(1)
खादी ने किया हिंदी का आग्रह
यह बात उन दिनों की है जब मेरा हिंदी अनुभाग तीसरी मंजिल पर था। दूरसंचार की सभी पुरानी इमारतों की रचना तत्कालीन इलेक्ट्रो मैकेनिकल दूरभाष की बड़ी बड़ी मशीनों के अनुरूप बनाई गई है। उस हिसाब से मेरे अनुभाग की मंजिल 4 रही होगी। अब नए आधुनिक डिजिटल दूरभाष केंद्र एक ही छोटे से रूम में स्थापित किए जा रहे हैं। हमारे टेलीफोन भवन में कोई लिफ्ट नहीं है। दिन में चार पांच बार सीढियां चढ़नी उतरनी पड़ती थी।
एक दिन मेरे टेबल के सामने एक बुजुर्ग खड़े थे। शायद उनकी आयु 80/85 के दरम्यान होगी। वह बुरी तरह हांफ रहे थे, उनको सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।
मैंने तत्काल उनको कुर्सी पर बिठाया, पानी दिया।
फिर मैंने पूछा- ‘बाबूजी इतने ऊपर चढ़ कर क्यों आए हो? मुझे सुरक्षा रक्षक के गेट पर बुलाना था। नीचे से फोन करते’।
तब वे बोले- ‘नहीं, वहां कोई नहीं था इसलिए सीधे ऊपर आ गया हूं’।
मैं- ‘आपका परिचय? बताएं क्या सेवा करूं?’
वे बोले- ‘मैं स्वतंत्रता सेनानी हूं। हमने महात्मा गांधी जी के आदेश पर सत्य,अहिंसा, खादी के साथ हिंदी के सहारे देश के आंदोलन में हिस्सा लिया था, मेरा एक काम है, आप जरूर कर सकते है’।
मैं- ‘जी, जरूर करूंगा,आज्ञा करें’।
‘बेटा, मुझे टेलीफोन बिल हिंदी में चाहिए, आपका बिल सिर्फ अंग्रेजी में भेजा जाता है। आपके राजभाषा नियम के अनुसार द्विभाषी होना चाहिए’।
मैंने संबंधित अधिकारी का नंबर डायल किया तब मालूम हुआ कि सारे बिल फॉर्म अंग्रेजी में छप गए है। अगली बार द्विभाषी करेंगे। हर बार ठेकेदार अपनी मर्जी के अनुसार शॉर्ट कट मारकर अंग्रेजी के रास्ते पर बेफिक्र गाड़ी दौड़ाता था।
मैंने बाबू जी को समझाया लेकिन वे मानने को तैयार नहीं थे। बाद में उन्होंने त्रिभाषा सूत्र के नियम पर चर्चा की। मुझसे द्विभाषी और त्रिभाषा सूत्र के नियम की प्रतिलिपि मांगी। मैंने उनको तत्काल फोटोकॉपी प्रदान की। चाय लेकर बाबू जी विदा हुए।
चार पांच दिनों के बाद मुझे महाप्रबंधक महोदय ने अपनी केबिन में बुलाया। कलेक्टर कार्यालय द्वारा आयोजित जनता अदालत का नोटिस दिखाया। इस नोटिस में त्रिभाषा सूत्र के अनुसार टेलीफोन बिल फॉर्म और टेलीफोन डायरेक्टरी अंग्रेजी के साथ मराठी, हिंदी में ग्राहकों को उपलब्ध न किए जाने पर जवाब मांगा था। मैंने वर्तमान स्थिति और नियम की जानकारी फाइल सहित प्रस्तुत की।
उच्च अधिकारियों की बैठक हुई। मराठी, हिंदी में फॉर्म, डायरेक्टरी छपवाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। मुझे प्रिंटर के पास प्रूफ रीडिंग के लिए हर बार जाना पड़ा।
महाराष्ट्र दूरसंचार परिमंडल में पहली बार हमारे दूरसंचार ज़िले की हिंदी मराठी दूरभाष डायरेक्टरी और टेलीफोन बिल फॉर्म प्रकाशित हुआ।
प्रकाशन समारोह में हमारे क्षेत्र के सांसद, विधायक महोदय मंच पर उपस्थित थें। उस कार्यक्रम में फिर एक बार मेरी भेंट उन स्वतंत्रता सेनानी के साथ हुई। मंच पर नहीं लेकिन अंतिम पंक्ति में बैठकर मुस्कुराते हुए आंखों से मेरा धन्यवाद प्रकट कर रहे थे।
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(2)
जमीन की भाषा
एक दिन राजभाषा निरीक्षण हेतु एक तहसील स्थित हमारे उप मंडल कार्यालय गया था।
वहां एक छोटे कसबे से पाटिल (मुखिया) आए थे। वे कार्यालय के सहायक से ऊंची आवाज़ में बोल रहे थे। शायद बहुत गुस्से में कार्यालय का पत्र दिखाकर उसका अर्थ जानना चाहते थे।
मैंने हस्तक्षेप करते हुए पाटिल को शांत करने का प्रयास करते हुए पूछा ‘क्या हुआ पाटिल, क्या काम है?’
