एक आँख कौंधती है (स्त्री केन्द्रित कविताएँ) । विनोद पदरज । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 150 । मूल्य : 200/-
विनोद पदरज हिंदी कविता के समकाल में स्त्रीवादी विमर्श पर अनूठी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। वेरा प्रकाशन से आया उन का काव्य संग्रह ‘एक आँख कौंधती है’ स्त्री विषयक कविताओं का संचयन है। साइल देहलवी का मिसरा उधार ले कर कहें, तो- उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को। ठीक इसी तरह हिंदी कविता के स्त्रीवादी रूप में वे अपने समकक्षों से भिन्न दिखाई देते हैं।
इस संचयन में एक स्त्री के जन्म से ले कर मृत्यु तक उस के द्वारा जिए गए लगभग सभी किरदार पर कविताएँ हैं। यह कविता संचयन उन स्त्रियों पर भी बात करता है, जिन पर बोलना कथित सभ्य वर्ग को असभ्यता लगती है। इस में माँ के लिए भी कविताएँ हैं, तो स्त्री के कथित तौर पर बदनाम क़रार दे दिए गए रूप पर भी।
इस संचयन में शामिल कविताएँ पाठक के तौर पर आप को माँ के आँचल में भी ले जा सकती हैं और दूर कहीं अबूझे प्रश्नों के जंगल में भी। ‘एक आँख कौंधती है’, आप के अपने भीतर एक ऐसी आँख उत्पन्न कर सकती है, जिस की निगाह से आप बच नहीं सकते। अगर आप केवल स्त्री सौंदर्य पर आधारित चलताऊ कविताएँ चाहते हैं, तो यह काव्य संचयन आप के लिए नहीं है। हाँ! अगर आप जानना चाहते हैं कि जीवन में किसी भी रूप में शामिल कोई भी स्त्री कविता में अपने पूरे दु:ख के साथ दर्ज हो कर मन पर प्रश्नों का आघात किस तरह करती है, तो यह कविता संचयन आप के लिए ही है।
स्त्री को देखने की नवीन दृष्टि के परिचय के लिए इस कविता संचयन को आप को अवश्य पढ़ना चाहिए।
उदासियों की उर्मियाँ (कविता-संग्रह) । अनु चक्रवर्ती । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 256 । मूल्य : 250/-
अनु चक्रवर्ती का कविता संग्रह ‘उदासियों की उर्मियाँ’ में शामिल कविताएँ, अपने भीतर पीड़ा-जल की चुभन समेटे हुए हैं। उन की कविताएँ एकाकीपन और परिवेशगत अनुभवों पर आधारित गान हैं। स्त्री कविता के वर्तमान संदर्भों पर बात करते हुए उन की कविताएँ काव्य-परंपरा पर उल्लेखनीय प्रहार का कार्य करती हैं। अनु की कविताओं में पर्यावरण के लिए चिंता है, तो अकेले रह जाने का दुख भी।
इस संग्रह में शामिल कविताएँ औसत कविताओं की श्रेणी से आगे की कविताएँ हैं, जिन में कवि अवसाद के बिंब भी रचता है, तो कल्पना के क्षितिज पर अपने कोमल पोरों से नव-आशा का सूर्य भी टाँकता है। ये कविताएँ सामाजिक यथार्थ पर आधारित हैं, जिन में समाज के नंग की पोल खुलती है। वे मूलत: करूणा व भाव की कवि हैं और उन की कविताएँ पाठकों के लिए नई संभावनाएँ रचती हैं। सौंदर्य व गाम्भीर्य के मेल-जोल से बुनी ये कविताएँ समकालीन पाठकों की काव्य-क्षुधा को तृप्त करने के लिए पर्याप्त हैं।
मुट्ठीभर लड़ाई (उपन्यास) । राजेश्वर वशिष्ठ। प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 136 । मूल्य : 220/-
राजेश्वर वशिष्ठ का उपन्यास ‘मुट्ठी भर लड़ाई’ एक 23 वर्षीय युवक की संसार को देखने की दृष्टि का द्योतक दस्तावेज़ है। यह जीवन में कुछ बड़ा करने की जद्दो-जहद कर रहे एक नव-युवक पत्रकार के आत्मीय संघर्ष की सच्ची कहानी है। किस प्रकार विश्वविद्यालय में पढ़ रहा एक युवक पत्रकारिता करते हुए, जीवन की कड़वी सच्चाईयों पर विजय पाता है, यह इस उपन्यास का कुल लेखा-जोखा है।
इस उपन्यास में एक रिक्शे वाले के जीवन पर आधारित रिपोर्ताज भी शामिल है, जिसे पढ़ कर पाठक सूक्ष्मता से एक रिक्शा चलाने वाले व्यक्ति का जीवन-दर्शन कर सकते हैं। ख़ुद लेखक के शब्दों में कहें, तो यह उपन्यास उन की जीवन-डायरी है।
