शैलजा पाठक अब युवा कविता में एक सुपरिचित नाम हैं। बतकही का अंदाज़ और उसमें भरपूर नास्टेल्जिया के साथ आता, कभी-कभी अतिरेकी भी लगता भावसंसार – इसे ही अभी शैलजा का अपना मुहावरा और डिक्शन मान लिया जाए और देखा जाए कि इसी के सहारे किस सहजता से उनकी कविताएं हमें हमारे मर्मों में ले जाकर बेध देती हैं। कोई कवि ऐसा भी होता है – अपनी राह वो ख़ुद खोजता है और उस खोज में भटकना भी एक शिल्प है उसकी कविता का। जाहिर है इसमें अतिकथन होगा और मेरे लिए इस नए संसार और उसकी चुनौतियों के बीच अतिकथन भी एक शिल्प है। इन कविताओं में अचानक एक जिरह शुरू होती है और वह वैचारिकी सामने आने लगती है, जिसे शैलजा ने अपने हुनर से छुपाया था और चाहा था कि वह इसी तरह पाठकों पर खुले। शैलजा पहले अनुनाद पर छप चुकी हैं। इन कविताओं के लिए भी उनका आभार।
अब जो आयें हैं नैहर
चल सखी चूड़ियाँ बाँट लें
मिला ले तेरी हरी में मेरी लाल
बीच में लगा कर देख ये बैगनी सफ़ेद
कुछ नई में पुरानी मिला कर पहनते हैं
अब जो आये हैं नैहर चल खूब खनकते हैं
मिला ले तेरी हरी में मेरी लाल
बीच में लगा कर देख ये बैगनी सफ़ेद
कुछ नई में पुरानी मिला कर पहनते हैं
अब जो आये हैं नैहर चल खूब खनकते हैं
चल खाते हैं बासी रोटी
दाल में मिलाते हैं मिर्चे का अचार
सिल बट्टे पर धनियाँ की चटनी पिसते हैं
बाजरे की रोटी में गुड मीसते हैं
लगाते हैं अम्मा को मेहदी
बाबु का भारी वाला जैकट मुस्कराते से फिचते हैं
कर देते हैं साफ़ भाई का कमरा
चढ़ आते हैं ऊँची अटारी
उलटी पैर की भूतनी से डर कर चिपट जाते हैं
अब जो आये हैं नैहर
चल खेत में पानी सा उतर जाते हैं
दाल में मिलाते हैं मिर्चे का अचार
सिल बट्टे पर धनियाँ की चटनी पिसते हैं
बाजरे की रोटी में गुड मीसते हैं
लगाते हैं अम्मा को मेहदी
बाबु का भारी वाला जैकट मुस्कराते से फिचते हैं
कर देते हैं साफ़ भाई का कमरा
चढ़ आते हैं ऊँची अटारी
उलटी पैर की भूतनी से डर कर चिपट जाते हैं
अब जो आये हैं नैहर
चल खेत में पानी सा उतर जाते हैं
भरते हैं भौजी के सिन्होरा में पीला सिंदूर
रात की बात कर साथ खिलखिलाते हैं
भतीजी के लिए बना देते हैं कपडे की गुडिया
उसको नथिया और हसली पहनाते हैं
उसकी आँख में भरते हैं
काला सा काजल
कान में झुमका लटकाते हैं
अब जो आये हैं नैहर
अम्मा की गुडिया बन जाते हैं
रात की बात कर साथ खिलखिलाते हैं
भतीजी के लिए बना देते हैं कपडे की गुडिया
उसको नथिया और हसली पहनाते हैं
उसकी आँख में भरते हैं
काला सा काजल
कान में झुमका लटकाते हैं
अब जो आये हैं नैहर
अम्मा की गुडिया बन जाते हैं
चल सखी रात बाँट लें
मन की बात बाँट लें
आँख में सूख रही सदियों से नदी
होठो को सिल लेते हैं
कल जाना है ससुराल
आ गले मिल लेते हैं
अम्मा को नही बताएँगे
भाई से छुपा लेजायेंगे
भौजी जान भी नही पाएगी
मन की बात बाँट लें
