अनुनाद ने हमेशा से ही अन्य भाषाओं की कविताओं में आवाजाही का संकल्प रखा और निभाया है। हमारे आर्काइव में हमारा यह संकल्प देखा जा सकता है। भाषाएं वे नदियां हैं , जो भूगोल की सीमाओं से परे संसार के एक छोर से दूसरे छोर तक अबाध बहती हैं, हमारे हृदय ही उनका समुद्र हैं, जहां वे गिरती हैं। कहना न होगा कि अनुनाद की संकल्पना हमने ऐसे ही एक हृदय के रूप में की है। नए रूप में आने के बाद यह अनुनाद की पहली पोस्ट है, जिसे पारमिता षडंगी ने हमारे लिए संभव किया है उड़ीसा से आयी इन दो कविताओं के साथ। ये दोनों ही कवि साहित्य अकादमी पुरस्कृत समादृत वरिष्ठ कवि हैं।
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ढूंढते हुए : बंशीधर षड़ंगी
सबेरे-सबेरे कौए की “काँव-काँव“
कहने के सिवा और
कोई काम बाक़ी पड़ा है जो
इतनी जल्दी मची है !
वो फिर कल नहीं आयेगा क्या ?
सुखी नदी सो रही है साँप के जैसी
हवा पानी के आने से फिर उछल जायेगा,
पतझड़ पेड़ों का ख़ालीपन है
बारिश के गिरने से वह
ग़ायब हो जायेगा,
रास्ता भी मिल जायेगा
ठीक से ढूंढने पर ।
इस बीच मगरमच्छ ने
नदी के बीचोंबीच पहुंचा दिया है।
किसने क्या स्तुति की थी याद नहीं,
निरे शुष्क शब्दों में
प्रार्थना करने से नहीं चलेगा नहीं क्या ?
पलभर खड़े हो जाओ बरामदे के उपर स्पष्ट हो जायेंगी
सब बातों की अब तक न खोजी गई दिशा
और देर ना कर
वापस लाना होगा विश्वास को ।
कभी-कभी कहाँ से क्या बिगड़ जाता है
जो आस्था टूट जाये विश्वास से
बीच के *बरोड़ा हमेशा
हरकत झेलते हैं,
धान सब भूसा होने से
क्लेश होता ही है मन में ।
एक जगह पर और कितने दिन बैठेंगे ?
फिर लौटना संभव नहीं होगा
छोड़ आये घर को,
एक दिन अवश्य भेंट हो जायेगी,
ढूँढ़ते हुऐ लोक के साथ ।
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*बरोड़ा :- नारियल पेड़ के पत्ते
डॉ बंशीधर षड़ंगी
ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित कविता संग्रह ‘शबरीचर्या’ के लिए उन्हें सन् १९९१ में ओडिशा साहित्य अकादमी और कविता–संग्रह ‘स्वरोदय’ के लिये सन् २००६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (ओड़िया) से सम्मानित किया गया। उन्हें अन्य कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है।
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चित्र प्रतिमा : डॉ फनी मोहांती
किस चित्रकार ने सजा दिया है
तारों के दीप में प्राचीन आकाश को
किसी मन्वन्तर से तुम जो गई हो
ऐसे ही एक आकाशलोक में
जहाँ तुम्हारी न कोई ख़बर है
न कोई ठिकाना ।
तुम कहाँ हो मानमयी !
कौन-से इन्द्रियेतर राज्य में?
दीपावली की आलोक माला में?
नीले आसमान के झिलमिल किरणों में?
या अखंड नीरवता में ?
तैरते हुए बादलों के टुकड़ों में?
या महाशून्य की धुंधली हीरक पूरी में ?
कहाँ हो मानमयी?
गुनगुनाती काली रात की
मुलायम बिस्तर पर
गिटार की झनझन करती
टूटी हुई कर्कश रागिनी में ?
स्वच्छ अनंत सौंदर्य की मधुरिमा में,
घर वापस आती हुई ?
चिड़ियों की चहचहाहट में ?
या आषाढ़ की अलसाई बारिश में,
कहाँ हो तुम?
कौन-सी जगह हो , मानमयी ?
मेरा जीवन, मेरी मृत्यु
तुम्हारे गीतमय,
ताजा फूलों के जैसे
स्मृति और विस्मृति के न भूलने वाले
धीमे-धीमे जलने वाले
शाम के दिए जैसी।
तुम हो, तो वसंत है,
बहार है , वैराग्य है
भोग है और निर्वाण भी है,
न-न करके भी
जीवन का पात्र मेरा भरा हुआ है।
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डॉ फनी मोहांती
ओड़िया भाषाके विशिष्ट साहित्यकार हैं। डॉ. महांति को ‘ओडि़या और ‘केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार’ के साथ अंतर्जातिक हिंदी परिषद्, पटना से ‘साहित्य शिखर सम्मान’ से विभूषित किया गया है। वो अन्य कई पुरस्कार से सम्मानित भी हैं।
अनुवादक
पारमिता षड़ंगी:
ओड़िया साहित्य जगत में पारमिता षड़ंगी एक सुपरिचित नाम हैं । वह अपनी आँचलिकता में सशक्त स्त्री – कथाकार एवं कवयित्री ही नहीं, कुशल ओड़िया भाषानुवादक भी हैं। उन्हें हिंदी और ओड़िया साहित्य में कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी रचनाएँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों और विदेश में भी प्रकाशित हुई है। यहाँ प्रस्तुत उड़िया कवियों की रचनाओं का अनुवाद भी पारमिता षड़ंगी ने ही किया है।