अनामिका अनु हिन्दी की सुपरिचित कवि हैं। इधर उन्होंने कहानियॉं भी लिखी हैं। हंस में पूर्वप्रकाशित उनकी दो कहानियॉं हम अनुनाद पर लगा रहे हैं। इन कहानियों की भाषा और शिल्प में कहीं यह भी दर्ज़ है कि ये एक कवि की कहानियां हैं।
काली कमीज़ और काला कुर्ता
वह हर दिन संपादकीय लिखने के बाद थोड़ी देर के लिए चश्मे को खोलकर पास की टेबुल पर रख देती है। मोबाइल में बेंजामिन की सेव करके रखी गई तस्वीर को देखती है और लगातार उसकी आँखों से आँसू बहता रहता है। अचानक से कोई फ़ोन आ जाता है या कोई दरवाज़े पर दस्तक देता है।वह तनकर कुर्सी पर बैठ जाती है। झट से हथेलियों से आँसू को पोंछती है और टीसू को हाथ में पकड़े कहती है :
कम इन प्लीज़।
वह रोज़ समाचार बताता है। दुनिया भर के समाचार सुनाते वक़्त वह ख़ुद के दिले-हाल से आजकल बेख़बर नहीं हो पाता है।
समाचार पढ़कर निकलता है तो न्यूज़ रूम में घुसते ही बहुत-सी आँखें पूछती हैं –
तुम आजकल काली कमीज़ नहीं पहनते?
वह जब इस प्रश्न को अनसुना कर आगे बढ़ने की कोशिश करता है तब उसके मन में रेशम के धागे लिपट जाते हैं।हर बढ़ते कदम के साथ ,वे धागे पहले से कहीं अधिक टाइट और सख़्त हुए जाते हैं।मन हुक-हुक कर ,सुबक-सुबक कर टहक उठता है।वह बैग उठाकर बाहर आता है।एक सिगरेट धुँकता है और सीधे कार में बैठ जाता है।
उस एक रात के बाद उसकी काली कमीज़ कहीं चली गई।
क्या वह रेचल के पास चली गई।उसने उसे अपना काला कुर्ता समझकर अपने कपड़ों में रख लिया होगा।
रेचल हर दिन प्राइम टाइम देखने के लिए टी वी खोलती है। बेंजामिन की खड़ी नाक,चाँदी बाल ,चाँद हँसी और कलम को थामे सुंदर उंगलियाँ उसके जेहन में घुमड़-घुमड़ कर शोर मचाती हैं।बेंजामिन समाचार कहता जाता है ।रेचल कुछ नहीं सुनती। बेंजामिन सबकुछ कहता है देश की ख़बरें,दुनिया की ख़बरें,हर तरह की बातें।रेचल प्राइम टाइम ख़त्म होते ही टी वी बन्द कर देती है।फिर हर रात वह यही सोचते हुए गुज़ार देती है कि बेंजामिन ने काली कमीज़ क्यों नहीं पहनी?
रेचल अपना काला कुर्ता खोज-खोजकर बेहद परेशान हैं।ज़रूर ही वह बेंजामिन की काली कमीज़ के साथ चली गई होगी।
बेंजामिन रेचल के संपादकीय और सोशल प्रोफाइल पर सूक्ष्म नज़र रखता है।वह किस मंच पर क्या बोल रही है और क्यों बोल रही है? से ज़्यादा वह इस बात से परेशान हैं कि रेचल ने काला कुर्ता पहनना क्यों छोड़ दिया?
