उस रात हमारी माँ दुकान गई और वह वापस नहीं लौटी। क्या हुआ, मैं नहीं जानती। मेरे पिता भी एक दिन चले गये थे, और कभी वापस नहीं आये, लेकिन वह युद्ध में लड़ रहे थे। हम लोग भी युद्ध में थे, लेकिन हम बच्चे थे। हम लोग अपनी दादी और दादा की तरह थे, हम लोगों के पास बन्दूकें नहीं थी। वे लोग जिनसे मेरे पिता लड़ रहे थे, हमारी सरकार जिन्हें लुटेरे कहती है, वे हर जगह पहुंच गये थे और उनसे हम ऐसे दूर भागते थे जैसे कुत्तों के दौड़ाने पर चूजे भागते हों। हमें नहीं मालूम था कि कहां जाना हैं। हमारी माँ इसलिए दुकान गई थी, क्योंकि किसी ने उससे कहा था कि वह खाना बनाने के लिए थोड़ा सा तेल ला दे। हम लोग खुश थे क्योंकि एक लंबे समय से हम लोगों ने तेल का स्वाद नहीं चखा था। शायद उसे तेल मिल गया था और किसी ने उसे अंधेरे में धक्का दे दिया और उससे वह तेल छीन लिया। शायद वह लुटेरों के सामने पड़ गयी थीं। यदि आप उनके सामने पड़ जाए तो वे आपको मार डालेंगे। हमारे गाँव में वे दो बार आये और हम लोग भाग गये और झाड़ियों में छुप गये, और जब वे चले गये, हम लोग वापस लौटे और पाया कि वे लोग सब कुछ ले जा चुके थे, लेकिन जब वे तीसरी बार वापस आये तो ले जाने के लिए कुछ भी नहीं था, न कोई तेल, न खाना। अतः उन्होंने फूस में आग लगा दी और हमारे घरों की छतें धराशायी हो गई। मेरी माँ को टिन के कुछ टुकड़े मिल गये थे और उन्हें हम लोगों ने घर के एक हिस्से पर लगा दिया। हम लोग वहां उस रात उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, जबकि वह कभी वापस नहीं लौटी।
शहर जाने मे हम लोगों को डर लगता था-यहां तक कि अपने नित्यकर्म के लिए भी, क्योंकि लुटेरे आ सकते थे; हमारे घर में नहीं-बिना छत के वह ऐसा दीखता होगा जैसे कि उसमें कोई न हो। सब कुछ चला गया हो जैसे। लेकिन पूरे गाँव में वे आये थे। हमने लोगों को चीखतें और भागते सुना। हम लोगों को तो भागने में भी डर लगा क्योंकि हम भाग कर कहां जाए, यह बताने के लिए माँ नहीं थी। मैं बीच की हूँ, लड़की, और मेरा छोटा भाई अपनी बाँहें मेरे गर्दन में और पैर मेरे कमर में लपेटे, मेरे पेट से चिपका हुआ था, जैसे बंदर का एक बच्चा अपनी माँ से चिपकता है। पूरी रात मेरा बड़ा भाई हमारे जले हुए घर के खम्भों में से लकड़ी का एक टूटा टुकड़ा अपने हाथ में लिये रहा। ऐसा उसने खुद को बचाने के लिए किया था, अगर लुटेरे उसे पकड़ लें तो।
हम लोग वहाँ पूरे दिन रूके रहे, माँ की प्रतीक्षा करते हुए। मैं नहीं जानती, सप्ताह का वह कौन सा दिन था। अब हमारे गाँव में कोई स्कूल, कोई चर्च नहीं था, और इसलिए आप नहीं जान सकते थे कि वह एक रविवार था या सोमवार था।
जब सूर्यास्त हो रहा था, हमारी दादी और दादा आये। हमारे गाँव के किसी ने उन्हें बताया था कि हम बच्चे अकेले थे; हमारी माँ वापस नहीं लौटी थी। मैं दादी का उल्लेख ‘दादा’ से पहले करती हूँ क्योंकि बात यूं है, हमारी दादी बड़ी और मजबूत है। अभी भी बूढ़ी नहीं है, और हमारे दादा छोटे हैं। आप नहीं जान सकते वह कहां है जब वह अपने ढीले पतलून पहने हों, वह मुस्कुराते हैं, यद्यपि कि उन्होंने वह नहीं सुना होता है आपने जो कहा है, और उनके बाल ऐसे दीखते हैं मानो उन्होंने उन्हें साबुन के झाग में सानकर छोड़ दिया हो। हमारी दादी हमें, मुझे, बच्चे को, मेरे बड़े भाई को, मेरे दादा को अपने घर ले गई। हम सभी डरे हुए थे उस छोटे बच्चे के अलावा जो हमारी दादी के पीठ पर सो रहा था। हम लोगों ने अपनी दादी के घर पर एक लंबे समय तक प्रतीक्षा किया। शायद एक माह। हम लोग भूखे थे। हमारी माँ कभी नहीं आयी, जबकि हम लोग उसके आकर हमें ले जाने का इंतजार कर रहे थे। हमारी दादी के पास हमें खाने को देने के लिए कुछ भी नहीं था। हमारे दादा के खाने के लिए कुछ भी नहीं था, और न ही उसके स्वयं के लिए। एक ऐसी औरत ने, जिसके स्तनों में दूध था, मेरे छोटे भाई के लिए उसमें से थोड़ा दूध दिया, हालांकि हमारे घर में वह वही दलिया खा लेता था, जो कि हम लोग खाते थे। हमारी दादी हमें साथ लेकर जंगली पालक ढूढ़ने गईं, लेकिन फिर गाँव में सभी लोगो ने यही किया और उसके बाद उसकी एक पत्ती तक नहीं बची थी।
