अनुनाद

अनुनाद

लाल्टू की कविताएं

लाल्टू उस दौर में शुरूआत करने कवि हैं, जब देश में उदारीकरण और  साम्प्रदयिकता का संकट भरपूर गहरा रहा था और जुलुम ये कि उसे मान्यता देने वाली जनता का निर्माण भी साथ ही साथ हो रहा था। विभेदों की क़ातिल अवधारणा के सफल प्रयोग देश में घटित होते देखने हों तो देश के उस दौर से यात्रा शुरू करनी चाहिए। वहां से लाल्टू ने कविता की यात्रा शुरू की और एक नास्टेलिज्क रूमान में धंस रही कविता को विचार और प्रतिरोध के स्वर दिए – वह रूमान, जो विचार विरोधी होने के साथ इतिहास विरोधी भी था। हरीशचन्द्र पांडे, कुमार अंबुज, ओम भारती जैसे बड़े कवि अग्रज उस दौर ने मेरी उम्र को दिए। कुमार विकल से महज धरती की साझेदारी नहीं, रचने की शामिल जिम्मेदारी लाल्टू की कविता ने भरपूर निबाही है।

यहां ज़्यादा न कहते हुए बस इतना भर सूचित करना करना चाहूंगा कि लाल्टू की कविता पर मेरा लम्बा लेख पहल वाली लेखमाला के अंतिम लेख के रूप छपा है। मैंने अनुनाद के लिए कविताआें का अनुरोध किया था, जिसका मान रखने के लिए मैं लाल्टू को शुक्रिया कहता हूं।   
 
1. जो नहीं है उसे सामने रखता हूँ



मैं उनके लिए चाय बिस्कुट लिए खड़ा होता जैसे कोई पुरुष कवि नहीं होता। मैं कहता, आपको बीड़ी पीनी है तो बरामदे में जाना होगा, घर में बच्चा है। क्या वे नाराज़ होते? बीबी को कहते कि आपलोग जाइए बरामदे में मेरे आग्रह को नज़रअंदाज़ कर कमरे में सिगरेट पी ही लेते? दारु पीकर भारतीय संस्कृति पर भाषण देते?



उस दिन उनसे मिल ही गया तो उन्होंने मुझे सिगरेट ऑफर की। मैंने कहा कि मैंने तो कब की छोड़ दी तो हँसे, कहा कि रख लो, क्या पता फिर कब शुरू कर दो। मैंने कहा कि नहीं मैं वाकई नहीं पीता तो कहा कि अरे यह खास है यह पैकेट मुझे शमशेर ने दिया था रख लो, कभी इस पर कविता लिखना। मैंने पूछा कि कहानी लिखें तो चलेगा। हँसकर कहा कि कवियों पर कहानी लिखोगे तो लोग तो कविता ही कहेंगे। यह मुझे पता है कि दूर दराज लोग पूछते हैं कि तुम गद्य में कविता क्यों लिखते हो।



कभीकभार वह सिगरेट निकाल कर सामने रखता हूँ। अजीब महक मुझे सम्मोहित कर लेती है और आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं क्या पढ़ा है तुमने क्या जानते हो हिंदी की कहानी मैं कहता हूँ कि खुसरो मियाँ जो कर गए सो कर गए, कि लोग लगे हैं राममार्ग को सोना जुग बखानने कि हम जैसे लोग तो वह भाषा ही नहीं समझ पाते और इतना ही होता कि अवधी ब्रज में ही विज्ञान रच डालते पर ये तो तत्सम से नीचे उतरते ही नहीं और आप कौन सा ब्रह्मराक्षस कविता में लोगों की बोली में बात करते हैं।



कहना था कि वर्हाडी में चालू हो गए क्या? मैंने पूछा कि बोली में क्यों नहीं लिखा तो हँस पड़े बोले कि तुम पढ़ते? फालतू बात छोड़ो और सिगरेट नहीं चाहिए तो लाओ इधर मैं कभी पी लूँगा।



और इसलिए वह सिगरेट मेरे पास नहीं है। मत पूछना अभी तो कहा था कि उसे सामने रखते हो। रखता हूँ, जो नहीं है उसे सामने रखता हूँ। तो?

*** 

2. यहाँ



कुछ और सोचा था?

जानते नहीं थे कि

यहाँ उदासीनता का महासमुद्र है?



यहाँ हर कोई यह जान कर ही आता है

लोग चले जाते हैं परस्पर आरपार

छूते नहीं बस चले जाते हैं



पगडंडियाँ बदलती हैं सड़कों में

घराने सिमटे हैं एकल सामंत में

भाषा नहीं है तीखे शोर की चुप्पी है

समय है पर नहीं है

हर ओर कोई परचम लहराता है

हर ओर मशीनों का हुजूम चला आता है



सब कुछ शालीन है

सब को पता है कि किसकी स्तुति करनी है

यहाँ कला की अतिशयता है



आओ

पहुँच गए हो ऐसे स्वर्ग में

तुम भी रसपान करो।

*** 

3. ताप



रात गर्म नहीं

शरीर ग़र्म है

थकान ग़र्म है

चिंताएँ ग़र्म हैं

असफलताएँ ग़र्म हैं।

*** 

4. डर



दिल्ली में हूँ तो अमदाबाद

और अमदाबाद में दिल्ली

कहीं मेरठ, कोलकाता, दीगर शहर

ढूँढता हूँ अपने अंदर



डरता हूँ खुद ही से

इतना पी चुका जहर।

*** 
 
5. क्या ऐसे मैं चुप हो जाऊँगा



बोलते रहो जो तुम्हें बोलना है

उठाते रहो तूफान, झोंकते चलो आँखों में धूल

क्या ऐसे मैं चुप हो जाऊँगा

धरती मुझे सीना देगी

और वह तुम्हारे शब्दजाल से अनंत गुना बड़ा है।

*** 

6. आज मैं



वह तो वह है

वह राधाकृष्ण के गीत क्यों गाती है



उसके बारे में सवाल उठा

और मैं कोटर में सिमट गया।

*** 


7. मर्सिया


ऐ हिंदी हिंदुस्तानी उर्दू वालो

तमिल, तेलुगु, बांग्ला, कन्नड़, पंजाबी वालो

ओ कोया, भीली, कोरकू, जंगल के दावेदारो

धरती गर्म हो रही है

अंग्रेज़ी सरगर्म हो रही है

आओ अपनी बोलियों में मर्सिया लिखें

कल लिखने वाला कोई न होगा

पूँजी की अंग्रेज़ी पर सवार संस्कृतकाल दौड़ा आ रहा है।

 *** 

0 thoughts on “लाल्टू की कविताएं”

  1. आज जब `अपनी बोलियों में मर्सिया' लिखने का वक्त हो चला है लाल्टू जैसे कवियों ने बार बार इस पतन के लिए आगाह किया है| अब नहीं तो शायद…! जिन्हें लगता है कि कविता जैसी टुच्ची चीज़ क्या कर सकती है उन्हें ज़रूर लाल्टू को पढ़ना चाहिए!

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