अनुनाद

मैं चाहता हूँ मैं प्र‍ेमिल रहूँ/केशव शरण 


                       

   इतने पर भी   


मेरी एक आँख
सपने देख रही है
दूसरी तारे गिन रही है
इतने पर भी
मैं चाहता हूँ
मेरी तीसरी आँख भी खुल जाय !

   इतना ही   

वह आपके साथ
चल सकता है
आपके मुड़ने के साथ

 मुड़ सकता है 

चाँद हमसे
इतना ही जुड़ सकता है

    तौबा   

न गले से लिपटाना
न छाती पर लोटवाना
संगीत-क्रीड़ा कुछ नहीं
अब उनके साथ

एक ने डँस लिया
अभी कल की बात

   बादल और बरसात   

बादल गड़गड़ा रहे हैं
कि हुक्का
गुड़गुड़ा रहे हैं
बाबा जी!

बरसात है कि
पुष्प पर ओस पात!

   कार्योपरांत   

क्या तारे
गिन चुका?
ले रहा खर्राटे!

    नीबू की चाय   

एक बिल्ले का पेट भर गया
अब चार पिल्ले भी चाट लें

आज हम नीबू की चाय लें!

  चश्‍मे और छवि   

आलोचक
अपने चश्मे
ठीक क्या करेंगे
तुम अपनी छवि
दुरुस्त रखो कवि!

  उत्‍तरोत्‍तर   

खुलकर
कोई नहीं बोलता
मैं तो हमेशा का चुप्पा ठहरा
जो अब बहरा
और अंधा भी
हो रहा

  रब के बनाए सब   

भूखे शेर को भी
रब ने बनाया है
घास चरते बकरे को भी
और निशाना साधते
बन्दूक़धारी को भी

रब के बनाए सब हैं
सारे बाज़, सारे फ़ाख़्ते

  ग़नीमत   


दवा पहुँचते-पहुँचते
मरीज़ पहले-सा स्वस्थ था

ग़नीमत हुई कि पानी रहा
ग़नीमत हुई कि पथ्य था

  भूख और खाना   

भूख लगी है
खाना नहीं है
मेरी झल्लाहट का

 ठिकाना नहीं है

मुझे याद है

मुझे याद रहेगा
खाना रखा था
भूख नहीं थी

  राम   

राम आ
राम आया
आराम आया

  तो मैं क्‍या कहूँ   

मैं चाहता हूँ मैं प्रेमिल रहूँ
मैं चाहता हूँ वे भी प्रेमिल रहें
लेकिन वे लड़ाई लेकर
मुझे परास्त करना चाहते हैं
तो मैं क्या कहूँ

  क्‍या बोता   

कुछ होता
जब कुछ बोता
क्या बोता
जब खेत ही नहीं जोता

  तेरा सोना   

दूना दूर
पीतल कर देगा ज़रूर
तेरा सोना
ठग सलोना

   अपना रचो   

जो हो सपना
जो हो रचना
रचो अपना
आलोचना करना
काम है दुनिया का


  तालाब   

जितना पानी

उतने में शादाब
मछली रानी

आस लगाए
भर जाए तालाब
बस्ती इन्सानी

  तलैया   

तलैया भर गई है
इसकी ख़ुशी ज़्यादा है
मड़ैया बह गई है
इसका दुख कम है

  विडम्‍बना   

जीवन-भर की पूँजी लगाकर
दोमंज़िला सपना साकार हुआ
तो चार सीढ़ियाँ भी चढ़ना
दुश्वार हुआ

  अधिक से अधिक   

अधिक से अधिक कोई
सीने से
लगाने तक
सीने के अंदर
जो समा जाए
दिल
उसे ही न पाए

  निम्‍न और उच्‍च   

मैं अपने को निम्न समझता
तो मैं निम्न हो जाता
मैं अपने को उच्च समझता
तो भी मैं निम्न हो जाता
तुच्छ दंभ में उलझता

  छोड़य्या   

मेरे पास कटकर आई है
एक पतंग
मगर मैं उसे उड़ा नहीं सकता हूँ

कि छोड़य्या देने के लिए तुम नहीं हो

  इतनी सर्दी में    

किस गर्मी से
वहाँ रुकता मैं
इतनी सर्दी में
छोड़कर ठंडा तमाशा
घर आ गया
जल्दी से

  पहचान का मक़सद   

पहचान तो हो गई
पहचान का विस्तार नहीं हुआ
पहचान का मक़सद यही था कि
पहचान का विस्तार हो
प्यार हो
मगर प्यार नहीं हुआ

  मिलन की घड़ी   

हृदयतंत्रिका झनझना रही है
शिराओं में रक्त
नाच रहा है

अधर गा रहे हैं गीत

आ रहा है मन का मीत

  पेड़ तले   

हिन्दी भाषी घर में
मौन भाषी पेड़ पर
भाषाएँ चहक रही हैं
जिसके तले आनंद और रस
मिल रहा है
मेरा हिन्दुस्तानी दिल
गद-गद खिल रहा है

 

  घाट और घर   

घाट पर
अध्यात्म का हिमालय
दुख का तूफ़ान
थामे हुए था

घर में प्रवहमान
आँसुओं की गंगा

 बस सुला दे   

श्रम और संघर्ष की थकान
बस सुला दे
बच्चों जैसी नींद में
और जगाए नहीं
तनिक ही देर में
बुरे सपने दिखाकर

मैं जा रहा हूँ
बिस्तर पर

   कलम ही   

कलम ही काम करेगी
हाथ पहुँच नहीं पा रहे हैं वहाँ
जहाँ खुजली मची है
पीठ में

त्वचा के पक्ष में
वह चली
खुजली के विरुद्ध
धावा बोलने

    रचनाऍं   

जैसे जीवन-यात्रा
और जीवन-यात्रा के बीच घटनाएँ

जैसे प्रेम-यात्रा
और प्रेम-यात्रा के बीच यादें

यादें और घटनाएँ
बनीं मेरी रचनाएँ

    याद ज़रूर रहा   


किस तरह 
महबूब मेरे 
मैं तेरे पास पहुँचा
और तुझसे दूर रहा 

जीवन-भर मुझे
इसका सदमा
भरपूर रहा  

 

    कमाल यह है   


चाँद दूधिया, दिलकश,सलोना
जिससे मैं ख़यालों में चिपकता हूँ

 उससे कब चिपकूँगा हक़ीक़त में

सवाल यह है

इश्क़ का कमाल यह है
अभी होना

    हाहाकार   

इस बारिश ने
हाहाकार ही बढ़ाया
किसान का
सूखे के बाद

    पड़े रहो   

क्या गलियाँ
चौराहा घूमो
जब किसी से
मिलना नहीं होना है
अच्छा
अपने घर का कोना है
पड़े रहो
तसव्वुरे-जानां किए हुए! 

 

      ऊॅंट और पेड़    

 

जिसके तले
बैठा सुस्ता रहा था ऊँट
पेड़ वह
बड़ा नहीं है ऊँट से
या कहिए कि
ऊँट छोटा नहीं है पेड़ से
जिसकी वह
पत्तियाँ चबा रहा है
खड़े होकर

***

                                                                                         केशव शरण

                                      जन्म 23-08-1960 , वाराणसी में।
                                                    प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की  (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है  (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में  (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी  (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं ) 
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
कहां अच्छे हमारे दिन ( ग़ज़ल संग्रह )
संपर्क-एस2/564 सिकरौल
वाराणसी  221002
मो.   9415295137
व्हाट्स एप 9415295137

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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