हमारे दादा कुछ नौजवान लोगों के थोड़ा पीछे चलते हुए, हमारी माँ को खोजने गये, लेकिन उसे नहीं ढूढ़ सके। हमारी दादी कई और औरतों के साथ मिलकर रोती रहीं और मैं भी उनके साथ रोई। वे लोग थोड़ा सा खाना लाये थे, थोड़ा मटर, लेकिन दो दिनों के बाद फिर से कुछ नहीं था। हमारे दादा के पास तीन भेड़ें और एक गाय और सब्जी का एक बाग हुआ करता था, लेकिन लुटेरे बहुत पहले ही भेड़ें, और गाय को ले जा चुके थे क्योंकि वे भी भूखे थे; और जब बुवाई का मौसम आया तो हमारे दादा के पास बोने के लिए कोई बीज नहीं था।
इसलिए उन लोगों ने निर्णय लिया कि हम लोग वहां से चले जायेंगे। हमारी दादी ने ऐसा किया। हमारे दादा ने थोड़ा बहुत शोरगुल किया और एक छोर से दूसरे छोर तक चहलकदमी करते रहे, लेकिन उन्होंने (दादी ने) उस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। हम बच्चे खुश थे। हम ऐसी जगह से चले जाना चाहते थे जहां हमारी माँ न हो और जहां हम भूखे हों। हम वहां जाना चाहते थे, जहां लुटेरे न हों और वहां खाना हो। हम यह सोचकर खुश थे कि ऐसी कोई जगह है यहां से दूर।
हमारी दादी ने चर्च जाने वाले अपने कपड़े किसी को देकर उसके बदले में कुछ सूखे मक्के ले लिए और उन्होंने उसे उबाल लिया और उसे एक कपड़े के टुकड़े में बाँध लिया। जब हम लोग चले तो हम लोगों ने उसे अपने पास रख लिया और उन्होंने (दादी ने) सोचा कि पानी हम लोगों को नदियों से मिल जायेगा, परन्तु हम लोगों को इतनी प्यास लग गई कि हमें वापस लौटना पड़ा। लौटकर वापस अपने दादा-दादी के घर नहीं, परन्तु एक ऐसे गाँव में जहां एक पम्प था। उन्होंने वह टोकरी खोला जिसमें इन्होंने कुछ कपड़े और मक्का रखा हुआ था, और उन्होंने पानी के लिए एक बड़ा प्लास्टिक का बर्तन खरीदने के लिए अपने जूते बेच दिए। मैंने कहा, दादी, अब तुम बिना जूतों के चर्च कैसे जाओगी ? लेकिन उन्होंने कहा कि हमारी यात्रा लंबी है और हमारे पास बहुत अधिक सामान हो गया हैं। उस गाँव में हमारी मुलाकात अन्य लोगों से हुई जो हमारी ही तरह गाँव छोड़कर जा रहे थे। हम लोग उनके साथ हो लिये क्योंकि वह जगह कहां है, इसकी जानकारी उन्हें हमसे बेहतर पता थी।
वहां पहुचने के लिए हम लोगों को क्रूगर पार्क से होकर जाना था। हम लोग क्रूगर पार्क के बारे में जानते थे। वह एक तरह से सभी जानवरों का अड्डा था हाथी, शेर, सियार, भेड़िये, दरियाई घोड़े, घड़ियाल सभी प्रकार के जानवर। युद्ध से पहले उनमें से कुछ हमारे क्षेत्र में रहते थे। हमारे दादाजी को याद है, हम बच्चे तब पैदा भी नहीं हुए थे। लुटेरे हाथियों को मार डालते हैं, और उनके दाँत बेच देते हैं, और लुटेरे तथा हमारे सैनिक सारे हिरन खा चुके थे। हमारे गाँव में बिना पैरों का एक आदमी था हमारी नदी में एक मगरमच्छ उसके पैरों को खा गया था, लेकिन चाहे जो हो, हमारे यहां से कुछ लोग अपना घर छोड़कर वहां ऐसे स्थानों पर काम करने के लिए जाते थे जहां गोरे लोग सैर-सपाटा और जानवरों को देखने के लिए आते थे।
तो, हम लोगों ने फिर से चलना शुरू किया। हम लोगों में औरते थीं, और मेरे जैसे और बच्चे थे, जिन्हें अपने से छोटे बच्चों को अपनी पीठ पर तब ढोना पड़ता था, जब औरतें थक जाती थीं। एक आदमी की अगुवाई में हम क्रूगर पार्क जा रहे थे; क्या अब हम वहां पहुंच गये हैं, मैं अपनी दादी से लगातार यह पूछती रही। अभी नहीं, उस आदमी ने कहा, जब उससे मेरी दादी ने मेरे लिए पूछा। उसने हमें बताया कि चारदीवारी से बचकर जाने के लिए हमें लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी, जो कि (चारदीवारी) उसने बताया, तुम्हारी जान ले लेगा; जैसे ही उसे छुओगे वैसे ही तुम्हारी खाल को जला डालेगा, ठीक उन तारों की तरह जो खम्भों पर लगे होते हैं, जिनसे हमें शहरों में बिजली मिलती है। एक ऐसे सिर के निशान को, जिसमें न आँखे हों, न खाल न बाल हो, मैंने लोहे के एक बक्से पर बने हुए उस मिशन अस्पताल में देखा था, जो हमारे यहां था जब तक कि उसे उड़ा नहीं दिया गया।