आँख में सूख रही सदियों से नदी
होठो को सिल लेते हैं
कल जाना है ससुराल
आ गले मिल लेते हैं
अम्मा को नही बताएँगे
भाई से छुपा लेजायेंगे
भौजी जान भी नही पाएगी
खूटे से बंधी गाय सब समझ जाएगी
दरवाजे से निकलते हमसे उलझ जाएँगी
चाटेगी हथेली के छाले
हमारी रीढ़ में एक रात काँप जायेगी
हमारी छाती में सूखी कहानी हरी हो जाएगी
चिरई चोंच का दाना छोड़ जायेगी
दरवाजे से निकलते हमसे उलझ जाएँगी
चाटेगी हथेली के छाले
हमारी रीढ़ में एक रात काँप जायेगी
हमारी छाती में सूखी कहानी हरी हो जाएगी
चिरई चोंच का दाना छोड़ जायेगी
चल चुप चाप रो लें
मांग भर सिंदूर हाथ भर चूड़ी बाल में गजरा सजायेंगे
मन की गाँठ साथ लिए जायेंगे
हम बड़का घर की व्याहता है अब
नैहर को अपने चुप से ठग जायेंगे
मांग भर सिंदूर हाथ भर चूड़ी बाल में गजरा सजायेंगे
मन की गाँठ साथ लिए जायेंगे
हम बड़का घर की व्याहता है अब
नैहर को अपने चुप से ठग जायेंगे
पर गाय से नजर नही मिलायेंगे
चल ना चूड़ियों में मिलाते हैं कुछ नई कुछ
पुरानी
आटे में खूब सारा पानी ..खिलखिलाते हैं
अब जो आये हैं नैहर चल खनकते हैं ………….फिर ..चुपके से …टूट जाते हैं …
आटे में खूब सारा पानी ..खिलखिलाते हैं
अब जो आये हैं नैहर चल खनकते हैं ………….फिर ..चुपके से …टूट जाते हैं …
***
लड़कियां बोलती नही
लडकियाँ बोलती नही
चुप रह जाती हैं
मुहल्ले के चबूतरे पर करती हैं बतकुचन
आँख मटका कर न जाने क्या क्या किस्से सुनाती है
उम्र में बड़ी औरतों की बातें कसकती सी समझ जाती है
नई दुल्हन की कलाई पर उतर आये स्याही को सहलाती है
समझती सी सब समझ जाती है
ये तुम्हारी दुनियां को मन ही मन तोलती है
आँख मटका कर न जाने क्या क्या किस्से सुनाती है
उम्र में बड़ी औरतों की बातें कसकती सी समझ जाती है
नई दुल्हन की कलाई पर उतर आये स्याही को सहलाती है
समझती सी सब समझ जाती है
ये तुम्हारी दुनियां को मन ही मन तोलती है
लडकियाँ बोलती नही है
चुप रह जाती हैं
चुप रह जाती हैं
पहाड़े से जियादा रटती है
जिन्दगी की गिनती
मीठे से नमकीन नमकीन से मीठे डिब्बे भरती खाली हो जाती है
उभरती छातियों पर झुक जाती है
फूल काढते हुए काँटा सी अपनी ही उँगलियों में चुभ जाती है
बूंद भर खून को बिना उफ़ होठ में दबाती है
मन के रहस्य से बेचैन है इनकी चादरें
ये सुबह सारे शिकन सीधी कर जाती है
जिन्दगी की गिनती
मीठे से नमकीन नमकीन से मीठे डिब्बे भरती खाली हो जाती है
उभरती छातियों पर झुक जाती है
फूल काढते हुए काँटा सी अपनी ही उँगलियों में चुभ जाती है
बूंद भर खून को बिना उफ़ होठ में दबाती है
मन के रहस्य से बेचैन है इनकी चादरें
ये सुबह सारे शिकन सीधी कर जाती है
लड़कियां बोलती नही
चुप रह जाती हैं
चुप रह जाती हैं
ये टूटी चेन को धागे से बांधती है
दाग पर रगडती है निम्बू
दर्द को कमर पर ढोती
बार बार गुसलखाने में मुह का तनाव धो कर आती हैं
