पागल आदमी की चिट्ठी में
लाश की तस्वीर
चमकती है सबसे तेज

और सम्मानित नागरिकों के चेहरे पर
कालिख पुती होती है…

*** 
एक
पागल आदमी की चिट्ठी –
4

पागल आदमी की चिट्ठी में
फूल नहीं होते
हंसती हुई लड़की नहीं होती

नौकरी की एक अर्जी जैसा कुछ
आत्महत्या के ऐन पहले का लिखा एक नोट
मां की गरीबी का एक गीत
पसीने जैसे खून में लथराए

पिता
के विवश शब्द

देस की ओर जाती रेल गाडी की सीटी

कच्ची सड़क पर एक घोड़ागाड़ी
सबसे प्राचीन गांव की ओर
बहुत तेज गति में दौड़ती

घर से भागती एक लड़की
धड़कता-कांपता दिल
और भीतर से उठती
बढियायी हुई एक नदी

एक औरत की पत्थर हो गई आंख
एक मजदूर का छिल गया कंधा
नौकरी से बेदखल घर की ओर लौटता
लड़खड़ाता हुआ एक युवा
बिसुरते हुए बूढ़े
और देस छोड़कर भागती
एक हुजूम

सब होते हैं पागल आदमी की चिट्ठी में

पागल आदमी की चिट्ठी में
नींद नहीं होती
असंभव सपने होते हैं….।

**** 
एक
पागल आदमी की चिट्ठी-
5

अथक इंतजार लिखा होता

वह सड़क लिखी होती
जिसके किनारे पहली बारिश में
उसने पहली बार किसी को चूमा था

वह छाजन लिखा होता 

जिसके
नीचे रूका था वह

बारिश से बचने के लिए
और पहली बार खूब-खूब भीगा था

एक पुराने गीत का वह टुकड़ा लिखा होता है
जिसे गुनगुनाता था
खुशी के क्षणों में
आईने के सामने खड़ा
एक परछाईं रात दिन उसके साथ चलती थी

लिखा होता है एक झूठ
जो उसने कहे थे खुद को सुरक्षित करने के लिए
जिसके लिए वह नहीं
बल्कि इस देश का इतिहास गुनाहगार है

लेकिन ऐन उसी जगह लिखी होती है
माफी भी

और एक हाशिये पर
वह दरार भी लिखी होती
जो लाख कोशिश के बावजूद
ज्यादा और ज्यादा चौड़ी होती गई थी

एक पागल आदमी की चिट्ठी में
प्यार और आंसू
एक ही जगह एक ही तरह से लिखे होते हैं

लौटना नहीं लिखा होता
पागल आदमी की चिट्ठी में
सिर्फ जाने का रास्ता लिखा होता है…।

***** 
एक
पागल आदमी की चिट्ठी –
6

पागल आदमी की चिट्ठी में रंग नहीं लिखे होते
बस पन्ने लाल हरे सफेद या बेरंग होते हैं
हर रंग को समझता-बूझता हुआ
जीवन भर वह बेरंग ही रहता है

उसकी चिट्ठी में एक सौतेली मां का जिक्र मिलता है
जिसके कारण वह भागा था घर से
वे लोग होते हैं भूख से बेहोश होने पर 

जिनने
खिलाई थीं उसे बासी रोटियां

वे फूटपाथ होते हैं
चाय की दुकान में काम करने के बाद
जहां वह जागते हुए सोता था
वह मालिक होता है
जो हर गलती पर उसे मारता था जोरदार चांटा

बहुतायत ही वे लोग होते हैं
उसकी चिट्ठी में जो सुबह घर से निकलते हैं
और शाम को घर आते हैं चूर-चूर
जिनको सरकार और देश से कोई मतलब नहीं
जिनके लिए सरकार से अधिक
रोटी और नमक और मिर्च की चिंता सताती है

पागल आदमी की चिट्ठी में कवि नहीं लिखा होता
सिर्फ़ कविताएं लिखी होती हैं
जिनसे हर समय आग और धुंआ निकलता रहता है
कुछ गीत लिखे होते हैं
जिसे पढ़ने -सुनने पर आपका खून खौल सकता है

इतिहास के कई रंग हो सकते हैं
लेकिन पागल आदमी की चिट्ठी में
इतिहास का रंग काला ही होता है अक्सर
और यह गौर करने लायक बात है
कि उसकी चिट्ठी में
इतिहास लिखकर उसपर स्याही पोत दी गई होती है

