मेधा : हिंदी साहित्य और न्यू मीडिया के संबंध को आप किस तरह देखते हैं ?
श्रीविलास सिंह : किसी भी साहित्य को पाठकों तक पहुँचने हेतु किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। न्यू मीडिया (संभवतः इससे तात्पर्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया से है?) ने साहित्य को मंच और प्रिंट मीडिया के बाद यह नया और अधिक पहुँच वाला माध्यम प्रदान किया है। यह हिंदी साहित्य के लिए एक अवसर है विशेषतः युवाओं तक पहुँचने हेतु। क्योंकि न्यू मीडिया की पहुँच युवा वर्ग में गहरे तक है। यह एक सर्वसुलभ और जनतांत्रिक माध्यम है। हिंदी साहित्य ने भी आगे बढ़ कर इस माध्यम को गर्मजोशी से अपनाया है। जहाँ कविताकोश, गद्यकोश और हिंदवी इत्यादि वेब साइट्स पर हिंदी साहित्य का प्रचुर भंडार पठन पाठन हेतु उपलब्ध है वहीं समालोचन, अनुनाद, पहलीबार, इंद्रधनुष, अनुवाद संवाद इत्यादि अनेक पोर्टल्स ने निरंतर अच्छा साहित्य उपलब्ध करा कर निरंतर बंद होती जा रही पत्रिकाओं की कमी को पूरा किया है और दूर तक साहित्य की पहुँच बनायी है। फ़ेसबुक पर भी हिंदी कविता- कहानियों की प्रचुर उपलब्धता है। यद्यपि यहाँ गुणवत्ता का प्रश्न अक्सर उठता रहता है।
मेधा : सोशल मीडिया पर लेखकों की उपस्थिति से पाठकों की संख्या पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
श्रीविलास सिंह : इस संबंध में मेरे पास आँकड़े तो नहीं हैं लेकिन निश्चय ही सोशल मीडिया की नये लोगों और ख़ासकर युवा लोगों तक पहुँच होने के कारण लेखकों को इसका लाभ हुआ है। यद्यपि यह भी एक तथ्य है कि अभी भी हिंदी के अधिकांश वरिष्ठ लेखक सोशल मीडिया पर प्रभावी रूप से उपस्थित नहीं हैं।
मेधा : प्रचार एवं बिक्री के नए मंच न्यू मीडिया ने तैयार किए हैं। इस पर आपके क्या अनुभव हैं?
श्रीविलास सिंह : निश्चित रूप से अब नए मीडिया ने प्रचार और बिक्री के पूरे इको सिस्टम को बदल दिया है। साहित्य का प्रचार विज्ञापन अथवा अन्य तरीक़ों से बहुत कम प्रकाशक ही करते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया एक बड़ा माध्यम है साहित्य के प्रचार का। अब जब साहित्यिक किताबों की दुकाने अधिकांशतः बंद हो चुकी हैं, अमेज़ोन, फ्लिपकार्ट इत्यादि ऑनलाइन बिक्री की साइट्स ने साहित्यिक पुस्तकों की घर बैठे उपलब्धता सुनिश्चित करा कर हिंदी साहित्य की बिक्री को निश्चय ही आसान और प्रभावी बनाया है।
मेधा : लेखक, प्रकाशक और पाठक किताब की इस आधारभूत संरचना में न्यू मीडिया ने नया क्या जोड़ा है ?
श्रीविलास सिंह : नए मीडिया ने जैसा कि पहले कहा पुस्तकों और साहित्य की उपलब्धता को पाठक के लिए आसान किया है और लेखक की पाठक तक पहुँच आसान बनायी है। प्रकाशन को भी नये मीडिया ने काफ़ी कुछ जनतांत्रिक कर कुछ ही प्रकाशकों के एकाधिकार को चुनौती दी है। नए प्रकाशक और ऑनलाइन प्रकाशन की सुविधा उपलब्ध हुई है। यद्यपि अभी गुणवत्ता पूर्ण पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए और प्रयत्न की आवश्यकता है।
मेधा : सोशल मीडिया पर आपकी उपस्थिति का आपकी रचनाशीलता पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
श्रीविलास सिंह: यदि आप अनुशासित ढंग से सोशल मीडिया का प्रयोग करें तो निश्चय ही इसका रचनात्मकता पर बेहतर प्रभाव पड़ता है। यदि सोशल मीडिया पर आपके मित्र अच्छी साहित्यिक अभिरुचि और समझ वाले हैं तो निरंतर और आसान संवाद के कारण रचनाशीलता की गुणवत्ता बढ़ती ही है। यह आप पर है कि आप सोशल मीडिया का उपयोग कैसे करते हैं।
मेधा : हिन्दी की ई-मैगज़ींस और महत्वपूर्ण ब्लॉग्स पर प्रकाशन के अपने अनुभव साझा करने की कृपा करें।
श्रीविलास सिंह: मेरी अनेक रचनायें हिंदी की बेहतरीन ई-पत्रिकाओं और ब्लॉग्स जैसे समालोचन, अनुनाद, समता मार्ग, पहलीबार, इंद्रधनुष, पोषम पा और अनुवाद संवाद इत्यादि पर प्रकाशित हुई हैं। अनुभव बहुत अच्छा रहा है। चूँकि यहाँ प्रकाशित सामग्री तत्काल पाठकों को उपलब्ध हो जाती है और उनकी प्रतिक्रिया भी तत्काल मिल जाती है, अतः यहाँ प्रकाशन में गुणवत्ता ही मुख्य मुद्दा होता है न कि किसी तरह की पक्षधरता या गुटबंदी, जिनसे आजकल प्रिंट माध्यम की कई पत्र पत्रिकाएँ ग्रस्त हैं।
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