अनुनाद

एक क्रोनिक कवि का साक्षात्कार (व्यंग्य) – राहुल देव


पूर्वकथन-
अँधेरी आधी रात का पीछा करती गहरी घनेरी नींद | नींद में मैं, सपना और दादाजी | दादा जी सपनों में ही आ सकते थे क्योंकि अब वह इस ज़ालिम दुनिया में जीवित नहीं थे | पिताजी बताया करते थे कि मेरे दादा जी अपने ज़माने में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे थे और गाँधी जी के साथ मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया था | वो बात अलग है कि उनका नाम इतिहास में पढ़ने को नहीं मिलता | सपने में दादाजी की आत्मा को अपने माथे पर हाथ फेरते देखकर मैं थोड़ा डर सा गया लेकिन जब उन्होंने कहा बेटा रामखेलावन डरने की बात नहीं | मैं तुम्हारे नालायक बाप रामसखा का इकलौता बाप यानि तुम्हारा दादा रामअवतार पाण्डे हूँ | यहाँ पर मैं यह भी बता देना चाहूँगा कि हम भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक मंगल पाण्डे के खानदानी नहीं हैं | पता नहीं क्यों लोग मुझसे कहते हैं कि वह मेरे लक्कड़दादा थे | मैं उनकी पांचवीं पीढ़ी का बचा हुआ अंतिम चिराग हूँ | लेकिन यह सच नहीं है | हाँ तो मेरे फ्रीडम फाइटर दादा श्री रामअवतार पाण्डे जी की आत्मा ने मुझसे कहा, “कैसे हो रामू बेटा” मैंने कहा “एकदम फिट एंड फाइन दादा जी आप अपने हाल बताइए आप कैसे हैं ? उन्होंने कहा “अबे घोंचू ! हिंदी की टांग मत तोड़, मेरी छोड़ और अपनी सुन | अब भारत में अँगरेज़ तो बचे नहीं जिनसे तू लोहा लेकर अपनी खानदानी परम्परा को आगे बढ़ाए और फिर तू ही देख मुझे लोहा लेकर भी क्या हासिल हुआ ये कमबख्त नरक…. | “क्या दादाजी आप नरक में ? लेकिन आपको तो स्वर्ग में होना चाहिए था !” “अबे मूर्ख मैंने अंग्रेजों से लोहे के साथ साथ जो जो धातुएं लीं वह सब घर के आँगन में गड़ा हुआ है | इसलिए तेरा दादा अनिश्चित काल से यहाँ नरक में पड़ा हुआ है | मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं है इसलिए कान खोलकर सुन मैं तेरा पुरखा तुझे आदेश देता हूँ कि तू अब मेरी बेईज्ज़ती का बदला कवि बनकर इस देश की जनता से ले | ठीक है दादा जी जैसी आपकी इच्छा | और जब सुबह मेरी आँख खुली मैंने स्वयं को कवि के रूप में पाया | फिर उसके बाद मैंने मुक्तिबोध की तरह फैनटेसी में रहकर यथार्थ को सिरजा | समय बीतता गया | सब मरते चले गये, मैं जीवित रह गया | मैं आज भी जिंदा हूँ | हमाम में नंगा हूँ | अच्छा, खासा, भलाचंगा हूँ | हरओर बस मेरी ही माया का सरमाया है | मैं कवि बनने से पहले चिंदीचोर था अतः आप मेरी भाषा पर न जाएँ, भावनाओं को समझें बस | दादाजी को श्रद्धांजलि का डेली डोज़ देने के बाद मैं पलटा तो देखा दरवाजे पर एक नामी पत्रिका का बेबस पत्रकार कम साहित्यकार कम संपादक हाथ जोड़े खड़ा है | ओह, याद आया आज वह मेरा साक्षात्कार लेने आया है | अपनी रामकहानी ज़रा लम्बी है इसलिए फिर कभी फ़िलहाल चलिए साक्षात्कार शुरू करते हैं |