रेचल सोचती है बेंजामिन ने उससे प्रेम तोड़ लिया।वह उसके बारे में नहीं सोचता होगा। बेंजामिन समझता है कि रेचल ने उसे छोड़ दिया वह उसके बारे में नहीं सोचती होगी।
दोनों नहीं जानते प्रेम से स्थाई कुछ भी नहीं,न यह ब्रह्मांड,न इस जड़-चेतन की उपस्थिति,न ही समय की व्याप्ति।जिससे मन जुड़ जाए उससे जुड़ा ही रहता है।हम आदतानुसार इस सच को नकारने के लिए सभी प्रकार के स्थूल प्रयासों में लगे रहते हैं।हम एक दूसरे से पहले की तरह बातें करना छोड़ देते हैं।हमें लगता है जो बात करने की आदत लग गई तो घर वालों को ख़बर हो जाएगी फिर महाभारत… क्योंकि हम किसी न किसी के कुछ न कुछ तो लगते ही है न?इस डर से हम बात करना छोड़ देते हैं।जब बात करने का मन करे तो छटपटाहट महसूस होती है।फिर रेचल सोचती है :कितना निर्दयी है मुझसे बातें नहीं कर रहा।कम से कम पूछ तो ले कि मैं कैसी हूँ?
बेंजामिन सोचता है :कल तक हर दिन इतनी सारी बातें, इतना प्यार ,आज एक बार हाई (Hi)भी नहीं कहा।कोई एक दिन में ऐसे कैसे बदल सकता है?
दोनों के प्रश्न गुज़रते दिनों के साथ अदला-बदली कर लेते हैं।वहीं प्रश्न रेचल के मन में उठता है जो प्रश्न कभी बेंजामिन के मन में उठता था।यह उसी सघन प्रेम की छवियां हैं जो दोनों में एक ही है।यह वही भावुकता और संवेदना है जो दोनों में एक-सी हैं। दोनों भिन्न कहाँ हैं ?एक ही तो हैं।प्रेम की यही तो महिमा है,रूह की ऐसी ऐंट-फेंट कर देता है कि पता ही न चले एक-दूसरे का अंश कहाँ है,एकरंगा कर देता है सबकुछ।दोनों के मन, चित्त,समझ और संवेदना को। दोनों का चित्त एक- सा हो जाता है।
जो प्रश्न रेचल के मन में उठते थे, उन्हीं प्रश्नों से आज बेंजामिन का मन बहुत भारी है।
प्रेमियों के बीच होती है प्रश्नों की अदला-बदली। प्रेमियों के बीच होती है चिंताओं की अदला-बदली। प्रेमियों के बीच होती है हुक की अदला- बदली। प्रेमियों के बीच जो स्थिर रहता है,वह होता है प्रेम ।
साझापन बचा रह जाता है
एक ही बारिश में दो जगहों पर भीगते हुए
एक ही आकाश तले ,एक ही समय आकाश ताकते हुए
एक ही समय एक दूसरे की खैरियत मांगते हुए
एक ही समय चाय पीते हुए
एक ही समय में अलग-अलग जगहों पर उदास होने से…
रेचल का मन बेंजामिन से कहता है:
“ऐसा करो तुम आकाश ताकना छोड़ दो
मैं बारिश में भीगना छोड़ देती हूँ
तुम उदास होना छोड़ दो
मैं चाय पीना छोड़ देती हूँ
मैं और तुम एक साथ दुआ और खैरियत मांगना छोड़ देते हैं
कुछ भी साझा नहीं बचेगा हम दोनों बीच”
दोनों आपस में अब भी बातें कर सकते तो यह उदासी और यह हुक उनके हिस्से कभी नहीं आती मगर उन्हें डर लगता है परिवार से, समाज से, धर्म-देवता से और सबसे ज़्यादा किसी बिगाड़ से।
वे प्रेम की रक्षा करना नहीं जानते।उसका गोपन-संपादन और संतुष्ट होकर पृथ्वी पर खुश रह पाने का सूत्र उन्हें नहीं पता …
वह ठुड्डी पर उंगलियाँ रखकर,हथेली फैलाकर बहुत-सी बातें कहता है,वह साक्षात्कार लेता है, राजनीति पर बोलता है।वह कई रंग की फार्मल कमीज़ पहनता है।कभी आसमानी ,कभी सफेद, कभी हल्की बैंगनी,कभी राख रंग की,कभी गहरी नीली और आसमानी पर नीले रंग की चेक वाली भी,कभी कोट,कभी शेरवानी,कभी-कभी जैकेट और बंडी भी ।उसने भूरी कमीज़ भी पहनी जिस पर धारियां थी।मगर प्रश्न फिर भी वही कि उसने काली कमीज़ क्यों नहीं पहनी?