जब अगली बार मैंने पूछा तो उन लोगों ने कहा कि हम लोग एक घंटे से क्रूगर पार्क में चल रहे थे। लेकिन वह तो बस उन झाड़ियों की तरह दीख रहा था, जिसमें हम लोग पूरे दिन चलते रहे थे और हम लोगों ने कोई जानवर नहीं देखा था सिवाय बन्दरों और चिड़ियों के, जो हमारे घर पर हमारे आस-पास रहते थे, और एक कछुआ भी जो हम लोगों से बचकर भाग न सका। मेरा बड़ा भाई और अन्य दूसरे लड़के उसे उस आदमी के पास ले आये जिससे कि उसे मारा जा सके और हम लोग उसे पकाकर खा सके। उसने उसे जाने दिया क्योंकि उसने बताया कि हम लोग आग नहीं जला सकते थे; उस पूरे समय जब हम लोग पार्क में थे, हम लोगों को आग बिल्कुल नहीं जलाना था, क्योंकि धुएं से हमारा पता चल जाता कि हम लोग कहां पर है। ऐसे में पुलिस और प्रहरी आ जाते और हम लोगों को वहीं वापस भेज दिया जाता जहां से हम लोग आये थे। उसने कहां कि जानवरों के बीच हमें जानवरों की तरह चलना है, सड़क से दूर, खेतों के कैंप से दूर। और उसी क्षण मैंने एक आवाज सुनी, मुझे पूरा विश्वास है कि मैंने ही उसे सबसे पहले सुना। पेड़ों की शाखाओं के टूटने और किसी के द्वारा घास को चीरते हुए चलने की आवाज और मैं लगभग चीख पड़ी थी, क्योंकि मैंने सोचा कि पुलिस या चैकीदार थे जिनसे उसने बताया था कि हमें बचना है-जिन्होंने हमें देख लिया था। लेकिन वह एक हाथी था, फिर एक और हाथी, फिर कई हाथी, पेड़ों के बीच। जहां भी देखिए वहीं अंधेरे के विशाल चकत्ते घूम रहे थे। अपने सूड़ों को वे मोपेन पेड़ों की लाल पत्तियों के चारों ओर लपेट लेते थे और फिर उन्हें अपने मुँह में ठॅूस लेते थे। बच्चे माँ से सटे हुए खड़े थे। जो लगभग बड़े हो गये थे, वे ऐसे धक्का-मुक्की कर रहे थे जैसे मेरा बड़ा भाई अपने दोस्तों के साथ करता था। अंतर यह था कि हाथ की जगह वे सूंड़ का प्रयोग कर रहे थे। मैं इससे इतना आकर्षित हुई कि मैं डरना भूल गई। उस आदमी ने कहा कि जब हाथी गुजर रहे हों तो हमें चुपचाप खड़ा रहना चाहिए और शांत रहना चाहिए। वे बहुत धीरे-धीरे गुजर रहे थे क्योंकि हाथी इतने बड़े होते हैं कि किसी से भी दूर नहीं भाग सकते।
हिरन हम लोगों से दूर भागते थे। वे इतने ऊँचे तक कूद जाते थे कि लगता था कि वे उड़ रहे हैं। ऐसे रूक जाते थे जैसे वे मर गये हो जब भी वे हमारा आना सुनते थे, और फिर दूसरी दिशा की तरफ ऐसे भागते थे जैसे हमारे गाँव में एक लड़का उस साइकिल को लहराते हुए चलाता था जिसे उसके पिता खान में काम करने के बाद वापस आने पर ले आए थे। हम लोग जानवरों का पीछा करते। उनके पानी पीने की जगह तक जाते थे। जब वे चले जाते थे तो हम लोग पानी से भरे हुए उस जगह में जाते थे। हम लोग तो तब तक प्यासे नहीं होते थे जब तक पानी न खोज लें, लेकिन जानवर तो हमेशा खाते ही रहते थे। उन्हें जब भी देखा वे खा रहे होते थे, घास, पेड़, जड़। और हम लोगों के खाने के लिए कुछ भी नहीं था। मक्का खत्म हो चुका था। हम लोग जो खा सकते थे वह वही था जो बंदर खाते थे-चींटियों से भरे हुए सूखे अंजीर जो नदी के किनारे वाले पेड़ों की शाखाओं पर लगे होते थे। जानवरों की तरह हो जाना बहुत कठिन था।
जब दिन बहुत गर्म होता था तो हमें सोते हुए शेर मिल जाते थे। वे घास के रंग के ही थे और शुरू में हम उन्हें नहीं देख पाये, लेकिन उस आदमी ने देख लिया और उसने हमें वापस लौटा दिया और उस जगह से बहुत दूर के एक रास्ते से हमें ले गया। मैं शेरों की ही तरह नीचे गिरकर सो जाना चाहती थी। मेरा छोटा भाई दुबला होता जा रहा था, लेकिन वह बहुत भारी था। जब मेरी दादी उसे मेरी पीठ पर देने के लिए मुझे ढूंढ़ती थी तो में कोशिश करती थी कि उनकी तरफ न देखूँ। मेरे बड़े भाई ने बात करना ही बंद कर दिया था और जब हम लोग आराम करते थे तो फिर से उठने के लिए उसे हिलाना पड़ता था, मानो वह मेरे दादाजी की तरह हो जो सुन नहीं सकते थे। मैंने देखा कि हमारी दादी के चेहरे पर मक्खियां रेंग रही थी और वे उन्हें उड़ा नहीं रही थीं; मैं डर गई। मैंने खजूर की एक पत्ती उठाया और उन्हें उड़ा दिया।