साक्षात्कार-

वह- तो सबसे पहले आप यह बताएं कि आपका हिंदी साहित्य की ओर कब, क्यों और कैसे आना हुआ ?
मैं- एक दिन मैं चला जा रहा था इलाहाबाद के पथ पर तो हिंदी साहित्य को मैंने सड़क के दूसरी ओर पड़े हुए देखा | वह मुझे आर्तस्वर में पुकार रहा था | मुझसे उसकी यह दीनहीन दारुण दशा देखी नहीं गयी और मैं लपककर उसकी ओर आ गया | यह साहित्य की शाश्वत करुणा और एक कवि के कुटिल प्रेम का महामिलन था | ज्ञानात्मक संवेदना के उस चरम पर मैंने अपनी पहली रचना लिखी थी जिसे छपने से पहले किसी ‘निराले’ कवि ने चुराकर अपने नाम से छपवा लिया था | मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और तबसे लेकर आज तक उस पथ पर चलता आया हूँ, चल रहा हूँ | यह पथ पहले बहुत कच्चा था, बहुत गड्ढे थे इस पथ पर | अब सुविधा हो गयी है | मेरे अवदान को देखते हुए नेताजी ने चलने के लिए इस पथ पर जोकि इलाहाबाद से वाया लखनऊ दिल्ली तक जाता है, अब पक्की रोड का निर्माण करवा दिया है |

‘जिंदगी’ के मायने आपके हिसाव से क्या हैं या कुछ यूँ पूछें कि आपकी इतनी लम्बी उम्र का राज़ क्या है ?
मेरे लिए जिंदगी एक अपार संभावनाओं की नदी के समान है | यह आप पर निर्भर करता है कि आप ‘बाल्टी’ लेकर खड़े हैं या ‘चम्मच’ !

– आप किस वाद के पोषक हैं ?
हम मायावादी हैं |

– यह कौन सा वाद है, ज़रा विस्तार से बताएं ?
मुझे मालूम था कि आप सोच रहे होंगें यह कैसा, कौन सा नया वाद है | आप दुविधा में पड़ चुके हैं इसलिए आपको न माया समझ में आ रही है और न वाद | यही मायावाद की सफलता है | हम साहित्यिक भ्रम के गोदाम में आश्वासन के तात्कालिक लालच का परदा डालकर भाषा की चाशनी में रचना का मुरब्बा तैयार कर उसे कविता के डिब्बे में पैक कर बाज़ार में उतार देते हैं | इसकी चमक-दमक को देखकर बड़े बड़े लोग इस सस्ते फार्मूले के नकली उत्पाद को महँगा और असली समझकर चकमा खा जाते हैं फिर आप किस खेत की मूली हैं | यह पूँजीवाद का साहित्यिक दख़ल है जिसे आप रोक नहीं सकते बल्कि हँसते हँसते स्वीकार करते हैं | लेखक संगठन भी हमसे डरते हैं | लेखक खुद हमसे अपना शोषण करवाने को तैयार बैठा है | इस लूटतंत्र में अनैतिकता का बोलबाला यूँ ही नहीं | वह शोषित भी होता है और अपना मजाक भी उड़वाता है | उसे इस खेल में कुछ भी हासिल नहीं होता | जनता दूर से देखकर मज़े लेती है और प्रकाशक अपनी जेब भरता है | साहित्यिक शुचिता की बात करना यहाँ एक अघोषित अपराध है | ईमानदार आदमी का यहाँ कोई काम नहीं | वह हाशिये की विषयवस्तु है | उसे चर्चा में रहने का कोई अधिकार नही | मायावादियों को चर्चें के लिए खर्चें की नितांत आवश्यकता है |

– वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में आये परिवर्तनों को किस तरह से देखते हैं ?
बहुत परिवर्तन आया है | मेरा शिष्य ‘बुखार अविश्वास’ किस तरह कविता की कमर तोड़ रहा है आपको तो मालूम ही होगा | आजकल उसके चर्चे ही चर्चे हैं | मेरा खूब नाम रोशन कर रहा है मेरा चेला | इन्टरनेट पर मेरे लाखों फाल्लोवेर्स हैं | सारे वैश्विक संकटों को धता बताते हुए कविता के बाज़ार में बूम आया हुआ है | कविता की ऐसी प्रगति पहले कभी नहीं हुई | विमर्शों की आंधी आई हुई है | धड़ाधड़ उत्सव हो रहे हैं | ‘आलूचना’ की सैकड़ों दुकानें सजी हुई है | लोग पढ़ने के अलावा सब काम कर रहे हैं | सब ओर आनंद ही आनंद है | मैं यह सब बदलाव देखकर बहुत खुश हूँ लेकिन कुछ चालू टाइप के लोगों को मेरी ख़ुशी रास नहीं आती | उन्हें समझना चाहिए कि इस पवित्र दलदल में धंसे बगैर यह सुख हासिल नहीं होगा | मैं अपनी बाहें फैलाए उन्हें अपनी ओर बुलाता हूँ | कहता हूँ मेरी शरण में आओ, लेकिन वे बिदकते हैं | मुझ पर तरह तरह के मिथ्या आरोप लगाते हैं | (हाथ उठाकर) नादान हैं वे, ईश्वर उन्हें क्षमा करे !

– अपनी रचनाधर्मिता के बारे में आप क्या कहेंगें ?
मेरी रचनाधर्मिता का ब्यौरा यहाँ एक पैरा में नहीं समाएगा | उसके लिए आप अपनी महिला मित्र के साथ कल शाम सात बजे कॉफ़ी हाउस में मिलें | वहां तफ्सील से बताऊंगा |

– वर्तमान में आप क्या लिख-पढ़ रहे हैं और क्या कुछ लिखने की आपकी योजना है
हाँ…अभी मुझे जो लिखना था वह लिखा ही कहाँ है | ‘छपास सुख’ नामक महाकाव्य, ‘पुरस्कार महात्म्य’ नामक खंडकाव्य, ‘उजाले में उल्टी’ नामक लम्बी कविता साथ ही अपनी आत्मकथा ‘बेदर्दी बालम’ और एक कविता संग्रह जिसका शीर्षक है ‘कविता में नींद’ लिखने की पंचवर्षीय योजना तैयार है | साहित्य अकादेमी से बजट स्वीकृत होते ही लोकार्पण की घोषणा करूँगा | वर्तमान में मैं हनुमान चालीसा पढ़ रहा हूँ |

– आपके विचार में कविता तथा कविकर्म क्या है ?
कविता मेरे लिए उस गाय की तरह है जिसे मैं रोज़ सुबह-शाम दुहता हूँ | कविकर्म मेरे लिए नित्यकर्म से भी बढ़कर है |

– आपके प्रिय कवि/ लेखक ?
प्रसाद, प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध, नागार्जुन, त्रिलोचन, परसाई, अज्ञेय, भारतभूषण, केदारनाथ अग्रवाल, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर, धूमिल, दुष्यंत, केदारनाथ सिंह, अरुण कमल, राजेश जोशी, कुमार अम्बुज आदि मेरे प्रिय कवि लेखक नहीं हैं | इनको छोड़कर जो बचे उनको मैंने पढ़ा नहीं है |

– कविता आपके लिए क्या है ?
कविता मेरे लिए ‘चुल्लू भर पानी’ है जिसमें डूबकर भी कोई नहीं डूबता |