एक कोने में बंदूक और भाले और बरछे लिखे होते हैं
जो फुट नोट की तरह दिखते हैं

वे साजिशें लिखी होती हैं
जिसके कारण पैंसठ साल बाद भी
इस देश के एक अरब से अधिक लोग
गुलाम और मरे हुए लोगों की तरह
हरक़त करते दिखते हैं

वे अंधेरे कोने लिखे होते हैं
चमचमाती बत्तियां और चुंधिया देने वाली
रौशनियां लिखी होती हैं
घिघियाहट और ठहाके लिखे होते हैं
जिनके बीच मुट्ठी भर लोग
जनता के हित में लेते हैं अहम फैसले
शराब की भरी और खाली बोतलें लिखी होती हैं
जिनका जिक्र इतिहास की किसी किताब में
नहीं मिलता कहीं

पागल आदमी की चिट्ठी में
रंग नहीं लिखा होता
सिर्फ खून के धब्बे लिखे होते हैं….।

****** 
एक
पागल आदमी की चिट्ठी
– 7

पागल आदमी की चिट्ठी में
एक असंभव इंतजार लिखा होता है

सत्तर के दशक की
एक रईस और खानदानी महिला के नाम के साथ
सडक पर बेतहाशा भागते-छुपते
मासूम और तथाकथित नक्सलियों की
लोहे की गोलियों से छलनी हुई लाशें लिखी होती हैं

सन
चौरासी का डर

गुजरात की शर्म
और उस औरत का पेट लिखा होता है
जिससे निकाल कर एक बच्चे को
एक कभी न बुझती हुई
आग में झोंक दिया गया था

उस बूढ़े का नाम लिखा होता है
जिसके जवान बेटे की सड़ी हुई लाश
गांव के कुंएं से निकली थी
सफेद दाढ़ी वाले एक पुलिस का नाम लिखा होता है
जिसे एक समय इस देश के एक राज्य का
हर जवान आतंकवादी लगता था

अगर साफ-साफ पढ़ें तो एक जगह
एक आदमी का नाम लिखा होता है
जो किसी देश के पधाननमंत्री जैसा लगता था
और हर समय मुस्कुराता रहता था
हलांकि उसके शासन काल में
हत्या और लूट की अनेकों इबारतें दर्ज हुई थीं
उसे जोर-जोर बोलना था विश्वास के साथ
जबकि उसकी बहुत धीमी
और घिघियाती अवाज ही लिखी होती है

एक जगह जनता की लूट ली गई अरबों की संपत्ति का
व्योरा लिखा होता है
और ठीक उसके नीचे एक शब्द लिखा होता है
जिसे क्लास के अध्यापक लोकतंत्र कहते हैं
और ठीक से पढ़ने पर वहां करोड़ों लोगों की
असहाय चीखें सुनायी पड़ती हैं

पागल आदमी की चिट्ठी में
देश की जनता की जगह भेड़
और सरकार की जगह गड़ेरिया लिखा होता है

पागल आदमी की चिट्ठी में
संविधान नहीं लिखा होता
इस देश के सबसे बूढ़े आदमी का नाम लिखा होता है
जिसे किसी सरफिरे ने तीन गोलियां दागी थीं
और जिसे लोग इस देश का राष्ट्रपिता कहते थे…।

पागल आदमी की चिट्ठी में
देश
लोकतंत्र
जनता की चीखें
और इंतजार जैसे शब्द
एक ही तरह की वर्तनी में लिखे होते हैं

भूलना जैसा कोई शब्द
वहां लिखा हुआ नहीं मिलता……।

******* 
एक पागल आदमी की
चिट्ठी –
8

कविता का मतलब  सन्नाटा
देश का मतलब  चुप्पी
सरकार का मतलब   महाजन
जनता का मतलब  गाय

कवि का मतलब   साहित्य
अकादमी

कलाकार का मतलब  मसखरा
किसान का मतलब   बेचारा


क्रान्ति और आन्दोलन मतलब
भयभीत एक कुंएं में कैद
स्वार्थी हुजूम

सब लिखा होता है उसकी चिट्ठी में

एक पागल आदमी की चिट्ठी में
उन लोगों के नाम भी लिखे मिलते हैं
जिनको जीवन भर
इस देश का नगरिक होने की
कीमत चुकानी पड़ी