हम लोग रात में और दिन में दोनों ही समय चलते थे। हम लोग वह आग देख सकते थे, जहां श्वेत लोग कैम्प में खाना बनाते थे और हम लोग धुएं और गोश्त के महक को महसूस कर सकते थे। हम लोग लकड़बग्घों को, जो झाड़ियों में उस महक के पीछे जाते थे, उस ढलान की तरफ ऐसे पीठ किये हुए जाते देखते थे मानो वे शर्मिंदा हों। यदि उनमें से एक सिर उठाता था, तब हमें उसकी बड़ी भूरी चमकती आँखे दीखती थीं-हमारी आँखों की तरह, जब हम लोग एक दूसरे की तरफ अंधेरे में देखते थे। हवा हमारी ही भाषा की आवाजों को हमारे तक उन परिसरों से ले आती थी, जिनमें वे लोग रहते थे, जो कैंपों में काम करते थे। हम लोगों में से एक औरत उन लोगों के पास रात में जाकर उनसे सहायता मांगना चाहती थी। उसने कहा कि वे लोग कूड़े के डिब्बे में फेंका जाना वाला खाना हमें दे सकते थे। वह रोने लगी और मेरी दादी को उसे पकड़ना पड़ा और उसके मुँह पर हाथ रखना पड़ा। जो आदमी हमारा नेतृत्व कर रहा था, उसने हमें बताया था किहमें उन लोगों से दूर रहना होगा जो लोग क्रूगर पार्क में काम करते हैं। यदि उन लोगों ने हमारी सहायता किया तो उनकी नौकरी जा सकती है। अगर वे लोग हमें देख लेते थे तो वे इतना भर करते थे कि वे ऐसे व्यवहार करते थे मानों हम लोग वहां थे ही नहीं; मानो उन लोगों ने केवल जानवरों को देखा हो।
कभी-कभी हम लोग रात में थोड़ी देर सोने के लिए रूकते थे। हम लोग एक दूसरे के बहुत पास-पास सोते थे। मुझे नहीं मालूम कि वह कौन सी रात थी, क्योंकि हम लोग चलते जा रहे थे, चलते जा रहे थे, किसी भी समय, हर समय। हम लोगों ने शेर की आवाज बहुत पास से सुना। उस तरह की गुर्राहट नहीं जैसा वे दूर होते हैं तो सुनाई देता है, बल्कि हांफने की आवाज थी। हम लोग सुन सकते थे कि वे दौड़ नहीं रहे थे, वे प्रतीक्षा कर रहे थे, कहीं पास में। हम लोग जमींन पर लेट गये, एक दूसरे से बिल्कुल सटकर, इस तरह कि जो बिल्कुल किनारे पर था वह इसके लिए कोशिश कर रहा था कि वह बीच में आ जाए। मैं एक ऐसे औरत से दबी पड़ी थी जिससे बदबू आ रही थी क्योंकि वह डरी हुई थी लेकिन मुझे खुशी थी कि मैंने उसे कसकर पकड़ रखा था। मैं भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि शेर किनारे से किसी को उठा ले और चला जाए। मैंने अपनी आँख बंद कर लिया जिससे कि मैं वह पेड़ न देख सकूं जहां से शेर हमारे बीच में वहां कूद सकता था, जहां मैं थी। इसके बजाय, वह आदमी जो हमारा नेतृत्व कर रहा था,कूदा और एक सूखे लठ्ठे से उस पेड़ पर प्रहार करने लगा। उसने हमें सिखाया था कि कभी शोर नहीं करना है, किन्तु वह चिल्ला रहा था। वे शेरों पर हमारे गांव में उन शराबियों की तरह चिल्ला रहा था, जो अनायास चिल्लाते हैं। शेर चले गये। हमने उन्हें गुर्राते सुना और दूर से उस आदमी की तरफ दहाड़ते सुना।
हम लोग बहुत थक गये थे, बहुत अधिक। जहां भी हम लोगों को नदियों को पार करने के लिए स्थान मिलता था, मेरे बड़े भाई और वह आदमी मेरे दादाजी को एक पत्थर से दूसरे पत्थर तक उठाकर ले जाते थे। हमारी दादी मजबूत हैं, परन्तु उनके पैरों से खून बह रहा था। हम अपने सिर पर टोकरी को और अधिक नहीं ढो सकते थे। हम लोगों ने एक झाड़ी के अन्दर अपनी चीजें छोड़ दीं। हमारी दादी ने कहा कि जहां तक शरीर चल सकता था, ले चला जाए। फिर हम लोगों ने कुछ ऐसे जंगली फल खाये जिनसे हम लोग परिचित नहीं थे, और हमारा पेट खराब हो गया। हम लोग ऐसे घास के बीच थे जिसे हाथी-घास कहा जाता था, क्योंकि वे हाथी जितनी ऊँची थीं। उसी दिन हमें वह संताप। हमारे दादाजी हमारे छोटे भाई की तरह सभी के सामने ही निवृत्त नहीं हो सकते थे, और उसके लिए घास के अंदर अकेले ही चले गये। हमें चलते रहना होगा, ऐसा वह आदमी हमें हमेशा बताता रहता था, हमें तेज चलना होगा, परन्तु हमने उससे दादाजी के लिए इंतजार करने का आग्रह किया।
