अनुनाद

वह मुझसे अधिक पैदल चलता होगा रोज़ – संदीप तिवारी की कविताऍं

courtesy : Pablo Picasso

वन्दे भारत

वन्दे भारत

बरेली में बैठते ही बंद हो गए कोच के दरवाज़े

भीतर एक महिला की आवाज़ गूँजी

अगला स्टेशन लखनऊ है

 

मुझे याद आया

कि बरेली और लखनऊ के बीच कितने स्टेशन हैं

कितने स्वाद

कितने लोग कर रहे होंगे

किसी गाड़ी का इंतज़ार

 

बीच में ही छूट गया

शाहजहाँपुर, संडीला, काकोरी, मलीहाबाद

वहाँ के समोसे

चाय और लड्डू

वहीं रह गये

 

बरेली में बैठकर

चारबाग़ उतरने वालों के क़दम

हवा में थे

वह हवा की तरह चले थे

और हवा की तरह ही आया था उनका गंतव्य

 

ट्रेन से उतरकर

सभी ने मन ही मन धन्यवाद कहा

किसी भी मुसाफ़िर ने नहीं कहा

झूठी थी वह उद्घोषणा

कि अगला स्टेशन लखनऊ है

***

नया जूता

नया था जूता

नया था उसका मोह

नयी थी उसकी चमक

अभी नए थे उसके फ़ीते

 

किसी को ज़रूरत रही होगी इन जूतों की

इसलिए मेरे उठने से पूर्व ही

उठा ले गया ट्रेन की बर्थ के नीचे से

 

सुबह जब उठा

तो पैर में सिर्फ़ मोजे थे

मोजे में ही पार किया स्टेशन

सुबह नहीं खुली थी कोई जूते चप्पल की दुकान

मोजे में ही पार किया पूरा शहर

जहाँ पहुँचना था मोजे में ही पहुँचा

 

थोड़ी खीझ तो हुई

लेकिन फिर यह भी सोचा

कि जो भी ले गया होगा

उसे रही होगी मुझसे अधिक इनकी ज़रूरत

उसके पैरों में मुझसे अधिक ठंड रही होगी

वह मुझसे अधिक पैदल चलता होगा रोज़

 

वह बहुत दिनों से सोच रहा होगा

ख़रीदने के लिए एक जोड़ी जूता

लेकिन नहीं ख़रीद सका होगा

हो सकता है कई-कई दुकानों से

कई-कई दिनों किया हो मोलभाव

न जुड़े हों पैसे

न बनी हो बात

 

यह भी हो सकता है

कि वह अपने लिए न ले गया हो

ले गया हो उठाकर

अपने बेटे या अपने छोटे भाई के लिए

जिन्हें पहनकर उनकी आँखों में आ गई हो थोड़ी सी चमक

 

जहाँ भी जिन पैरों में होना मेरे जूते!

उन्हें थोड़ा आराम देना

माघ की ठंड से उन्हें बचाना

और उन्हें इस ग्लानि से हमेशा मुक्त रखना

कि उन्होंने कभी कोई जूता चुराया था

 

शायद यह उन्हीं का जूता था

और ग़लती से मैंने अपने पते पर मंगा लिया था

***

बिटिया

मन के भाव जताना कहना

सीख गई है बिटिया

हाथों से कुछ पकड़ बनाना

सीख गई है बिटिया

 

थोड़ा रोना गाना भी अब

सीख गई है बिटिया

हँसना और हँसाना भी अब

सीख गई है बिटिया

 

उसके मन माफ़िक़ चीज़ों का

निश्चित एक इशारा है

हाथ हिलाकर पैर पटक कर

कह देती क्या प्यारा है

 

थोड़ा ग़ुस्सा थोड़ा डरना

सीख गई है बिटिया

ख़ाली जगहों को अब भरना

सीख गई है बिटिया

 

शक्लो सूरत से तो बिलकुल

भोली दीख रही है

पर, कई शरारत धीरे-धीरे

ख़ुद से सीख रही है

 

चिड़ियों को नज़दीक बुलाना

सीख गई है बिटिया

पेड़ों से मिलना बतियाना

सीख गई है बिटिया

 

कानों की चौकन्नी है वह

रखती है हर टोह

फोटो और कैमरे से है

पता नहीं क्या मोह

 

अन्न देखकर जीभ चलाना

सीख गई है बिटिया

अलग अलग तस्वीर खिंचाना

सीख गई है बिटिया

 

बिना दाँत के दांत चुभाना

सीख गई है बिटिया

घर में अपनी जगह बनाना

सीख गई है बिटिया

 

मन के भाव जताना कहना

सीख गई है बिटिया

हाथों से कुछ पकड़ बनाना

सीख गई है बिटिया

*** 

संपर्क- संदीप तिवारी,

हिंदी विभाग,

राजेन्द्र प्रसाद डिग्री कॉलेज,

मीरगंज बरेली- 243504

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