जिनके पास कोई कविता नहीं थी
थी इमानदारी और पागलपन
अपनी माटी के लिए

जो रहस्यात्मक ढंग से
गायब हुए इस देश से
या जिनकी लाशें मिलीं
शहर के गंदले परनालों में
गांव की नदी के किनारे फूली हुई

पागल आदमी की चिट्ठी में
वह रूदन लिखा होता है
जो सदियों से चला आ रहा है इस देश मे

और समय के इतने राह पार भी
जिसे अब तक
नहीं सुना दिल्ली ने….।

********
एक पागल आदमी की चिट्ठी – 9

एक पागल आदमी की चिट्ठी में सोस्ती श्री सर्व उपमा योग्य पत्र लिखा हरनाथपुर से सबको प्रणामी पहुंचे जैसा कुछ नहीं लिखा होता  कुशल पूर्वक रहते हुए  किसी की कुशलता की कामना भी नही की गई होती है नहीं लिखा होता है उसमें कि छोटकी के ऑपरेशन में कितने पैसे खरच हुए कि पड़ोस के एक दबंग आदमी ने सूरजा को गुंडे से पिटवाया कि  गांव की एक अनपढ़ औरत के मुखिया बनने के बाद गांव में स्त्रियों के पीटे जाने की बारदातें बढ़ गई हैं कि एक औरत पांचवी बार मां बनने वाली है और उसके शरीर में खून न होने की बात गांव के एक फर्जी डिग्रीधारी डॉक्टर ने बताई है कि हर तीसरे माह एक औरत मरती है खून की कमी के कारण एक बच्चा मरता है डायरिया से गांव में खुल गई हैं जगह-जगह पाऊच की दुकानें और गांव के सब किशोर अचानक बूढ़े दिखने लगे हैं
यह सब बातें आज के समय में सबको पता है
बावजूद इसके
सब चुप हैं
किसी सुनियोजित
साजिश की तरह
पागल आदमी की चिट्ठी में वह चुप्पी लिखी होती है
एक आदमी कविता लिखता है एक आदमी उसकी पीठ ठोंकता है एक नीम अंधेरे कमरे में चार लोग बैठते हैं और उस कवि को कविता का एक प्रतिष्ठित पुरस्कार देने की घोषणा की जाती है एक दूसरे कमरे में कुछ लोग एकत्रित होते हैं और कहते हैं कि साहित्य में यह राजनीति नहीं चलेगी इस तरह के छोटे-छोठे मठ ढहने चाहिए दुरदाराज के शहर में बैठे कवि हर सुबह उठते ही फोन करते हैं चिट्ठियां लिखते हैं बड़े कवियों की प्रशंसा में आलोचकों के लिखे की झूठ-मूठ तारीफ करते हैं वे भी शामिल होना चाहते हैं जल्दी से जल्दी अग्र पंक्तियों में और बड़े कवि का तमगा और पुरस्कारों के बीच खुद के लिखने को सार्थक करने के ख्वाब संजोए किसिम-किसिम की कविताएं लिखते रहते हैं दारू की पार्टा में सबसे बड़ा कवि सबसे अधिक मसखरे की तरह की हरक्कतें करता है और कविता की याद आने पर हाय हाय करते हुए रोता है कि उसकी कविताएं लोग नहीं पढ़ते
नहींयह सब नहीं लिखा होता पागल आदमी की चिट्ठी में
इलाहाबद के एक गंदे घर में
पागलों की तरह रहने वाले एक कवि का नाम लिखा होता है
एक कवि का डर लिखा होता है
जो जीवन भर उसके साथ रही
और वह टॉयलेट में गिर कर मर गया
जबतक जिंदा था वह लोग उसे कवि नहीं
उजबक समझते रहे
और मरने के बाद उसकी जयकार कम होने का नाम नहीं लेती
एक कवि की मौत और संघर्ष की बात करते हुए
गर्व की तुष्टि में आसमान की ओर देखती हुई आंखों की बेशर्मी लिखी होती है
एक पागल आदमी की चिट्ठी में
एक देश
शून्य
और
सन्नाटा….
इन सबके बीच से
रूदन,
चीख
और सैकड़ों मोमबत्तियां
मशाल में बदलती हुईं
समय की पीठ जलती हुई
रात का सिर झुकता हुआ
पूरब की खिड़की से
एक लाल-पीला सूरज निकलता हुआ
एक और समय
जन्म लेता हुआ
पागल आदमी की चिट्ठी में….
********* 
विमलेश त्रिपाठी
कवि-परिचय 
बक्सर, बिहार के एक गांव हरनाथपुर
में 7 अप्रैल 1979 
को जन्म। 
प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही। प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता से
स्नातकोत्तर, कलकत्ता 
विश्वविद्यालय में शोधरत।  
देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित
पत्र-पत्रिकाओं में 
कविता, कहानी, समीक्षा, लेख आदि का प्रकाशन। 
हम बचे
रहेंगे
 कविता संग्रह नयी किताब, दिल्ली से प्रकाशित। 
कहानी संग्रह अधूरे
अंत की शुरूआत
 पर युवा ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, 2010। 
सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर
से काव्य 
लेखन के लिए युवा शिखर सम्मान। 
कविता के लिए सूत्र सम्मान, 2011। 
कविता कहानी
का भारतीय भाषाओं और 
अंग्रेजी में अनुवाद। 
कोलकाता में रहनवारी।  
परमाणु ऊर्जा विभाग के एक यूनिट में
कार्यरत।
       