मुझे उन्होंने पत्र सौंपकर पढ़ने का अनुरोध किया।
मैंने पढ़ा
Please submit following documents within 3 days otherwise your case will not considered and matter will be closed. No further correspondence will be entertained in this matter.
‘पाटिल आपको कार्यालय को कुछ वांछित कागजात 3 दिनों के अंदर भेजना था। अब यह मामला रद्द किया जाता है’।
पाटिल ने कहा- ‘आप यह पत्र मुझे हिंदी अथवा मराठी में भेज सकते थे। व्यवसाय आपको करना है, दूरभाष केंद्र मेरी जमीन पर खड़ा करना है। फिर हमारी ज़मीन की भाषा में प्रस्ताव रखा था, बात हुई थी। मैं अंग्रेजी नहीं जानता लेकिन मेरे पास गांव में जमीन, खेती, पैसा सबकुछ है। क्या आपके पास हमारी भाषा नहीं है?’
इस तर्क को काटना असंभव था।
हमने उच्च अधिकारी से बात करके कागजात मंगवाने का समय सीमा बढ़ा दी। पाटिल को पत्र हिंदी मराठी दोनों भाषाओं में दिया गया। पाटिल खुश हुए, बाद में दूरभाष केंद्र भी उनकी ज़मीन पर खड़ा हुआ।
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(3)
धारावी झुग्गी झोपड़ी की बहुभाषिकता में हिंदी का स्थान
मैंने भारतीय भाषा संस्थान के प्रशिक्षण वर्ग में हिस्सा लिया था। केंद्र सरकार का भाषा विकास संबंधित महत्वपूर्ण संस्थान। संशोधन, परिचर्चा, प्रशिक्षण, बोली भाषा संवर्धन, अनुवाद आदि विषयों पर अनेक प्राध्यापक कार्य करते हैं।
केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने कार्यक्रम आयोजित किया था। हम दूरसंचार विभाग के विभिन्न राज्यों के हिंदी कैडर के साथी एकत्रित हुए थे।
मराठी भाषी श्रीमती राज्यश्री जयराम ने धारावी झोपड़पट्टी स्थित बहु भाषिक समुदाय की संपर्क भाषा हिंदी का सर्वे किया था। इसे केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर ने प्रकाशित किया है।
(An Ethno-linguistic survey of Dharavi 1986 published by CIIL Mysore)
‘धारावी, एक स्लम इन बॉम्बे’ पर राज्यश्री सुब्बैया (राज्यश्री जयराम) द्वारा लिखित ‘एथ्नोलिंग्विस्टिक सर्वे’ धारावी के भीतर की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है। यहाँ इसकी सामग्री का संक्षिप्त सारांश है:
1. **धारावी का परिचय**:
पुस्तक धारावी का एक अवलोकन प्रस्तुत करती है, जिसमें इसकी जनसांख्यिकीय संरचना, सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ और निवासियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ शामिल हैं।
2. **एथ्नोलिंग्विस्टिक विविधता**
यह धारावी में निवास करने वाले विभिन्न जातीय समूहों का दस्तावेजीकरण करती है, उनकी भाषाओं, बोलियों और सांस्कृतिक प्रथाओं का वर्णन करती है। सर्वेक्षण प्रमुख भाषाई समुदायों की पहचान करता है और यह बताता है कि वे स्लम के भीतर कैसे सह-अस्तित्व और बातचीत करते हैं।
3. ‘भाषा का उपयोग और बहुभाषावाद’
अध्ययन धारावी के निवासियों के बीच भाषा उपयोग के पैटर्न की जांच करता है, विशेष रूप से बहुभाषावाद और विभिन्न संदर्भों में भाषा चयन को प्रभावित करने वाले कारकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे कि घर, काम और सामाजिक बातचीत।
4. ‘सामाजिक गतिशीलता और पहचान’ पुस्तक यह बताती है कि धारावी में सामाजिक पहचान और समुदाय की गतिशीलता को भाषा और जातीयता कैसे आकार देती है। यह सामाजिक स्तरीकरण, अंतर-समूह संबंधों और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने में भाषा की भूमिका पर चर्चा करती है।
‘चुनौतियाँ और सिफारिशें’
सर्वेक्षण धारावी में भाषाई समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर चर्चा के साथ समाप्त होता है, जिसमें शिक्षा, रोजगार और सामाजिक एकीकरण से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। यह इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीति और योजना के लिए सिफारिशें भी प्रदान करता है।
यह सारांश पुस्तक का सार प्रस्तुत करता है, धारावी की समृद्ध भाषाई विविधता और जटिल सामाजिक गतिशीलता की एक झलक प्रदान करता है।
