अनुनाद

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अमेरिकी अश्वेत युवकों का प्रतिरोध गीत :2 / भावानुवाद एवं प्रस्तुति – यादवेन्द्र



अगस्त 2014 के पूर्वार्ध में सेंट लुइस के अश्वेत बहुल फर्गुसन में 18 वर्षीय अश्वेत नौजवान माइकेल ब्राउन की एक गोरे पुलिस ऑफिसर डेरेन विल्सन ने दिन दहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी और आरोप लगाया कि वह उसकी पिस्तौल छीनने की कोशिश कर रहा था सो आत्म रक्षा में उसपर गोली चलायी।विल्सन का आरोप है कि इलाके में हुई एक वारदात के दो संदिग्धों के साथ ब्राउन और उसके साथी डोरियन जॉनसन की शक्ल मिलती थी और ब्राउन मुझे किसी राक्षस ( डेमन) जैसा लगा ,सो मैंने उनपर गोली चलायी। मारे जाने के वक्त ब्राउन पर सीधा सीधा कोई गंभीर आरोप नहीं था और न ही उसके हाथ में कोई हथियार था। बाद में डोरियन जॉनसन को भी पकड़ लिया गया। इस हत्या के बाद फर्गुसन लगभग एक हफ़्ते तक आक्रोश और हिंसा की आग में झुलसता रहा। हद तो तब हो गयी जब सेंट लुइस की ग्रैंड जूरी ने पुलिस ऑफिसर डेरेन विल्सन  को निर्दोष बता कर आरोपमुक्त कर दिया। पर इस घटना की आँच पूरे अमेरिका में फ़ैल गयी और नागरिक अधिकार ऐक्टिविस्ट के अलावा शीर्ष संगीतकारों और कलाकारों ने प्रतिरोध प्रदर्शन आयोजित किये — रैपर जे कोल का गीत आज़ाद रहो (बी फ़्री) फर्गुसन के इस हत्याकांड का ट्रेडमार्क गीत बन गया जो आम अश्वेत युवा की भावनात्मक अभिव्यक्ति है। इंटरनेट के साउंडक्लाउड पर जैसे ही कोल ने यह गीत लोड किया ,कुछ घंटों के अंदर ढ़ाई लाख बार इसको देखा सुना गया। दर असल मारा गया नौजवान माइकेल ब्राउन खुद ही एक उभरता हुआ रैपर था जिसके कई गीत साउंडक्लाउड पर उपलब्ध हैं।   
रैपर जे कोल ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि “कोई अचरज नहीं कि माइकेल ब्राउन की जगह गोली उसके सीने में लगती …. किसी न किसी अश्वेत नौजवान की हत्या को लेकर इतनी असंवेदनशीलता ने मुझे झगझोड़ दिया है। “

अनुनाद के पाठकों के लिए यहाँ उपर्युक्त गीत का भावानुवाद प्रस्तुत है :


आज़ाद रहो 

और मैं नकार की मुद्रा में हूँ 
और किसी एक्स रे की दरकार नहीं होगी 
जो बेध कर देख सके मेरी मुस्कान के पीछे की असलियत
मुझे मालूम है मुझे आगे बढ़ते रहना होगा
और दुनिया में अबतक बना नहीं कोई ऐसा पेय 
जो अब शिथिल कर दे मेरी चेतना  
कोई भी नहीं ….  

हम सब बस इतना चाहते हैं 
कि अब हट जायें सभी  बंधन 
हम सब बस इतना चाहते हैं
कि तोड़ डालें सभी जंजीरें 
हम सब बस इतना चाहते हैं कि अब मुक्त हो जायें 
हम सब बस इतना चाहते हैं कि अब आज़ाद हो जायें।

क्या आप मुझे बता सकते हैं 
कि घर से बाहर कदम रखते ही क्यों दिख जाता है 
दम तोड़ता कोई न कोई मेरा काला भाई ?
अब मैं आपको बता देना चाहता हूँ 
कि ऐसी कोई बंदूक़ वे बना नहीं पायेंगे  
जो मार सके मेरी चेतना को। 