बाज़ार की भीड़ से घबरा कर सिमट जाती हैं
भाई के साथ नही निकलना चाहती बाहर
माँ बाप तक नही पहुचने देती कोई खबर
गली में जवान लडको की फब्तियों से कितनी बेजार
घर में कनस्तर में रखे आटे सी सफ़ेद हो जाती हैं
दाग पर रगडती है निम्बू
दर्द को कमर पर ढोती
बार बार गुसलखाने में मुह का तनाव धो कर आती हैं
बाज़ार की भीड़ से घबरा कर सिमट जाती हैं
भाई के साथ नही निकलना चाहती बाहर
माँ बाप तक नही पहुचने देती कोई खबर
गली में जवान लडको की फब्तियों से कितनी बेजार
घर में कनस्तर में रखे आटे सी सफ़ेद हो जाती हैं
लडकियाँ नही बोलती
चुप रह जाती हैं
चुप रह जाती हैं
ये जब बोलती हैं तो गाड़ दी जाती हैं जमीन में
बस्ते को स्टोर रूम में रख दिया जाता है
रिश्तेदारों से रिश्ते की बातें होती हैं शुरू
घर के काम में बनाई जाती हैं पारंगत
छत पर चढती है अँधेरे के साथ
चाँद देखती हैं तो निचे से खीच लाती हैं अपनों की आवाज
आवाज उठाती हैं तो तमाशबीनों की भीड़ जमा होती है आस पास
डराई धमकाई जाती है
पिता के काम माँ की शालीनता पर उठते है सवाल
भाई से नही मिलाती आँख
बस्ते को स्टोर रूम में रख दिया जाता है
रिश्तेदारों से रिश्ते की बातें होती हैं शुरू
घर के काम में बनाई जाती हैं पारंगत
छत पर चढती है अँधेरे के साथ
चाँद देखती हैं तो निचे से खीच लाती हैं अपनों की आवाज
आवाज उठाती हैं तो तमाशबीनों की भीड़ जमा होती है आस पास
डराई धमकाई जाती है
पिता के काम माँ की शालीनता पर उठते है सवाल
भाई से नही मिलाती आँख
ये बोलती हैं तो बदनाम होती है
बस्ते को स्टोर रुम में नही रखवाना इन्हें
ना आनन् फानन में करवाने हैं पीले हाथ
छत आसमान नदियों के रास्ते ये बढ़ना चाहती हैं
ये बदद्बुदर सोच से घिरी लडकियाँ
गन्दी नजर से लिथड़ी लडकियाँ
चुप चाप अच्छी लडकियाँ बन जाती हैं
मुस्कराती है
ना आनन् फानन में करवाने हैं पीले हाथ
छत आसमान नदियों के रास्ते ये बढ़ना चाहती हैं
ये बदद्बुदर सोच से घिरी लडकियाँ
गन्दी नजर से लिथड़ी लडकियाँ
चुप चाप अच्छी लडकियाँ बन जाती हैं
मुस्कराती है
लड़कियां बोलती नहीं
चुप रह जाती हैं……
चुप रह जाती हैं……
***
समझौता
वो किनारों पर रेत लिखती थी
पथ्थरों के सीने पर पछीट आती लहरें
इतनी सी सीपी में बंद कर रख आती
इन्द्रधनुष
षितिज के माथे चिपका आती रात उतारी बिंदी
पानी पानी उचारती बंजर को ओढा आती हरी चादर
खिडकियों में कैद रखती मौसमों को
पथ्थरों के सीने पर पछीट आती लहरें
इतनी सी सीपी में बंद कर रख आती
इन्द्रधनुष
षितिज के माथे चिपका आती रात उतारी बिंदी
पानी पानी उचारती बंजर को ओढा आती हरी चादर
खिडकियों में कैद रखती मौसमों को
एक दिन नींद से हार गई
चूल्हे से किया समझौता
बिस्तर पर लिखी गई मिटाई गई
दीवारों पर रंग सी लगाई गई
पैरों के नीचे धरती लेकर चली लडकी
औरत बनी और खनक कर टूट गई
चूल्हे से किया समझौता