वह आज भी तेजतर्रार संपादक और सोशल एक्टिविस्ट हैं।वह साड़ी पहनती हैं,सलवार कमीज़ भी,सभी रंगों की साड़ियां,सभी रंगों के सलवार और कुर्ते भी।वह बच्चों के अपहरण और उनके अंगों की तस्करी पर सरकार को घेरती है।वह बाल-वेश्यावृत्ति में झोंके गये बच्चियों के लिए पुलिस से भिड़ंत करती है।वह गली-गली में रतजग्गे कर फुटपाथ पर रह रहे लोगों के सुख दुःख की टोह लेती है उन तक मदद पहुँचाती है।वह सबकुछ करती है ,क्या वह बेंजामिन को याद करती है?वह आख़िर क्यों नहीं पहनती काला कुर्ता?
बेंजामिन के अलमीरे के नीचे की टाइल के नीचे एक काठ का डिब्बा है जिसे वह मध्यरात्रि में खोलता है और उससे काला कुर्ता निकालकर पहन लेता है।वह आईने में खुद को देखता है और भोकार पारकर रोता है।नि:शब्द ,मूक रूदन ,मुँह फाड़कर रोता है मगर बिना आवाज़ निकाले।
रेचल की किताबों के बीच एक बड़ा सा डिब्बा है जिसके भीतरी तह के भीतर एक काग़ज़ का थैला है। सुनसान समय में वह उस थैले से काली कमीज़ निकालकर पहन लेती है।
न वह कुर्ता रेचल का है जिसे बेंजामिन ने एकांत में पहन रखा है फिर उस कुर्ते से रेचल के देह की गंध क्यों आ रही है?
न वह कमीज़ बेंजामिन की है जिसे रेचल ने विरह के एकांत में जी सकने के लिए पहन रखा है फिर उस कमीज़ से बेंजामिन के डियो की गंध क्यों आ रही है।
समय के पास उत्तर है,उसने देखा है :
रेचल ने अपने कुर्ते को कतरकर कमीज़ बना लिया।उस कुर्ते से बेंजामिन के डियो की गंध आ रही थी जब-जब वह गंध समय के साथ हल्की होती गई तो रेचल ने बाज़ार से
बिल्कुल वही डियो ख़रीदीं और कुर्ते पर वह समय-समय पर डियो छिड़कती रहती ताकि उसमें वह बेंजामिन वाली गंध बनी रहे।जितना जतन गंध को बचाने,कुर्ते को छिपाने में लगाती है।उससे बहुत कम जतन से वह उस अद्भुत रिश्ते को बचा सकती थी।तब शायद वह बेचैनी और पागलपन की जगह पर शांत और सुकून की ज़िंदगी जी सकती थी।
समय के पास उत्तर है,उसने देखा है :
बेंजामिन ने अपने कमीज़ में काले कपड़े जोड़कर उसे कुर्ता बना लिया है।जिस जतन से उसने पहली बार अपने जीवन में सूई से सिलाई की और जिस जतन वह उस कुर्ते को छिपाकर रखता है उससे कम कोशिश से ही वह उस रिश्ते को बरकरार रख सकता था जिसे प्रेम की जगह और भरोसे का आश्वासन था।
मगर नहीं दोनों परेशान ,पागल और बिना आवाज़ निकाले फफक-फफक कर रोते रहते हैं।कभी झरने के नीचे, कभी मसालों के डिब्बों को पकड़कर ,कभी कार चलाते,कभी वाॅश रूम में…
हमारा डर ,हमारी शंका कितने दुःख को निमंत्रण देती है मगर चाहकर भी प्रेम की विदाई नहीं कर पातीं।
जब रेचल के पति पूछते हैं:
मैडम !आजकल आप अपना फेवरेट कुर्ता नहीं पहनती?
