अबकी कहाँ जाओगे भाई !
इनके घर में गिरवी रक्खा, उनके बंद तिजोरी
इनने पुश्तैनी झपटा है, उनने चोरी-चोरी
ऊ जनता की बीच-बजारे छीने लोटा-झोरी
माज़ी को ये देंय दरेरा, करते सीनाजोरी
देशभक्ति का चोखा धंधा, गर्दन टोह रहे दंगाई !
अबकी कहाँ जाओगे भाई !
इनने लूटा संसद-फंसद, उनने सभा-विधान
माटी पानी जंगल धरती चारा कोल खदान
संबिधान की ऐसी तैसी
बड़े बड़े बिदवान
अभी लूट को माल बहुत है, मत चूको चौहान
बड़े बड़े बिदवान
अभी लूट को माल बहुत है, मत चूको चौहान
देश बड़ा है कर छोटे हैं, अमरीका की चरण पुजाई
!
अबकी कहाँ जाओगे भाई !
इनने सौ-सौ महल बनाये, लूट
लिए बेगार
लोकतन्त्र के खंभे तोड़े, उनने लीजे चार
भ्रष्टाचार भूख भय भीषण चहुंदिस अत्याचार
नंगे पाँव आबले जख्मी बिछे हुए हैं खार
लिए बेगार
लोकतन्त्र के खंभे तोड़े, उनने लीजे चार
भ्रष्टाचार भूख भय भीषण चहुंदिस अत्याचार
नंगे पाँव आबले जख्मी बिछे हुए हैं खार
भरी अदालत शातिर बैठे, नाचत नट मर्कट की नाईं!
अबकी कहाँ जाओगे भाई !
मुसलमान का ये सिक्खों का वे लें शीश उतार
टाडा पोटा अफ़्सा लादें मधुर मधू व्यापार
इनने दंगे करवाए हैं, उनने नरसंहार
उनने झपटे चैनल सारे, इनके हैं अखबार
पीले पत्रकार पितखबरी, बिष्ठा-निष्ठा है उतराई
!
महजिद ध्वंस करे ये वे ताला खोलवाये जात
नगर मुजफ्फर है इनका और उनका है गुजरात
सौ चौवालिस खंभों नीचे न्याय देवि का घात
सौ चौवालिस खंभों नीचे न्याय देवि का घात
संझा इनकी बंदी उनका कैदी है परभात
चाहे जितना चिल्लाओगे, लूटेगा ही हातिमताई !
अबकी कहाँ जाओगे भाई !
इनके घर में कोर्ट कचहरी, उनके घर में फौज
इनके घर में दावत होती, है उनके घर मौज
जनता को ये ‘नहीं’ थमाये
वे पकड़ाते नौज
बोरेंगे दोनों मिलकरके खोद चुके हैं हौज
चौपट राजा वेटिंग अंधा, निरपराध फांसी चढ़वाई !
अबकी कहाँ जाओगे भाई !
***
नागार्जुन के बारे में शमशेर ने कहा था कि मैं उनके जैसी कविताएँ लिखना चाहता हूँ पर लिख नहीं पाता. मेरी तो खैर औकात क्या शमशेर के सामने लेकिन ठीक यही मैं अपने प्यारे दोस्त मृत्युंजय के लिए कहना चाहता हूँ.
मृत्युंजय का यह अंदाज तो मुझे बहुत ही पसंद है. वे अपने जैसे अकेले कवि लगते हैं मुझे. धन्यवाद अनुनाद
ये जो कविता की ज़मीन सिकुड़ रही है . मृत्युंजय जैसे कवि उसे बचाएंगे . ये जो कविता की जमीन पर लगातार अतिक्रमण जारी है . मृत्युंजय जैसे कवि उसे रोकेंगे . ये जो कवि और श्रोता-पाठक के बीच अबोला बढ़ रहा है. मृत्युंजय जैसे कवि उसे दूर करेंगे . मृत्युंजय की कविता आम आदमी से कवि के सहज-संवाद की वापसी है . आम आदमी की बातें, उसके दुख-दर्द उसी की बोली-बानी में ; उससे भी बढ़ कर उसी जन-समाज की स्मृति-कोशिकाओं में बसे में छंद की आत्मीय छटा में . ये महज मित्र-कवि और मुग्ध-आलोचक को लुब्ध करती कविताएं नहीं हैं . यह अपने समाज में कवि और कविता का पुनर्वास है . अपने समाज में कविता की रिहाइश पक्की करने की परियोजना का सर्वोत्तम प्रयास !
Mritunjay Ki Kavitayen Bedhak Tejasvita Ka Udahran Hain. Badhai Mritunjay & Anunaad.
निश्चित रूप से ..आज की कविता में एक अलहदा और जरुरी स्वर है मृत्युंजय का … मजा आ गया पढ़कर …बधाई ..|
मृत्युंजय जी लगातार अपने खास तेवर और शैली में जबरदस्त कविताएं लिख रहे हैं. वे मेंरे सबसे पसंदीदा कवियों में से एक हैं जो बेहद उर्जा देते हैं. उनकी कविताओं की धार कविता कहने का सलीका सिखाती हैं.
दोटूकबयानी और ललकार तो है , लेकिन वह बारीक व्यंजना , वह महीन मार , वह तलस्पर्शी राजनीतिक दृष्टि अभी कुछ दूर है , जो आओ रानी , तुम रह जाते दस साल और ,जली ठूंठ , चंदू मैंने , खिचड़ी विप्लव जैसी कविताओं को कालजयी बनाती है . मृत्युंजय की कवितायें उस रास्ते पर जरूर हैं. .
पिछले दिनों यह माँग उठी थी कि नये जनगीत लिखे जायें. यह गीत उसी दायित्व का निर्वाह करने का प्रयास है और सफल प्रयास है. बधाई मृत्युंजय !
"जन-संघर्षों को नये जनगीतों की ज़रूरत है.
पिछली पीढ़ी के गीतकारों का दौर बीत चुका.
आज फिर से युग-सापेक्ष नये जनगीत रचने की चुनौती है.
सिद्धहस्त कलमकार साथियों से निवेदन है कि अपनी कलम की धार आजमायें.
ashok k. pandey – "एक इच्छा है जनगीतों की एक पुस्तिका तैयार करने की. सस्ती लेकिन काम लायक. बहुत सारे जनगीत जिन्हें गाया करता था, अब भूल गए हैं. कुछ ऐसे जो लगता है अबी पुराने पड़ गए. मैं चाहता हूँ जनगीत ऐसे हों कि जनसंघर्ष में लगे साथियों के काम आएँ.
आप मदद करेंगे?" "
वाह मृत्युंजय..
गजब है. हम तो मान चुके थे कि कविता में ठेठ तरीके से कहने का शानदार गयी – मगर गलत थे. खुद को दुरुस्त करता हूं और इस कविता पर ढेर सारी दाद देता हूं.
समसायिक गीत … कटु सत्य
अबकी कहा जाओगे भाई …………. शीर्षक के साथ राजनीति मे NOTA मे जाएगे …………………..
कवि तुम कुछ अधिक ही भाने लगे हो…