बिस्तर पर लिखी गई मिटाई गई
दीवारों पर रंग सी लगाई गई
पैरों के नीचे धरती लेकर चली लडकी
औरत बनी और खनक कर टूट गई
नदियाँ भाग रही है उसे खोजती सी
वो लहरों सी पछिटी जा रही है
समय के पत्थर पर
सात टुकड़ों में बंद इन्द्रधनुष
सीपी में कराह रहा
खिड़की की आँखे मौसम निहार रही
वो लहरों सी पछिटी जा रही है
समय के पत्थर पर
सात टुकड़ों में बंद इन्द्रधनुष
सीपी में कराह रहा
खिड़की की आँखे मौसम निहार रही
चूल्हे के सामने लगातार पसीज रही धरती
इनकें पैरों में खामोश पड़ी है।
***
एक थी मैना
रेलों के लिए बचाई जा रही पटरियां
यात्रियों के उतरने को बनाये गये प्लेटफोर्म
हवाओं को काट कर उडाये गये होंगे हवाई जहाज
स्याही की खेती कवियों की बेचैन रातो का किस्सा होगी
मुंडेर पर बचे धान से पहचान जाती है गौरय्या हमारी फितरत
यात्रियों के उतरने को बनाये गये प्लेटफोर्म
हवाओं को काट कर उडाये गये होंगे हवाई जहाज
स्याही की खेती कवियों की बेचैन रातो का किस्सा होगी
मुंडेर पर बचे धान से पहचान जाती है गौरय्या हमारी फितरत
रेशमी डोरियों की नोंक पर बिंधी मछली की चीख
होगी
संवेदना को बचाने की जुगाड़ में समय ने सरका दिए खाली कागज
जेब में बचा अकेला सिक्का भूल जाता है खनकना की खनकने की खातिर भिड़ना पड़ता है
संवेदना को बचाने की जुगाड़ में समय ने सरका दिए खाली कागज
जेब में बचा अकेला सिक्का भूल जाता है खनकना की खनकने की खातिर भिड़ना पड़ता है
जाल से छान लिए गये कबूतरों ने आसमान चुन
लिया
बार बार बिखरी कविता को संभाला सहेज ठीक ठाक किया हिज्जे मात्राओं को असा कसा
बार बार बिखरी कविता को संभाला सहेज ठीक ठाक किया हिज्जे मात्राओं को असा कसा
मैंने अभी अभी लिखा तुम्हारा नाम
कबका लिखा जाना था ना इसे
मैं देर से समझती हूँ
की पलटती मोड़ पर छूट गई तुम्हारी नजरों से एक मौन कुछ बोलता सा रहा
कबका लिखा जाना था ना इसे
मैं देर से समझती हूँ
की पलटती मोड़ पर छूट गई तुम्हारी नजरों से एक मौन कुछ बोलता सा रहा
मैंने बड़ी देर से दुरुस्त किये घरौदे
ओह तो तुम बरसे थे ..भींगी थी
तुमने तपाया था धूप सा ..लाल थी आँखे
प्यासी रेत बिखरती रही
ओह तो तुम बरसे थे ..भींगी थी
तुमने तपाया था धूप सा ..लाल थी आँखे
प्यासी रेत बिखरती रही
किसे किसके लिए बनाया गया की खोज ने
मुझे तुमसे दूर कर दिया
मुझे तुमसे दूर कर दिया
दरम्यान सुना बड़ी पहाड़ियां खड़ी कर दी गई
उफनती नदियों को छोड़ दिया गया
बंद हो गई स्याही की खेती
उफनती नदियों को छोड़ दिया गया
बंद हो गई स्याही की खेती
हौले से निकल जाती हूँ उन रेल पटरियों पर
प्लेटफोर्म सदियों से एक मुसाफिर की खातिर बिछा है
प्लेटफोर्म सदियों से एक मुसाफिर की खातिर बिछा है
पहाड़ी गीत के मीठे बोल सा सपना
एक थी मैना, एक था पिंजरा और एक राजा भी था ….
एक थी मैना, एक था पिंजरा और एक राजा भी था ….