तो वह धीमे से कहती हैं :
मुन्नार में खो गई।
जब बेंजामिन की पत्नी पूछती है:
साहब की काली कमीज़ कहाँ गई?
तो बेंजामिन कहता है:
मुन्नार में खो गई।
खोया न तो रेचल का कुर्ता,
खोई न तो बेंजामिन की कमीज़,
खोया तो प्रेम भी नहीं,
जो जबरदस्ती भुलाने की कोशिश की गई
वह एक-दूसरे की सुंदर उपस्थिति थी
बीतते समय के साथ एकांत में बेंजामिन काले कुर्ते पर बड़ी लाल बिंदी और काली विग लगाने लगा।आईने में खुद को ऐसे रूप में देखकर कभी रोता और कभी जोर-जोर से हँसता है।
बीतते समय के साथ रेचल ने बाल कटवाकर बेंजामिन की तरह कर लिए और उसी की तरह के कपड़े पहनने लगी।
दो सामान्य लोगों को असामान्य बनते देखकर समय पूछता है:
क्या प्रेम को बचा पाना इससे अधिक मुश्किल था…
दूर से आवाज़ आ रही है :
न्यूज़ रूम से मैं बेंजामिन जैकब !
आज के एडिटोरियल में मैं रेचल नेकपाल!
***
येनपक कथा : बूढ़ा छाते वाला
बारिश से ठीक पहले वह आता था।डगमग-डगमग करते,संभलते-संभालते दर्जनों छातें पीठ पर लादे।वही एक था जो इतने रंगबिरंगे बांस के ,पत्तों के छातें बनाता और बेचता था ।वह छातें सिर्फ़ और सिर्फ़ स्त्रियों को बेचता था। छतरियों के बंडल के साथ वह एक झोला भी अपने दायें कंधे पर लटकाये रहता था और जो स्त्री उसका मन मोह लेती उसे वह छतरी के साथ पत्थर के चिकने सुंदर खिलौने देकर जाता था।
जिन्हें भी वे खिलौने मिलें उन्हें सुंदर स्वस्थ शिशु सालभर के भीतर प्राप्त हुएं।उसने कभी अविवाहित युवतियों को नहीं बेची अपनी छतरियाँ ,न ही उन्हें कभी उपहार में दिए खिलौने।
छाते को पहाड़, झील और जंगल वाले येनपक कहते थें और उस छोटे से प्यारे आदमी को येनपक वाला जादूगर। जादूगर इसलिए कि हर स्त्री के मन में वह बस सा गया था ,सबके पति ‘येनपक वाला’ कहकर अपनी-अपनी पत्नियों से मनोहार करते थें।
स्त्रियां बारिश के उतरने से पहले उसका इंतज़ार शुरू कर देती थीं।कितने भी पैसै दे दो ,वह पुरूषों को छाते नहीं बेचता था।वह कहता था :भीम देव बारिश लाते हैं और स्त्रियों से बहुत प्रेम करते हैं। वे बड़े नटखट हैं और उन्हें स्त्रियों से फुहारों वाली ठिठोली करना ख़ूब भाता है। स्त्रियों के खरीदे छाते टूट न जाएं, पुराने न हो जाएं इस चिंता में भीम ज़रूरत से ज्यादा बारिश नहीं करते और जंगल-पर्वत-पहाड़ डूबने से बच जाते हैं।
पुरूषों की खरीदी चीज़ों का कोई मोल नहीं भीम के सामने।पुरूष का वश चले तो वे अपनी पत्नियों को भी जुए की दांव पर लगा दें फिर दूसरी चीजों को वे कितना महत्व देंगे, ज़रा सोचो?