इस उपन्यास में लेखक के निज जीवन के बिंब अपने मार्मिक रूप में पाठकों के अंतर्मन को कुरेदते हैं और ऐसी एक छाप छोड़ जाते हैं, जो टीस तो देती है, लेकिन आनंद भी देती है। एक पत्रकार किस तरह दुनिया देखता है और उस की संवेदनशीलता किस प्रकार उस के जीवन को प्रभावित करती है, यह उपन्यास पढ़ कर जाना जा सकता है। एक पाठक के लिए इस से सुंदर क्या हो सकता है कि वह एक ऐसा उपन्यास पढ़े, जो दिल पर चोट करे और संग-साथ मरहम भी रखता जाए। इस उपन्यास को मरहम और चोट, दोनों के संयुक्त आनंद के लिए पढ़ा जाना चाहिए।
साझे की बेटियाँ (कविता संग्रह) । सुनीता करोथवाल । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 120 । मूल्य : 200/-
सुनीता करोथवाल के चौथे काव्य संग्रह ‘साझे की बेटियाँ’ का शीर्षक ही पहली दृष्टि में पाठकों को भारत जैसे देश में स्त्रियों की स्थिति और परिस्थितियों का एक महीन परिचय दे देता है। हरियाणा जैसे पुरूष-प्रधान राज्य से संबंध रखने वाली सुनीता करोथवाल का यह संग्रह वेरा प्रकाशन से आया है और इस में स्त्री-मुक्ति, पुरातत्व, मानव के मनोवैज्ञानिक पक्ष और खोखली परम्पराओं के विरोध में मुखर स्वर वाली कविताएँ हैं।
इस संग्रह में शामिल कविताएँ ग्रामीण संस्कृति, स्त्री-दशा, लोक पर आधारित कविताएँ हैं, जिन में सुनीता समाज के दोगलेपन और सौंदर्य दोनों को ही उन की अस्ल शक्ल में दर्ज करती हैं। मानव का मनोवैज्ञानिक पक्ष किस प्रकार हमारे जीवन को दिशा देता है, इस संग्रह की कविताएँ उस का भरपूर चित्र प्रस्तुत करती हैं।
हरियाणा की परम्परा, लोक व संस्कृति को बारीक ढंग से समझने के लिए इस संग्रह की कविताएँ आप की मददगार साबित होंगी। ग्राम्य-जीवन के सुरम्य बिंबों, स्त्री-उत्पीड़न के विरोध में उठती आवाज़ और परिस्थतियों से बग़ावत पर आधारित इस संग्रह की कविताओं को हरियाणा के लोक, परंपरा और संस्कृति की नब्ज़ जानने के लिए पढ़ा ही जाना चाहिए।
जब एक ही घर में रहना है (कविता संग्रह) । शैलेंद्र शांत । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 100 । मूल्य : 150/-
शैलेंद्र शांत के कविता संग्रह ‘जब एक ही घर में रहना है’ की कविताओं को उम्र का लेखा-जोखा कह कर पुकारा जा सकता है। इस संग्रह में शामिल उन की कविताएँ बहुत लंबी न होते हुए भी अपने आप में अनुभव का विस्तृत दस्तावेज़ हैं। क़स्बाई सादेपन और जीवन की विंसगतियों के मध्य व्याप्त दावानल रूपी अधर में झूलती इस संग्रह की कविताओं को जीवन के विभिन्न रंगों के आस्वाद हेतु पढ़ा ही जाना चाहिए। इस में शामिल कुछ कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पहले छपी हैं, जिन में सामाजिक संगति-विसंगति के बिम्ब हैं और अपने समय के मुखर स्वर भी हैं।
कवि की सामाजिक चेतना और उस के भीतर के मध्य-वर्गीय मनुष्य के बीच के अंतर्द्वंद्व को गहराई से जानने के लिए इस संग्रह की कविताओं पर निगाह करना ज़रूरी सा है। इसी मानवीय ऊहापोह में किस प्रकार कविता बनती है, इस संग्रह में देखा जा सकता है।
सब माया है (बेतरतीब किस्से) । डॉ. अजित । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 164 । मूल्य : 195/-
स्त्री की पारंपरिक आदर्श छवि के कई प्रतिमानों से मुक्त इस चिरप्रतीक्षित पुस्तक की मुख्य पात्र मुझे इसलिए भी प्रिय है कि वह स्त्री को अधिक मनुष्य होने का अवसर देती है।
माया की परिपक्वता में एक परिष्कृत चेतना के दर्शन होते हैं। वह हर अस्तित्व जन्य दबाव से मुक्त है। या कहें कि अपेक्षाओं, नैतिक-सामाजिक नियमावलियों आदि के हर दबाव पर विजय कर आयी है। प्रतीत होता है वह लंबे आत्मसंवाद में रही है और अब उसके पास हर प्रश्न, हर जिज्ञासा का ठोस उत्तर है। उसके वाक्यों में एक दृढ़ कथन है।
पात्रों की भरमार नहीं होना ‘सब माया है’ का एक उल्लेखनीय पक्ष है। यहाँ दृश्यों की भीड़ भी नहीं। यह दो पात्रों की यात्राओं की कहानी है। ये यात्राएँ बाहरी भी हैं और भीतरी भी। बाहरी यात्राओं में पहाड़ हैं, मैदान हैं, समंदर हैं, जिनके बहाने बहुत-सा गूढ़-अगूढ़ किया गया है।