तो सभी लोग दादाजी के लौट आने का इंतजार करते रहे। लेकिन वह नहीं आये। वह दोपहर था; कीट-पतंगे हमारे कानों में भनभना रहे थे और हम लोग उनको (दादाजी को) घास में चलते हुए नहीं सुन पाये थे। हम लोग उन्हें देख नहीं सकते थे क्योकि घास बहुत ऊँची थी और वह बहुत छोटे थे। लेकिन वह वहीं कहीं अंदर थे, अपने ढीले-ढाले पतलून और कमीज में, जो फट गया था और जिसे हमारी दादी सिल नहीं सकती थीं क्योंकि उनके पास धागा नहीं था। हम जानते थे कि वह बहुत दूर नहीं गये होंगे, क्योंकि वे कमजोर थे। हम सब उन्हें ढूंढ़ने गये, किन्तु समूह बनाकर जिससे हम लोग भी एक दूसरे से न छिप जायं उस घास में। वह हमारे आँखों और नाकों में घुस जाती थी। हम लोग उन्हें पुकारते रहे, लेकिन कीट-पतंगों की आवाज ने उनके कान में सुन सकने की थोड़ी बहुत जगह को भी भर दिया होगा। हम लोग ढूढ़ते रहे लेकिन उन्हें नहीं खोज सके। हम लोग पूरी रात उस लंबे घास के बीच ही रहे। मैंने अपनी नींद में उन्हें ऐसे जगह गुर्ड़-मुड़े देखा जो उन्होंने अपने लिए साफ करके ऐसे बनाया था जिस तरह की जगह में हिरणी अपने बच्चो को छुपाती है।
जब में सोकर उठी तब तक भी उनका कहीं पता नहीं था। इसलिए हमने उन्हें फिर से ढूँढ़ा, और अब जबकि घास के अन्दर हम लोगों के बार-बार जाने से रास्ते बन चुके थे, उनके लिए अब हम लोगों तक पहुंच जाना ज्यादा आसान हो गया था, तब भी जबकि हम लोग उन तक न पहुंच पाये। पूरे दिन हम लोग सिर्फ बैठे रहे और प्रतीक्षा करते रहे। सब कुछ बहुत शांत होता है अगर सूरज आपके सिर के ऊपर हो, सिर के अन्दर हो, भले ही आप जानवरों की तरह पेड़ों के नीचे लेटे रहे। मैं अपनी पीठ के बल लेटी रही, और मुड़ी हुई चोंच और बिना रोयें के गर्दन वाली उन कुरूप चिड़ियों को देखती रही जो हमारे ऊपर गोलाई में उड़ रही थीं। हम लोग अक्सर उनके पास से गुजरे थे जब वे मरे जानवरों की हड्डियां खा रहे होते और ऐसे में कभी भी हमारे खाने के लिए कुछ भी बचा नहीं होता था। गोल-गोल, ऊंचे ऊपर, और नीचे, फिर से ऊपर। मैंने उनके गर्दनों को इस तरफ लटककर ढूंढ़ते हुए देखा। गोल-गोल उड़ते हुए। मैंने देखा कि मेरी दादी भी, जो बराबर मेरे छोटे भाई को अपनी गोदी में लिए बैठी थी, उन्हें ही देख रही थी। वह आदमी जो हमारा नेतृत्व कर रहा था, दोपहर में हमारी दादी के पास आया और उनसे बताया कि शेष लोगों को वहां से चलना होगा। उसने कहा कि अगर उनके बच्चों ने शीघ्र ही कुछ नहीं खाया तो वे मर जायेंगे।
हमारी दादी ने कुछ नहीं कहा। अपने चले जाने से पहले मैं तुम लोगों के लिए पानी ला दूंगा, उसने कहा।
हमारी दादी ने मेरे, मेरे बड़े भाई और अपनी गोद में बैंठे मेरे छोटे भाई की तरफ देखा। हम लोग चलने के लिए तैयार होते दूसरे लोगों को देख रहे थे। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि हमारे चारों तरफ की घास पूरी तरह खाली हो जायेगी जहां अभी वे सब लोग मौजूद थे। यह भी कि हम लोग क्रूगर पार्क में अकेले हो जायेंगे, और पुलिस और जानवर हमें खोज लेंगे। आँसू मेरे आखों और नाक से बहकर मेरे हाथ पर टपकने लगे लेकिन इस ओर मेरी दादी ने ध्यान नहीं दिया। वह उठी अपने पैर ऐसे फैलाये मानो गाँव पर अपने घर पर लकड़ी के गठ्ठर उठाने जा रही हों, मेरे छोटे भाई को घुमा कर अपनी पीठ पर रखा और अपने कपड़ों में उसे बांध लिया। उनके कपड़ों का ऊपरी हिस्सा फटा हुआ था और उनके बड़े स्तन दिख रहे थे।
उन्होंने कहा-आओ।
तो, हम लोगों ने बड़ी घास वाले उस स्थान को छोड़ दिया। पीछे छोड़ दिया। हम दूसरे लोगों के साथ, और उस आदमी के साथ जो हमारा नेतृत्व कर रहा था, चल दिये। हम जाने के लिए चलने लगे, फिर से।