संपर्क:
साहा इंस्टिट्यूट ऑफ न्युक्लियर फिजिक्स,
1/ए.एफ.,
विधान नगर, कोलकाता-64.
·         Mobile: 09748800649

0 thoughts on “एक पागल आदमी की चिट्ठी – विमलेश त्रिपाठी की लम्‍बी कविता”

  1. विमलेश वर्तमान समय में समय की कोख को फोड़कर नई और ताजगी भरी कविताएं लिख रहे हैं। वर्तमान समय में जब कविता को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है – विमलेश की कविताएं हमें आश्वस्त करती हैं और जीवन ककविता के लिए विश्वस्त भी।
    ये कवितायेँ है नव विचार की, जाग्रति की … बहुत बहुत आभार अनुनाद के लिए

  2. विमलेश जी की कवितायें जितनी बार पढ़ता हूँ, बहुत भीतर तक महसूस होती हैं, सारी भावनायें; देश, समाज और मनुष्य की सारी विसंगतियों से भरी हुई ; कभी दूब जैसी नरम, कहीं चुभा कर जगाती हुई… इस "शब्दों के जादूगर" के लिये और क्या कहूँ ! ये समुद्र की तह से मोती नहीं लाते हैं बल्कि दबी हुई राख से चिंगारियाँ खोज-खोज कर, उसकी स्याही बना कर पन्नों पर उतार देते हैं ! सुन्दर कविता…

  3. मैं तुम्हे फिर फिर पढना चाहूँगा पागल आदमी

    ————————————————————–
    पागल ही सही पर आदमीयत जिन्दा है तुममे

    *amit anand

  4. विमलेश की भाषा में जादू है…. संवेदना में ताकत…. बधाई….

  5. इधर के दिनों में लिखी जा रही बहुत सी फ़ालतू कविताओं के हड़बोंग में विमलेश की यह कविता शृंखला हमें आश्वस्त करती है कि कविता को मारने के तमाम प्रयत्नों के बावजूद वह अन्य विधाओं के बराबर ही आज की चुनौतियों सेजूझने की क्षमता रखती है. मैं कवि के हाथ चूमना चाहता हूं क्योंकि उसकी सार्थकता (कृपया सफलता से कन्फ़्यूज़ न करें) में ही हमारी भी सार्थकता है और ज़िन्दगी भी. यह शृंखला विचार और सम्वेदना के सही मेल की वजह से बहुत दिनों तक मन में गूंजने वाली शृंखला है और इसका एक से अधिक पाठ इस केअर्थों को बराबर खोलता जायेगा. बधाई कवि को और तुम्हें भी शिरीष इसे हाई लाइट करने के लिए

  6. बिमलेश जी की कविताओं में कोई बनावट नहीं है। असलीपन है। सादगी का जो प्रबल आकर्षण होता है, वो इन कविताओं की रौनक है। इन नौ खंडों की कविता का एक खंड तो आँखों के कोर को नम कर गया। निराला, मुक्तिबोध और न जाने किन किन पुरखों की याद आ गई।

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