एक दिन उस प्रशिक्षण वर्ग में श्रीमती राज्यश्री ने मार्गदर्शन किया।
उन्होंने मुंबई के धारावी झुग्गी झोपड़ी के उन बच्चों की भाषा पर अनुसंधान किया था जिनके परिवार देश के विभिन्न राज्यों के बहुभाषिक वर्ग का प्रतिनिधत्व करते हैं। श्रमिक वर्ग के साधारण परिवारों की जीवन शैली, उनके श्रम और उनकी भाषा भारत के बहुसांस्कृतिक, धार्मिक वर्ग की विशेष जनसमूह की आपसी संपर्क भाषा हिंदी है।
उनके बच्चे बगैर हिंदी की प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करते हुए भी एक दूसरे के साथ हिंदी माध्यम से जुड़े थे। उनके संवाद, खेल की भाषा हिंदी है।
जीवन संघर्ष, विस्थापन भी हमें भाषा सिखाती है।
यह मुद्दा कितना असरदार था जिसे सुनकर हम सभी प्रभावित हुए।
आज 30 वर्षों के बाद, मैंने श्रीमती राज्यश्री का पता और मोबाइल नंबर ढूंढ निकाला। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि उनके अनुसंधान की यह महत्वपूर्ण पुस्तक आज उपलब्ध नहीं है।
उनसे प्रेरणा लेकर मैंने हिंदी पखवाड़े में दूरसंचार परिवार के हिंदीतर बच्चों के लिए विशेष प्रतियोगिताएं आयोजित करके उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित किया। मेरा यह अनुभव रहा है कि हिंदीतर कर्मचारियों और अधिकारियों की हिंदी कार्य में रुचि बढ़ी, उनकी आस्था भी बढ़ी। दक्षिण भारतीय अधिकारी विशेष रूप से मेरी हिंदी लाइब्रेरी से हिंदी पुस्तकें पढ़ने ले जाते थे। उन्हें प्रेमचंद की पुस्तकें विशेष प्रिय थीं। मेरे कार्यालय में हिंदी का काम जितना हिंदीतर कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने बढ़ाया उतना दुर्भाग्य से हिंदी भाषिक लोगों ने नहीं बढ़ाया। उनके लिए हिंदी घर की मुर्गी दाल बराबर जैसा मामला था।
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(4)
सत्कार की परिभाषा
राजभाषा कार्य करते समय हिंदी अधिकारी को प्राय: सभा सूत्र संचालन का कार्य सौंपा जाता है। यह मान लिया जाता है कि हिंदी अधिकारी को भाषा ज्ञान होता है।
मा. तपन सिकदर तत्कालीन दूरसंचार मंत्री थे, जब वे अहमद नगर जिले के पाथर्डी गांव के नूतन दूरसंचार केंद्र के समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
मंत्री महोदय बांग्ला भाषिक थे, इसलिए मैने उनका स्वागत बांग्ला भाषा में व्यक्त किया। मैं बांग्ला जानता नहीं था, लेकिन देवनागरी में पढ़ सकता था। इसलिए हमारे शहर के साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त बांग्ला मराठी अनुवादक श्री विलास गीते जी ने मुझे देवनागरी में बांग्ला भाषा में स्वागत पर कुछ लाइन लिख कर प्रदान की।
जब मैंने यह स्वागत भाषण बांग्ला में पढ़ा तो मंत्री महोदय बहुत ख़ुश हुए।
उन्होंने मुझे पास बुलाकर पूछा-
‘क्या आपने बांग्ला भाषा सीखी है? आपने अच्छा स्वागत किया, लेकिन एक बड़ी भूल कर दी है’।
यह सुनकर मेरे पांवों तले की ज़मीन खिसक गई। हमारे सभी उच्च अधिकारी मेरी तरफ़ देखने लगे, जैसे मैंने कोई मूर्खतापूर्ण बात कही है।
मंत्री महोदय ने स्पष्ट किया-
‘डरिए मत, मैं आपकी शिकायत नहीं करूंगा क्योंकि महाराष्ट्र में ‘सत्कार’ शब्द मंच पर हमेशा सुनता आया हूं। लेकिन हमारी बांग्ला भाषा में सत्कार का अर्थ मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के लिए प्रयुक्त होता है’।
यह सुनकर उपस्थित सभी हंसने लगे।
तब से मैंने सत्कार की जगह अभिनंदन शब्द चलाया।
यह घटना मुझे आज भी याद आती है। इसने मुझे सिखाया कि भाषा की बारीकियों को समझना कितना ज़रूरी है। एक ही शब्द का अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग अर्थ हो सकता है।
इस घटना से मुझे यह भी समझ आया कि किसी भी कार्यक्रम में बोलते समय हमें सावधान रहने की ज़रूरत है। क्योंकि एक छोटी सी गलती से बड़ी मुसीबत हो सकती है।
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कितने बढ़िया अनुभव आपने साझा किये है l ऐसे ही रोचक अनुभव पढ़ने की प्रतीक्षा मे
धन्यवाद🙏