वहां एक बहुत बड़ा शामियाना था-चर्च या स्कूल से भी बड़ा जो जमीन से बांधा गया था। वह क्या था, मैं तब तक नहीं समझ पाई जब तक हम लोग उसके पास नहीं पहुंच गये। वहाँ मैंने एक ऐसी चीज देखी जो बिल्कुल वैसी थी जब एक बार मेरी माँ हम लोगों को लेकर शहर गई थी क्योंकि उसने सुना था कि हमारे सैनिक वहां थे और वह उनसे पूछना चाहती थी कि क्या उन्हें पता है कि हमारे पिता कहां हैं। उस शामियाने में लोग प्रार्थना कर रहे थे और गा रहे थे। यह भी उस की तरह नीले और काले रंग का है लेकिन यह प्रार्थना करने और गाने के लिए नहीं है। हम लोग उसमें उन लोगों के साथ रहते हैं, जो हमारे देश से आये हैं। क्लीनिक की सिस्टर कहती हैं कि बच्चों को छोड़कर हमारी संख्या दो सौ हैं, और हम लोगों में नवजात शिशु भी हैं, जिनमें से कुछ क्रूगर पार्क से होकर आते समय रास्ते में पैदा हुए थे।
उसके अन्दर, तब भी जबकि सूरज चमक रहा हो, अंधेरा रहता है, और वहां एक तरह का पूरा गांव है। घरों के बजाय प्रत्येक परिवार के पास थोड़ी सी जगह है, जो बोरे या डिब्बों की दफ्ती, जो भी हमें मिल जाए, से घेर दिया गया है, दूसरे परिवारों को यह जताने के लिए कि यह मेरी जगह है और उन्हें इसके अंदर नहीं आना चाहिए, यद्यपि कि न तो कोई दरवाजा है, न खिड़की है और न ही छप्पर है, जिसके कारण अगर आप खड़े हैं और आप बच्चे नहीं है तो आप सबके घरों के अंदर देख सकते हैं। कुछ लोगों ने तो पत्थरों को घिसकर पेंट बना लिया है, और उससे बोरों पर चित्रकारी कर दिया है।
हाँ, वास्तव में एक छत है -वह शामियाना ही छत है, दूर, ऊपर। यह एक आकाश की तरह है, यह एक पर्वत की तरह है, और हम लोग उसके अंदर हैं, दरारों से धूल की एक पट्टी नीचे उतरती है, जो इतनी मोटी है कि आप उसके सहारे ऊपर चढ़ सकते हैं। शामियाना बारिश को ऊपर से तो रोकता है किन्तु पानी किनारों से अंदर और हमारी जगहों के बीच की पतली गलियों में घुस आता है। यह गलिया इतनी पतली हैं कि एक बार में एक ही व्यक्ति उनसे होकर जा पाता है और छोटे बच्चे, जो मेरे छोटे भाई जितने छोटे हैं, इन गलियों में कीचड़ में खेलते रहते हैं; आपको उनके ऊपर से गुजरना होता है। मेरा छोटा भाई नहीं खेलता है। मेरी दादी उसे क्लीनिक ले जाती है, जब हर सोमवार को वहां डाक्टर आता है। सिस्टर कहती हैं कि उसके सिर में कोई समस्या है। वह सोचती है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारे घर में हमारे पास पर्याप्त खाना नहीं था। कारण कि युद्ध था। कारण कि हमारे पिता नहीं थे। और कारण कि क्रूगर पार्क में वह बहुत भूखा रहा था। उसको हमारी दादी के पास पूरे दिन लेटे रहना अच्छा लगता है, उनकी गोदी में या उनसे सटकर कहीं भी और वह हम लोगों की तरफ बस देखता रहता है। वह कुछ पूछना चाहता है किंतु आप समझ सकते हैं कि वह ऐसा नहीं कर सकता। अगर मैं उसको गुदगुदाती हूँ तो वह बस मुस्कुरा देता है। क्लीनिक से हम लोगों को एक विशेष पाऊडर मिलता है जिससे उसके लिए दलिया बनती है, और शायद एक दिन वह पूरी तरह ठीक हो जायेगा।
जब हम लोग यहां पहुंचे थे तो हम लोग-मैं और मेरा बड़ा भाई भी-उसी की तरह थे। मुझे बहुत अच्छी तरह याद नहीं है। जो लोग शामियाने के पास के गांव में रहते थे, वे हम लोगों को क्लीनिक ले गये। यहीं आपकों इस आशय का हस्ताक्षर करना होता है कि आप काफी दूर से क्रूगर पार्क होते हुए आये हैं। हम लोग घास पर बैठ गये और उस समय हम कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे। एक सिस्टर जो अपने अच्छी तरह कढ़े हुए बालों और खूबसूरत ऊंची एड़ी के जूतों में अच्छी लग रही थीं, वह हम लोगों के लिए एक खास पाऊडर ले आई। उन्होंने कहा कि हमें उसे पानी में घोलना है और धीरे-धीरे पीना है। हम लोगों ने दांतों से फाड़कर पैकेट खोल लिया और पूरा चाट डाला। वह मेरे मुंह के चारों ओर चिपक गया, और मैंने अपने होठों और अंगुलियों पर से उसे चाट डाला। कुछ और बच्चे जो हम लोगों के साथ आये थे, उल्टी