– लेखन के अलावा आपकी रुचियाँ और शौक?
जब आदमी लिखना शुरू कर दे तो अन्य रुचियाँ वैसे ही ख़त्म हो जातीं हैं जैसे कि मालदार आदमी के सिर के बाल | शौक़ीन आदमी मैं हूँ नहीं | वैसे आपके झोले में से ये बोतल जैसा क्या झांक रहा है ? क्या है दिखाइए दिखाइए ??
………………..
……………….
मध्यांतर……..गट..गट.गट…
कुछ देर बाद…चैतन्य होते हुए – बहुत बढ़िया…
हाँ हाँ आगे पूछिए, जो पूछना है पूछिए, दिल खोल के पूछिए —

– पिछले वर्ष के साहित्यिक लिखत-पढ़त पर आपकी राय ?
यह प्रश्न आपको शिरिमान ‘सिलौटी नारायण राय’ से पूछना चाहिए | आजकल उनके स्थानापन्न ‘व्योम उत्पल’ भी चलेंगें |

– कौन-कौन सी पुस्तकें हैं जिन्हें आप बार बार पढ़ना पसंद करेंगे ?
इतना टाइम किसके पास है | अब मेरे पास क्या एक यही काम रह गया है | मैं एक बार कोई पुस्तक उलट-पुलट कर देखने के बाद उसे दुबारा छूना पसंद नहीं करता |

– साहित्य की कौन सी विधा आपको सर्वाधिक आकर्षित करती है ?
मेरा कवि मन ‘व्यंग्य’ में ज्यादा रमता है | वैसे ‘कविता’ मेरा पहला प्यार है |

– आप किस बात पर सबसे अधिक खुश होते हैं ?
जब मेरे मुँह पर कोई मेरी (झूठी) प्रशंसा करता है |

– आप किस बात को लेकर सबसे अधिक दुखी होते हैं ?
जब मेरी कालजयी रचनाओं को कोई पुरस्कार दे देता है तब साहित्य की दुर्दशा पर मुझे अन्दर से वाकई अफ़सोस होता है | लेकिन मैं इस दुःख को जाहिर नहीं होने देता हूँ | शालीनता से मुस्कुराता रहता हूँ | क्या करें, होने और दिखने में फ़र्क है भाई !

– अपनी साहित्यिक सेवा / ज़मीनी संघर्ष का कोई किस्सा बताएं ?
मेरा धुर विरोधी दुर्दांत आशावादी पिछले बीस सालों से साहित्य की एकांत साधना कर रहा था, उसकी ओर किसी ने झाँका तक नहीं | खूब संघर्ष किया उसने, घर के लोटिया-बरतन तक बिकने की नौबत आ गयी | उसकी गैरसाहित्यिक बीवी गुप्त रोग के शर्तिया इलाज़ के पर्चे छापने वाले राजू प्रकाशक के साथ भाग गयी | आजकल वही आशावादी मेरे घर में चौका बर्तन करता है और साहित्य को भूलकर चुपचाप अपना पेट भरता है | वह कब टपक जाय कोई गारंटी नहीं | मैंने उसे सहारा दिया है | यह साहित्य की सेवा नहीं तो और क्या है | उसने मेरी सेवा की अब मैं उसकी रचनाएँ अपने नाम से छपवाकर अपनी सेवा करवा रहा हूँ | सेवाओं का विशुद्ध आदान-प्रदान | आजकल सेवा में ही मेवा है |

– ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के प्रश्न पर आपका क्या कहना है ?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रश्न पर जिसने कुछ कहा वो जिंदा नहीं बचा | मरवाओगे क्या बे !

– आपको किस बात पर गर्व होता है ?
आप भी कमाल करते हैं | मैं हिंदी का (स्वघोषित) कवि हूँ, इससे ज्यादा गर्व की बात मेरे लिए और क्या होगी |

– आप कब सच बोलते हैं और कब झूठ बोलना पड़ता है ?
मैं दूध में पानी मिलाने वालों में से नहीं हूँ | मैं पानी में दूध मिलाता हूँ |

– आपकी विचारधारा क्या है ?
मेरी कोई विचारधारा नहीं है, यही मेरी विचारधारा है |

– आपके लिए जीवन दृष्टि ?
मेरे लिए जीवन आइसक्रीम की तरह है इससे पहले कि पिघलकर बह जाए, खा लेना चाहिए | दृष्टि मेरे ईर्ष्यालु पड़ोसी की बेकाबू लड़की का नाम है जो पिछले साल अपने प्रेमी के साथ भाग गयी |

– साहित्यकार कैसे बन गये ?
आप पत्रकार कैसे बन गए ? अमा बनना था बन गए | बच्चे की जान लोगे क्या !