***
ऐसा प्यार ,वैसा
प्यार
जब हम प्यार करते है
हम अपने तरीके दुनियां के मायने गढ़ने लगते हैं
हम इसकी उसकी बात नही सुनते
हम उस अनुभव में गले तक डूबना चाहते है
हम अपने तरीके दुनियां के मायने गढ़ने लगते हैं
हम इसकी उसकी बात नही सुनते
हम उस अनुभव में गले तक डूबना चाहते है
हमारे लिए उसकी खरीदी डायरी पर उसके हाथो
लिखा अपना ही नाम नये अर्थों में दिखाई देता है
मन की बेवकूफियां समझदारों को नही समझाते हम प्यार में है
मेरी नजर में तुम्हारी दुनियां ,तुम्हारी धडकन में मेरा होना
मन की बेवकूफियां समझदारों को नही समझाते हम प्यार में है
मेरी नजर में तुम्हारी दुनियां ,तुम्हारी धडकन में मेरा होना
और ये भी की सोचो तो मुझे ,याद करो मेरी बात
समय को परे धकेल मेरे पास आ जाओ
देखो! बस मुझे सुनो मुझे सुनाओ
समय को परे धकेल मेरे पास आ जाओ
देखो! बस मुझे सुनो मुझे सुनाओ
इनकी उनकी बातें कर शूल मत चुभाओ
सुनो बस मेरी बात पर मुस्कराओ
आँख भर बेचैनी में काट दो रात
करते रहो जरा अह्की बहकी बात
सुनो बस मेरी बात पर मुस्कराओ
आँख भर बेचैनी में काट दो रात
करते रहो जरा अह्की बहकी बात
चीटियाँ लाइन से चढ़ रही ऊँची दिवार
सुखा पत्ता डूबता उतरता हो रहा नदी के पार
दिन ने हाथ बढ़ा साफ़ कर दिए चाँद के जाले
नांव नदी के हवाले
बिजली के तार पर चहक रही मैना
लाल फूल पर रंग ओढ़ी तितलियाँ
सुखा पत्ता डूबता उतरता हो रहा नदी के पार
दिन ने हाथ बढ़ा साफ़ कर दिए चाँद के जाले
नांव नदी के हवाले
बिजली के तार पर चहक रही मैना
लाल फूल पर रंग ओढ़ी तितलियाँ
ओह ये पुरुआ पछुआ बयार
जलते दीये में बुझी हुई रात
खत्म तेल में पतंगे की देह
बसंत को आजीवन जेल
जलते दीये में बुझी हुई रात
खत्म तेल में पतंगे की देह
बसंत को आजीवन जेल
मन पतझड़ का पेड़
जिद्द फिर भी बंजर का बीज
चलो रोप आयें
उम्मीद की तीलियाँ सुलगाएं
जिद्द फिर भी बंजर का बीज
चलो रोप आयें
उम्मीद की तीलियाँ सुलगाएं
और फिर दुहरायें
कोरे पन्ने पर लिखो मेरा नाम
चमकती जोड़ी भर आँख भी बना दो
झूठा ही सही बहला दो
कोरे पन्ने पर लिखो मेरा नाम
चमकती जोड़ी भर आँख भी बना दो
झूठा ही सही बहला दो
………वही.. सुंदर है आँख ।मीठी है बात।।
लम्बे बालों पर फिसलती परियों की कहानी हो तुम …
तुम वही न सुदर्शन राजकुमार ..जो लेजाता है लडकी को सात समन्दर पार …
तुम वही न सुदर्शन राजकुमार ..जो लेजाता है लडकी को सात समन्दर पार …
राजकुमार जादू जानता है लडकी को बना देता है
परिंदा
अब प्यार पिंजरे में जिन्दा
बिजली के तार पर बैठी मैना चहक रही बार बार
ऐसा प्यार वैसा प्यार….
बिजली के तार पर बैठी मैना चहक रही बार बार
ऐसा प्यार वैसा प्यार….
***
इस पोस्ट में लगायी गईं अमृता शेरगिल की पेंटिग्ज़ गूगल से साभार
Shailja Ka niyamit paathak hun. Dost to khair hun hi. Samkaaleeno mein sb se adhik likhti hain. Inki kavitaon mein ek aurat ki vaastvik duniya khulti hai. Bhaav aur bimb ke liye inki kavitain khaas pachani jaati hain. Yahan bhee shaandaar kavitain hain. Haardik badhai! Abhaar anunaad!!
– kamal Jeet Choudhary.
अगर ये युग कटनी पीसनी का होता तो ये लोक गीत होते जहाँ स्त्रियाँ गढ़ती है स्वम का एकांत और फिर सखियों को सम्बोधत करते गीतों में कहती हैं अपनी अनसुनी अनकही पीडाएं .मगर एक बात है जो इन कविताओं को सिर्फ पीड़ा कहने वाली लोकगीतों की श्रेणी से अलग करती है .कहते कहते शैलजा टप्प से एक ऐसी बात कह जाती है जो इन्हें विमर्श की श्रेणी में ला खड़ा करती हैं .मेरी प्रिय कवयित्री को ,उनकी कलम को ,अद्भुत संवेदन शीलता को मेरी अशेष शुभकामना .