भीतरी यात्राओं का माध्यम हैं प्रश्नोत्तर। अधिकतर प्रश्न नायक की ओर से आते हैं। प्रश्न साधारण हैं, उत्तर अप्रत्याशित। उत्तर पाठक को चौंकाते हैं, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं और अंततोगत्वा पाठक पात्रों की यात्रा में साथ हो लेता है।
ऐसा इसलिए कह रही हूँ, क्योंकि मेरे लिए यह सीरीज़ मेरे अपने मानस की छानबीन
का मामला रहा। इस वृत्तांत से गुज़रते हुए अपने बहुत से कॉन्सेप्ट्स से प्रथम साक्षात्कार हुआ। यह मनोविज्ञान पर लेखक की अंदरूनी पकड़ का परिणाम है।
नायक और नायिका का रिश्ता इस पुस्तक का एक और अनूठा पक्ष है। यह रिश्ता ना दोस्ती का है (नायिका के दावे के बावजूद), ना प्रेम का और ना ही इन दोनों के कहीं बीच की कोई स्थिति है।
कहीं लगता है नायक, नायिका के प्रभामंडल के प्रभाव क्षेत्र में है तो कहीं नायिका की नायक पर भावनात्मक निर्भरता महसूस होती है। यह मायालोक में सबसे रोचक जिज्ञासा बिंदु है कि कौन किस पर भारी? माया कहीं-कहीं डॉमिनेटिंग दिखती है और नैरेटर सबमिसिव। कहीं-कहीं घटनाएँ और संवाद माया को नायक के मुकाबले बुद्धिमती स्थापित करते हैं। ठीक उसी समय नायक जानबूझकर अल्पज्ञानी बना हुआ महसूस होता है। लगता है जैसे नैरेटर चाहता है कि हर दुविधा का निवारण माया की ज़ुबानी हो। वस्तुत: यह दो पात्रों का पारस्परिक समझ का रिश्ता है,जहाँ संयोगवश एक पात्र पुरुष है और दूसरा स्त्री।
यह स्त्री पात्र लेखक के भीतर स्त्री की इच्छित छवि का प्रतिबिंब ना होकर, ‘लेखक कैसी स्त्री होना चाहेगा’ की अभिव्यक्ति है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि डॉ. अजित स्त्री मन के लेखक हैं। यह बात दो तरह से समझी जा सकती है। लेखक के पास एक स्त्री के मन की समझ है और लेखक की स्वयं के अंदर के स्त्री तत्व से बहुत निकटता है। माया लेखक के भीतर की स्त्री है।
एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू जो मेरे संज्ञान में आया वह यह कि हिंदी लेखन का ढाँचा मूल रूप में पितृसत्तात्मक है। ऐसे में लेखक का अपनी नायिका को इतना स्पेस देना सुखद है। यह लेखक का सदियों और पीढि़यों से अपने ईद-गिर्द स्थापित रूढि़यों की नकार भी है।
माया प्रचलित स्त्री पात्रों से कहीं अधिक मनुष्य है शायद इसलिए कि यह पात्र थोड़ा ग्रे है।
रूढ़ आदर्शों से दूर रखते हुए लेखक बड़ी आसानी और बारीकी से उसे पौरुषेय होने से भी बचा ले जाता है। नायिका कहीं भी अपनी नैसर्गिक स्त्रीयोचित विशिष्टताओं से विचलित नहीं दिखाई पड़ती।
तो मायालोक में ‘सब माया’ नहीं है। इसके केंद्र में एक मज़बूत मानवीय पात्र है, जो अपने और अपने अंदर-बाहर के पर्यावरणीय घटकों के बारे में यथार्थवादी दार्शनिक दृष्टिकोण रखता है।
— सुदर्शन शर्मा
कवयित्री
दुनिया का अंतिम घोषणापत्र (कविता संग्रह) । कमलजीत चौधरी । दूसरा संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 116 । मूल्य : 195/-
दुनिया का अंतिम घोषणा पत्र पढ़ते हुए महसूस कर रही हूँ कि कविता को बचा ले जाना आज के समय की महत्वपूर्ण चुनौती है। एक कवि की पीड़ा और कशमकश दुनिया की तमाम चीजों को लेकर होती है ऐसे में वह एकांगी होकर भी एकांगी नहीं होता। दुनिया की तमाम उठापटक को देखने की अपनी दृष्टि कवि में होनी चाहिए और यही एक बात उसे औरों से अलग करती है इसके लिए एकांगी होना पहली शर्त है …
कमलजीत चौधरी अपनी कविता में अपनी पक्षधरता और समाज में अपनी स्थिति को बकायदा दर्ज करते नजर आते हैं। उनकी कविताओं में एक कवि, कविता और बदलती हुई दुनिया का जितना जिक्र है उससे भी अधिक एक स्त्री की अस्मिता और उसकी दृष्टि का आकलन है जो सुखद है ….