करने लगे। लेकिन मुझे केवल अपने पेट के अंदर सब कुछ घूमता हुआ सा लगा, वह चीज ऐसे नीचे की ओर, और चारों ओर, ऐसे जा रही थी जैसे कि साँप हो, और हिचकियों ने मुझे परेशान कर दिया। एक दूसरी सिस्टर ने हम लोगों से क्लीनिक के बरामदे में एक पंक्ति में खड़े हो जाने को कहा, किन्तु हम लोग ऐसा नहीं कर सके। हम लोग उस पूरे स्थान पर यहां-वहां बैठे रहे, और एक दूसरे पर गिरते रहे। सिस्टर लोगों ने हमारी बाँह पकड़ कर हमें संभाला और फिर उसमें एक सूई घुसा दिया। दूसरी सूईयों ने हमारा खून निकाल कर छोटी शीशियों में भर लिया। ऐसा बीमारी के कारण था, किन्तु तब मैं नहीं समझ पाई थी। जब भी मेरी आंख बन्द होती थी मुझे लगता मैं चल रही हूँ, घास लंबी है। मै हाथियों को देखती थी। मैं नहीं जान पाती थी कि हम लोग अब दूर निकल आये हैं।
लेकिन हमारी दादी अभी भी मजबूत थीं। वह अभी भी सीधी खड़ी हो सकती थीं। उन्हें लिखना आता है और उन्होंने हम लोगों की जगह पर हस्ताक्षर किया। हमारी दादी ने शामियानें में यह स्थान चुना था जो कि किनारे पर है। यहां यह सबसे अच्छा स्थान है, क्योंकि भले ही बारिश अंदर आ जाती हो, फिर भी जब मौसम अच्छा हो तो हम लोग एक तरफ का पर्दा उठा सकते हैं और ऐसे में धूप हम लोगों के ऊपर चमकती है, और शामियानें के अंदर की महक बाहर निकल जाती है। मेरी दादी यहां एक ऐसी औरत को जानती हैं जिसने हमें बताया कि सोने के काम आने वाली चटाई बनाने के लिए अच्छी घास कहां मिलती है, और हमारी दादी ने हम लोगों के लिए कुछ चटाई बना दिया। प्रत्येक माह में एक बार खाना वाला ट्रक क्लीनिक पर आता है। हमारी दादी अपने साथ उन कार्डो में से एक लेकर जाती हैं जिन पर उन्होंने हस्ताक्षर किया था, और जब वह पंच कर दिया जाता है तो हमें एक बोरी मक्के का खाना मिल जाता है। शामियाना तक वह ठेलागाड़ी से लाया जाता है। दादी के लिए वह ठेलागाड़ी मेरा बड़ा भाई खींचकर ले आता है और उसके बाद वह और दूसरे लड़के क्लीनिक तक खाली ठेलागाड़ी को खींचकर ले जाते हुए रेस करते हैं। कभी-कभी वह भाग्यशाली होता है जब वह आदमी जिसने गांव में बियर खरीदा होता है, उसे (ठेलागाड़ी से) पहुंचाने के लिए उसे (भाई को) पैसा देता है-यद्यपि कि ऐसा करने की अनुमति नहीं है, और यह अपेक्षा की जाती है कि काम पूरा होने के बाद आप उस ठेलागाड़ी को सीधे सिस्टर लोगों के पास ही वापस ले जायेंगे। वह एक कोल्ड ड्रिंक खरीदता है, और उसे मेरे साथ साझा भी करता है, अगर मैं उसे पकड़ लेती हूँ। हर महीने किसी दिन चर्च क्लीनिक के परिसर में पुराने कपड़ों का एक ढेर डाला जाता है। हमारी दादी को एक दूसरा कार्ड पंच कराना होता है, और तब हम उस ढेर में से अपने लिए कुछ चुन सकते हैं। मेरे पास दो ड्रेस हैं, दो पैंट और एक जर्सी है, जिससे मैं स्कूल जा सकती हूँ।
गाँव के लोगों ने उनके स्कूल में हमें जाने की अनुमति दे दी है। मुझे आश्चर्य हुआ यह जानकर कि वे हमारी भाषा बोलते हैं। हमारी दादी ने बताया कि इसी कारण उन लोगों ने अपनी जमींन पर हमें ठहरने दिया है। बहुत पहले, अपने पूर्वजों के समय में, कोई बाड़ नहीं थी, जो आपकी जान ले ले। उनके और हमारे बीच कोई क्रूगर पार्क नहीं था। हम लोग अपने राजा के अधीन एक ही लोग थे। वह गाँव जिसे हम छोड़ आये उसे लेकर इस जगह तक जहां हम आये हैं।
अब जबकि हम लोग शामियाना में इतने लंबे समय से हैं, मैं ग्यारह की हो गई हूँ और मेरा छोटा भाई लगभग तीन का है, हालांकि वह बहुत छोटा हैं, केवल उसका सिर बड़ा है। अभी उसकी वह बीमारी ठीक नहीं हुई है। कुछ लोगों ने शामियानें के चारों ओर खाली पड़ी जमींन की खुदाई कर दी है और उसमें बीन्स और मक्का और पत्ता गोभी बो दिया है। बुजुर्ग लोग टहनियों को जोड़कर ऐसा बनाते हैं, जिससे कि उनके बगीचें की बाड़ तैयार हो सके। किसी को शहरों में काम ढूढ़ने की इजाजत नहीं है, लेकिन औरतों में से कुछ ने गाँव में काम पा लिया है और वे चीजें खरीद सकती