(डोरियन जॉनसन का आँखों देखा ब्यौरा ) 
ऐसा लग रहा है जैसे अब ऑफिसर उसको कार के अंदर खींच रहा है और वह जी जान से प्रतिरोध कर रहा है। ऑफिसर ने एक बार भी उसको कोई चेतावनी नहीं दी …. इस धक्का मुक्की में उसकी पिस्तौल खिंच गयी तो उसने गरज कर कहा :”मैं तुम्हें गोली मार दूँगा “…… “देखो ,मैं तुम्हें शूट कर रहा हूँ। “…… और उसी पल गोली चल भी गयी। हमने देखा उसको गोली मार दी गयी है और लहू की तेज धार वहाँ से चारों तरफ़ फूट रही है …. यह देख कर भागते हुए हम जहाँ थे वहीँ ठहर गये।

क्या हम इतने अकेले हैं 
कि ख़ुद ही अदद अकेले लड़ रहे हैं अपनी लड़ाई
मुझे देना एक मौका करना नहीं अब डांस
कुछ ऐसा हुआ है जिसने जकड़ लिया है मुझको
और अब मैं खड़ा हो जाऊँगा डट कर सीना ताने 
आप भी तमाशबीन बन कर अब मत खड़े रहो 
सब कुछ देखते हुए अब खामोश मत खड़े रहो ……

(डोरियन जॉनसन का आँखों देखा ब्यौरा )
दौड़ते दौड़ते जब हम ठहर गए तब अपनी जान बचाने को नीचे झुक गया ,मुझे जान प्यारी थी। सामने सबसे पहले जो कार दिखाई पड़ी मैं  उसके पीछे छुप गया। मेरा दोस्त दौड़ता जा रहा था और उसने मुझे भी रुकने से मना किया …. उसको लगा कि रुका  तो मेरी जान भी नहीं बचने वाली  उसको दौड़ते देख पुलिस ऑफिसर ने चलती कार से नीचे उतरने की कोशिश की। उसने मेरे दोस्त को रुकने को कहा और अपनी पिस्तौल निकाल कर तान ली …. किसी ने उसके ऊपर निशाना नहीं साधा था ,साधता भी कैसे हम में से  किसी के पास हथियार था ही नहीं।जब वह कार से नीचे उतरा तो उसकी पिस्तौल उसके हाथ में तैयार थी…. उसने गोली दागी जो सीधे मेरे दोस्त को लगी। वह झटके से दूसरी ओर घूम गया और उसकी बाँहें हवा में लहरायीं …. वह चलती कार से नीचे घिसटने लगा पर ऑफिसर अब भी गोलियाँ बरसाता जा रहा  था — उसके बाद भी उसने सात गोलियाँ और दागीं ….और  मेरा दोस्त मर गया।    

                                           (प्रस्तुति एवं भावानुवाद : यादवेन्द्र )    

0 thoughts on “अमेरिकी अश्वेत युवकों का प्रतिरोध गीत :2 / भावानुवाद एवं प्रस्तुति – यादवेन्द्र”

  1. नस्लवादियो के विरोध में सही और सटीक शब्द दिए है….यह आक्रोश भीतर कही से उबलकर अपनी आप बीती सा लगता है
    यही सब तो होता था यहाँ भारत में,
    जब हम गुलाम थे

  2. पिछली बार बी फ्री का अनुवाद पढ़ा जिसमे अश्वेत युवक का बूट की नोक से गला दबाया गया . अबकी बार यह जिसमें जनता को तमाशबीन न बने रहने और खामोश न रहने का आह्वाहन किया गया…. आजके तथाकथित आधुनिक समय में इस तरह की घटनाएं दहलाने वाली हैं और सोचने के लिए मजबूर करती है कि यह कैसा समय है , क्या यही आधुनिकता है ।..यादवेन्द्र जी और अनुनाद को धन्यवाद इस कविता के भावानुवाद को साझा करने के लिए.

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