शैलजा की पांच ऋचाएं
पंचतत्व है।
पंच भूत है।
पञ्च अग्नि हैं।
पञ्च कन्याओं की संभावनाओं का दमन चित्र है।
पञ्च केदार पञ्च बद्री पञ्च प्रयाग सी पवित्रता भाव और अंतस की कहानियाँ हैं।
पञ्च परमेश्वर सी प्रेमचंदीय संसार में पञ्चलाइट सी मन के विकार को भाती भागते भाती भगाती पांचजन्य शंख सी चेतावनी है पुकार है।
बाकि कल
आभार अनुनाद shirish jee
कंडवाल मोहन मदन
शैलजा की कविता पर परिचयात्मक टिप्पणी से सहमत हूँ ! सुन्दर कवितायेँ !
सुन्दर रचना
शैलजा की कविताओं में भावों का एक अजीब बिखराव है, ठीक वैसा ही जैसा ज़िंदगी में होता है. शिल्प, शब्दानुशासन के बंधन और बिम्बों से चमत्कार पैदा उनकी फितरत नहीं हैं. उनके शब्द जब किसी भाव-क्षण को व्यक्त करने चलते हैं तो किसी पहाडी नदी के प्रवाह में उस क्षण से जुड़े अनुभवों को उछलते, बिखराते बस बह निकलते हैं. प्रकृति, सूरज, चाँद, सितारे, मिट्टी, पेड़ या नदियाँ सब इनकी अभिव्यक्ति में बतौर साक्षी पाठक के मन में बिम्बों के अक्श उभारते यहाँ-वहां फ़ैल जाते हैं. शैलजा शायद इसी वजह से कुछ भी सायास रचती नहीं लगतीं, कुछ बड़बड़ाती बल्कि गुनगुनाती सी प्रतीत होती हैं. उनकी कवितायें एक उलझे हुए दौर में एक सहज मन में घुमड़ती गुत्थियों से स्वयं ही उलझते हुए उन्हें सुलझाने की कोशिशें हैं. शायद हम सब के मन की गांठें उनकी इस कोशिश से खुलने को कसमसाती हैं, इसी लिए वे हमें इतनी पसंद आती हैं.
बहुत सुन्दर और सशक्त कविताये
शैलजा जी कविताएँ पढ़ना गहरी अनुभूतियों से रु ब रू होना होता है…………..
सरल शब्दों की जुगलबंदी में बड़ी सहजता से अपनी बात कह देने का आला हुनर रखती हैं शैलजा पाठक ….शुभकामनाएं
कितनी स्त्रियाँ है बुआ के यहाँ, बुआ के पास, और कितनी भयभीत कातर लेकिन कितनी जीवन से लबालब भरी-पूरी 'सामंती पितृसत्ता का दंश कितना भयानक है उनमें 'अब जो आये हैं नैहर चल खनकते हैं ………….फिर ..चुपके से …टूट जाते हैं ..' या फिर ' पहाड़ी गीत के मीठे बोल सा सपना
एक थी मैना, एक था पिंजरा और एक राजा भी था ….' या फिर बिजली के तार पर बैठी मैना चहक रही बार बार
ऐसा प्यार वैसा प्यार….
मुझे लगता है उनकी कविताओं में उतनी ही हताशा उदासी भी है जितनी उम्मीद! खाश कर दिन ब दिन कसते बाजार और पितृसत्ता का भी साथ में इतनी असुरक्षा के बीच 'बिजली के तार पर बैठी मैना चहक रही बार बार' इससे ज्यादा क्या जीवटता हो सकती है बुआ की उन्हें बधाई अच्छी कविताएँ !
shailja ko padate hu ma ji leti hu apana jivan soni pandey
बहुत सुन्दर रचनाएँ …पाँचों
छुटकी की शिल्प भरी बड़ी मटकी सी 🙂
आभारी तो हम आपके हैँ । इतनी सुन्दर रचनाएँ पोस्ट करने के लिए साधुवाद
सुन्दर कवितायेँ
हमेशा की तरह सार्थक और उद्देश्यपूर्ण कवितायें…बहुत बधाई