हैं। हमारी दादी, क्योंकि वह अभी भी मजबूत हैं, वहां काम पा जाती है जहां लोग मकान बना रहे होते हैं-इस गाँव में लोग बढ़िया मकान बनाते हैं जो ईट और सीमेंट का इस्तेमाल कर बनती हैं, न कि सनी हुई मिट्टी से, जैसा कि हमारे घर में हुआ करती थी। हमारी दादी उन लोगों के लिए ईटें ढोती हैं और अपने सिर पर पत्थर की टोकरियां ले आती है। और इसलिए उनके पास चीनी और चाय और दूध और साबुन खरीदने के पैसे होते हैं। स्टोर ने उन्हें एक कैलेन्डर दिया है जिसे उन्होंने तंबू के हमारे पर्दे पर टांग दिया है। मैं स्कूल की पढ़ाई में होशियार हूँ और उन्होंने (दादी ने) विज्ञापनों वाले उन कागजों को, जिन्हें लोग स्टोर के बाहर फेंक देते हैं, इकठ्ठा कर लिया और उनसे मेरे स्कूल की किताबों पर कवर चढ़ा दिया।
वह मुझे और मेरे बड़े भाई को प्रत्येक दोपहर में अंधेरा होने से पहले ही होमवर्क करवा देती हैं, क्योंकि तंबू में हमारे पास जो जगह है, उसमें बहुत पास-पास महज लेटा भर जा सकता है, जैसे कि हम लोग क्रूगर पार्क में लेटते थे, और मोमबत्तियां खर्चीली है। हमारी दादी अभी तक चर्च जाने के लिए अपने लिए कोई जूता नहीं खरीद पाई हैं, लेकिन मेरे और मेरे बड़े भाई के लिए उन्होंने स्कूल के काले जूते और उसे साफ करने के लिए पालिश खरीद दिया है। प्रत्येक सुबह जब लोग तंबू में जागना शुरू कर रहे होते हैं, नवजात रो रहे होते हैं, लोग बाहर नलों पर एक दूसरे को धक्का दे रहे होते हैं, और कुछ बच्चे रात को इस्तेमाल किये गये बर्तनों में से दलिया के दाने खुरच रहे होते हैं, मेरा बड़ा भाई और मैं अपने जूते साफ करते हैं। हमारी दादी पैर सीधे कर हमें चटाई पर बैठती हैं, जिससे कि वह जूतों को ध्यानपूर्वक देख सकें कि हम लोगों ने अपना काम ठीक से किया है। तंबू में किसी भी बच्चे के पास स्कूल के सही जूते नहीं हैं। जब हम तीनों जूतों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे कि हम लोग फिर से सचमुच के घर में है, बिना किसी युद्ध के, बिना घर से दूर हुए।
कुछ श्वेत लोग तंबू में रहने वाले हमारे लोगों की फोटों खींचने आये थे। उन्होंने कहा कि वे एक फिल्म बना रहे हैं। मैंने कभी देखा नहीं कि वह क्या होता है, यद्यपि कि मैं उसके बारे में जानती हूँ। एक श्वेत महिला हमारे वाले जगह में घुस आई और हमारी दादी से ऐसे सवाल पूछे कि जो कि हमें हमारी भाषा में ऐसे किसी के द्वारा बताई गई जो उस श्वेत महिला की भाषा समझता था।
आप कितने समय से ऐसे रह रही हैं ?
इसका मतलब है, यहां ? हमारी दादी ने कहा इस तंबू में, दो साल एक महीना।
और भविष्य के लिए आपकी क्या उम्मीदें हैं ?
कुछ नहीं। मैं यहां हूँ।
लेकिन अपने बच्चों के लिए ?
मैं चाहती हूँ कि वे पढ़ाई करें, जिससे कि उन्हें बढ़िया नौकरी मिल जाए और पैसा मिल सके।
क्या आप वापस मोजाम्बिक, अपने देश, जाने की उम्मीद करती हैं ?
मैं वापस नहीं जाऊँगी।
लेकिन जब युद्ध समाप्त हो जायेगा-आपको यहां रूकने की अनुमति नहीं मिलेगी तो क्या आप घर नहीं जाना चाहेंगी ?
मुझे नहीं लगता कि दादी फिर बोलना चाहती थीं। मुझे नहीं लगता कि वह श्वेत महिला को उत्तर देतीं।
उस श्वेत महिला ने अपना सिर दूसरी तरफ घुमाया और हमारी तरफ देखकर मुस्कुराई।
हमारी दादी ने उस महिला से अलग दिशा की तरफ देखते हुए कहा-वहां कुछ नहीं है। कोई घर नहीं।
हमारी दादी ने ऐसा क्यां कहा ? क्यों ? मैं वापस जाऊँगी। युद्ध के बाद, यदि कोई लुटेरे न हो तो, हमारी माँ हमारी प्रतीक्षा कर रही होगी। और हो सकता है कि जब हम लोगों ने दादा को छोड़ दिया, वे केवल पीछे छोड़ दिये गये थे, उन्होंने किसी तरह रास्ता पा लिया हो, धीरे-धीरे, क्रूगर पार्क होकर, और वह वहां होंगे। वे सब लोग घर पर होंगें, और मैं उन्हें वहां याद रखूंगी।
***
अंग्रेजी से अनुवाद-
आनन्द मोहन उपाध्याय
ए-1, आफिसर्स कालोनी,
पूल्ड हार्डा, कचहरी, वाराणसी
मोबाइल नं0-9450941641
ई-मेल – anandmohan725@gmail.com