मेरे ख्याल से वह कविता मुकम्मल होती है जिसमें पृथ्वी के साथ साथ एक स्त्री हो और एक बच्चा हो जो पूरी दुनिया रचती है।
कवि अपने पूरे वजूद में स्त्री का होना महसूस करते हैं जब वे अपने साक्षात्कार के विषय में कहते हैं कि
मैं इसे दूंगा हर उस लड़की को
जिनसे हर कोई सवाल पूछता रहता है …
जब तुम चली जाओगी
तो हर उस खिड़की को मैं उलाहने दूंगा
जो तुम्हारी याद की हवा को
अन्दर आने से रोकेगी
तुम एक बहुत छोटी सी दुनिया में भी रहती हो
एक कमरे के घर जैसी दुनिया में
एक खिड़की के पास
कातर खड़ी
एक फूल के लिए दुआ मांगते हुए …
एक स्त्री के मनोभावों को अपनी दुनिया में महसूस करना कविता का सौन्दर्य है। उसी तरह बच्चों की मासूम दुनिया में जब कवि का प्रवेश होता है तो कविता अपना अर्थ स्वयं तलाशने लगती है।
जो कभी स्कूल नहीं गए
उन बच्चों ने भी सीख लीं हमारी भाषाएं
हम बच्चों की भाषा नहीं सीख पाए…
कत्ल पर
लम्बी टिप्पणी लिखकर
बच्चा प्रश्नचिन्ह छोड़ जाता है…
और इस तरह से कवि एक सुंदर दुनिया की तलाश में इधर उधर भटक यहा होता है उसकी चिंता स्त्री और बच्चों तक ही सीमित नहीं है विलुप्त होने उन सभी प्रजातियों से भी है जिनका होना एक खुबसूरत दुनिया होने की एक अनिवार्य शर्त है …
जैसे डायनासोर प्रजाति लुप्त हो गई
हर बीस मिनट में धरती से एक प्रजाति लुप्त हो रही है …
कवि की यह चिंता वैश्विक होते हुए भी निज व्यथा है।
दुनिया की सबसे खुबसूरत कविता
लिखी जाना बाकी है
उसे कौन लिखेगा
यकीनन एक औरत लिखेगी …
एक स्त्री पर इस भरोसे का टिका होना एक खुबसूरत दुनिया के बनने का आगाज भर है। यह एक ख्वाब है जो कवि की आंखों में बसता है।
यकीनन कवि प्रेम की बातें करता है। इस दुनिया में जब तक प्रेम है तब तक ही उसका अस्तित्व है वर्ना खतरे में है उसकी अस्मिता।
जब वे एक सवाल पूछते हैं कि
जिसने बंदूक बनाई
उसने क्या बनाया ?
इस सवाल में ही दुनिया की सारी सर्जनात्मक क्षमता छिटी हुई है। प्रेम या युद्ध यह चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है।
यकीनन एक खुबसूरत दुनिया को रचने के लिए
चिड़िया, मछली और हिरण लिखेंगे
दुनिया का अंतिम घोषणापत्र …
कमलजीत चौधरी समकालीन कवियों के एक एसे हस्ताक्षर हैं जिनकी मौजूदगी कविता में एक जरूरी हस्तक्षेप है …
दुनिया का अंतिम घोषणा पत्र वेरा प्रकाशन की पहली पुस्तक है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
-स्वस्ति सीमा
प्रभावकारी।