स्त्री जतन से बुनती या खरीदती हैं छाता ।वे बचा-बचा कर रखती हैं एक-एक आना और पैसे जोड़-जोड़ कर खरीदती हैं छाता।वह छाता जो धूप और बारिश से रक्षा करता है उनकी,उनके बच्चों की और उनके गोद में बैठे मेमनों और पंक्षियों की।
लोकतक झील के पास था उस बूढ़े छाते वाले का झोपड़ा था।झील के किनारे चांदनी रात में बैठकर वह पुलही बजाता था ।इतना सुंदर और मधुर की अंडे धीरे-धीरे फूटते और नन्हें सुंदर चूज़े निकलकर झांकने लगते, द्रौपदी माला की कलियां चटक उठती, बांस के फूल मद्धम ताल पर झरते …
झील उसकी मां थी और बांस के वन उसके पिता।किसी चांदनी रात में एक सुंदर टोकरी में बहता हुआ वह बांस के वन से टकराया और सुबह एक बुझी आंखों वाली सुंदर स्त्री उसे उठाकर ले आई।भात के माड़ को पिला पिला कर उसे बड़ा किया।
एक बार उसे एक सुनहरी बाल वाली लड़की से प्रेम हो गया।पूरे इलाके में बस उसके ही बाल सुनहरे थें ।लोग कहते हैं उसकी परदादी की मां अंग्रेज़ थी जिसके बाल सुनहरे थें।उस कबीले में पहली बार किसी ऐसी लड़की का जन्म हुआ था जिसके बाल सुनहरे थें।वह सबके आंखों में भगजोगनी सी भुकभुकाती रहती थी।
एक दिन वह सुनहरे बालों वाली लड़की गायब हो गई।लड़की क्या गायब हुई, लोग कहते हैं पुलही वाला वैरागी हो गया और छाते बुनने और बेचने लगा।
राग- रौशनी से विराग-छाया तक की दूरी नाप चुका वह बूढ़ा वैरागी …
वैरागी कैसा?
उसे हर स्त्री से प्रेम था
हर स्त्री को उससे छाया मोलना पसंद था
हर स्त्री को उसके नाम की उलाहना सुनना पसंद था
हर स्त्री बारिश के आने से पहले उससे मिलना चाहती थी
हर स्त्री पिछली बारिश से अब तक के किस्से उसे सुनाना चाहती थी और अपने जन्मे शिशु को उसे दिखाना चाहती थी।
वह हर बार एक ही स्त्री को प्रस्तर के खिलौने देता था वह उस मौसम की मां होती थी जो अगले वर्ष इस मौसम के फिर से आने के ठीक पहले तक लोरियां गाकर रात गुजारती थी।
वह साठ वर्षों से हर साल बारिश से पहले आता है।
वह वृद्ध हो चुका है मगर पहले से ज़्यादा सुंदर और निश्चल…
एक दिन बारिश से ठीक पहले एक और छाते वाला आया।वह बेहद सुंदर और युवा था।सभी स्त्रियां उसे घेरकर खड़ी हो गई।उसके पास भी झोले में थी कई मूर्तियां और गहने। ढेर सारे खुडंगयाई (कंगन) और खुबोमयाई ( पायल)।उसने ख़ूब सारे छाते बेचें और कई स्त्रियों को दी मूर्तियाँ और गहने ।वह बहुत मनमोहिनी बातें करता था और उसकी मूर्तियां बहुत चिकनी और सुघड़ थीं।