– आप लिखते क्यों हैं ?
आप हगते क्यों हैं ? क्योंकि जब आपको हाजत महसूस होती है आप हगे बिना नहीं रह सकते | मेरी साहित्यिक निष्ठा पर इतने वाहियात किस्म के प्रश्नों की विष्ठा मत गिराइए | बहुत पुराना सवाल है, आगे पूछो |

– आपके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार ?
कि आप मेरा इंटरव्यू लेने आए | फ़िलहाल तो मेरे लिए यही पुरस्कार है | भारत में कवीन्द्र रवीन्द्र के बाद सबसे बड़ा पुरस्कार किसी को मिला नहीं है | मुझे कैसे मिले उसके लिए आज से सोचना पड़ेगा | आपने अच्छा याद दिलाया इसके लिए आपका धन्यवाद |

– आप किस बात से सबसे अधिक डरते हैं ?
अरे कैसी बात करते हैं आप | किसने कह दिया है कि मैं डरता हूँ | मैं किसी के बाप से नहीं डरता | (इधर उधर देखकर) अच्छा चलिए आप जान गये हैं कोई बात नहीं लेकिन किसी से कहिएगा नहीं कि मैं डरता हूँ |

– आपको सबसे ज्यादा गुस्सा कब आता है ?
जब मुझे लोग साहित्य का निर्मल बाबा बुलाते हैं |

– आपको सर्वाधिक संतोष कब मिलता है ?
जब मुझे कोई अमृतपान कराता है | जैसे कुछ देर पहले आपने कराया था | मुझे परम सन्तोष की प्राप्ति हुई | संतोषम परम सुखम बाकी सब दुखम दुखम ! हैरान न होइए, मेरी अपनी लाइन है |

– रचनाकर्म आपके लिए क्या है ?
रचनाकर्म मेरे लिए बाबाजी का वह ठुल्लू है जिससे मैं लोगों को उल्लू बनाता हूँ |

– आपके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी ?
यही कि मैं सब जगह होकर भी सबको नहीं दिखता हूँ | मैं साहित्यिक मिस्टर इंडिया हूँ |

– आपकी सबसे बड़ी कमजोरी ?
मिस्टर इंडिया कह दिया तो मेरी कमज़ोरी पूछ रहा है बुड़बक | (कलाई दिखाते हुए) देख कोई घड़ी नही है मेरे पास | ई काला जादू है बबुआ…ढूंढते रह जाओगे ! (मोगाम्बो जैसी शैतानी हंसी हँसते हुए) हा हा हा हा हा हा…

– आप अपनी कोई रचना सुनाइए….अच्छा रहने दीजिये !

– नयी पीढ़ी के लिए आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
अब सन्देश का जमाना नहीं लाइक, कमेंट, शेयर का ज़माना है | अगर मैंने अपने इनबॉक्स संदेशों की बात सार्वजनिक की तो हंगामा बरप सकता है | वैसे मैं खुद चिर युवा हूँ | मैं खुद को क्या सन्देश दे सकता हूँ |

“आपने साक्षात्कार हेतु समय निकाला, बहुत बहुत शुक्रिया”
“अजी ऐसी क्या बात है | हे हे हे | मैं भी बहुत (आ)भारी हूँ | धन्यवाद, दुबारा फिर आइएगा”

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राहुल देव
09454112975
rahuldev.bly@gmail.com

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