अब किसी को बूढ़े छाते वाली की प्रतीक्षा नहीं थी।एक दिन पहाड़ियों से उतरकर बूढ़ा छाते वाला आया।उसने आवाज़ लगाई, कोई नहीं आया।सबके पास नई छतरी थी ,सबों ने उसे अनदेखा और अनसुना कर दिया।वह लौटकर देर रात झील के पास गया।उसने भोर होने तक लगातार पुलही बजाई।आज की पुलही में कौन सा दर्द था कि अमावस्या की रात में में पूर्ण चांद निकल आया।झील में असंख्य सुनहरी मछलियां तैर उठीं।लगा बूढ़े छाते वाले की प्रेमिका के सुनहरे बाल चारो तरफ तैर रहे हैं।झील झिलमिला उठी।
भोर में भयंकर बारिश हुई । स्त्रियों ने अपने नये छाते निकाले वे घर से बाहर आई और छाते धीरे-धीरे गल ग ए।वे बर्फ के छाते थें।स्त्रियाँ दौड़कर अपने नये खिलोने देखने गई।वे चिकने सुंदर खिलोने गल चुके थें, वे भी बर्फ के निकले।वह नया छाते वाला काला जादूगर था…
साल भर का जोड़ा गया पाई पाई बर्बाद…
स्त्रियां मूसलाधार बारिश में भीगती रहीं
और अचानक सब पुलही की आवाज़ की ओर बढ़ने लगीं ,वे धीरे-धीरे झील की तरफ़ मुड़ीं।जैसे-जैसे वे झील की तरफ़ बढ़ती जाती थीं वैसे-वैसे ही बारिश और तेज होती जाती थी।जब वे झील के पास गईं तो देखा वहां सैकड़ों सुंदर छतरियां पड़ी थी।झील से पुलही की आवाज़ आ रही थी।दूर-दूर तक कोई नहीं था। स्त्रियों ने एक-एक छतरियां उठा ली और गांव लौट आईं।ये उनका पहला बिना मोल चुकाया गया छाता था और बूढ़े छतरी वाले के द्वारा उन्हें मिला अंतिम छाता भी।
वे छाता ओढ़कर घर की तरफ बढ़ी ,बारिश धीमी होती गई।पुलही की आवाज़ गुम होती चली गई।
स्त्रियां घर आकर बूढ़े छाते वाले के दिए खिलौने तलाशने लगी ,वे खिलौने भी उन्हें कहीं नहीं मिले।सब के सब विलुप्त हो गये थें।सब स्त्रियां आपस में एक दूसरे से हफ़्ते भर पूछती रही :
उनके खिलौने मिले कि नहीं?
किसी को कोई खिलौना नहीं मिला।
एक दिन गोधूली की बेला में पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर स्त्रियां खिलौने के लुप्त हो जाने के रहस्यों पर चर्चा कर रही थीं कि उनकी नज़र उनके खेलते कूदते बच्चों पर पड़ी। उन्हें उनके खिलौने मिले गये,वास्तव में वे कभी नहीं खोएं थे…सभी स्त्रियां एकसाथ मुस्कुरा उठीं।
बूढ़ा छाते वाला झील हो गया ,उसका देह झील का पानी।सुनहरी बालों वाली लड़की की हर कोशिका मछली बन गई जो उम्र भर झील में समायी रही।
छाते ,गोबर छत्ते बन गए और मूर्तियां बांस-वन के जीव। स्त्रियों के आंखों से निकली आंसू की लरी कोप्पू के फूल…
आज भी बारिश से पहले झील के चारों तरफ़ गोबर छत्ते उग आते हैं जिसे हर विवाहित स्त्री तोड़ कर लाती है और अपने घर में खिलौनों की तरह सजा देती हैं।
उस गांव के लोगों ने कभी भी झील में मछलियां नहीं पकड़ी ।बूढ़े छाते वाले की याद में बारिश के आने से ठीक पहले वे लोग रंग बिरंगे फूल झील में बहा आते हैं ।तब उन सभी लोगों के हाथों में छतरियाँ होती हैं और स्त्रियों की आंखों में होता है आंसू…