अनुनाद

यह चमकीले शब्दों से भरे मनुष्यता के धूसर दिन थे – राकेश रोहित



तीस छोटी कविताएँ
1.
प्रेमियों का एकांत 


और जबकि इतनी धूप खिली है
प्यार कैसे तुमको छू रहा है
क्या अब भी आकाश के किसी कोने में
प्रेमियों का एकांत है


2.
नदी, पत्ती और प्रेम 


कई बार नदी पर तैरती पत्ती से भी
हो सकता है प्रेम
कई बार प्रेम ही होता है
जो पत्ती को डूबने नहीं देता!


3.
फिर प्रेम मुझे छूता है 


उसने कहा-
पहले मैं प्रेम करती हूँ
फिर प्रेम मुझे छूता है।



4.
मनुहार 


इस जिद्दी बारिश में बचाना है
कागज का यह टुकड़ा,
तुम अपना हाथ दो
तो हथेलियों में छिपा लूँ इसको!


5.
तुम्हारी याद जैसे कलरव है 


एक चिड़िया पेड़ पर बैठी है
एक याद मेरे मन में है
पता नहीं आवाज किसकी आती है?
पता नहीं यह कलरव किसका है?



6.
धरती और चाँद 


एक दिन खिड़की से चाँद को बुलाऊंगा
और सो जाऊंगा,
तुम देखना फिर उत्तप्त धरती पर
कैसे बरसती है चाँदनी!


7.
कविता और प्यार 


हर नया शब्द
नया पर्दा है सच को छुपाने के लिए।

सात पर्दों में छुपी भाषा को
मैं बाहर लाता हूँ कविता में
मैं कविता करता हूँ, जब मैं कहता हूँ –
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।


8.
पहले पन्ने पर तुम्हारा नाम 


पढ़ने को तो मैं पढ़ता हूँ
बादलों का लिखा
लेकिन नहीं पढ़ पाया वो किताब
जिसके पहले पन्ने पर तुम्हारा नाम लिखा है
और बाकी सफे खाली हैं।


9.
मेरा मन वहीं 


मैं देखता हूँ फुनगी से गिरता फूल
मेरे कदम आगे बढ़ जाते हैं
और मन देखता रहता है
जहाँ वह फूल झर रहा है।

सुनो,
जब तुम उस राह से गुजरोगी
एक पल जरा देखना
मेरा मन वहीं- कहीं आसपास
ठहरा हुआ होगा!


10.
घास की नोक पर बूंद


सुंदर है
घास की नोक पर ठहरी
पानी की एक बूंद!

पर, मेरी कविता को इंतज़ार
उस बूंद के
घास की जड़ों तक पहुँचने का है!!

11.
एक पल 
 

तुम्हें याद करते हुए अचानक
डायरी में किसी एक पल मैंने प्यार लिख दिया था।
वही एक पल मेरी जिंदगी में
हर रोज कम पड़ जाता है!


12.
स्पर्श 
 

स्पर्श में ही बचा रहता है
सृष्टि का आदिम स्वाद
ऐसे छूता हूँ तुमको
जैसे छूती है हवा नदी को।


13.
ऐसे रहे कविता 
 

चाहता हूँ कविता ऐसे रहे मेरे मन में
जैसे तुम्हारे मन में रहता है प्रेम!


14.
फूलों का नाम न पूछो 
 

मैंने बच्चे से उसका नाम पूछा
उसने कहा-
क्या आप फूलों से भी उसका नाम पूछते हैं?
मैंने देखा बारिशों सी उसकी हँसी थी
और बादलों सी उसकी आँखें!
मैं जानता था कि उसके खुश होने में ही
कविता बची है।


15.
शब्दों में चमक 
 

शब्दों में चमक थी/ पर
शब्दों का अर्थ
खुलकर सामने नहीं आता था।

वह धीरे-धीरे रिसता था
और कुछ उनकी मुद्राओं में छुपा रह जाता था।

यह चमकीले शब्दों से भरे
मनुष्यता के धूसर दिन थे।


16.
बहते जल में परछाई 
 

बहते जल में
नहीं बह जाती है मेरी परछाई!
जो मेरी जिद है
कविता में
हर वक्त बची रहती है।



17.
पत्तों पर हरे रंग से नाम 
 

मैंने पत्तों पर हरे रंग से लिखा है तुम्हारा नाम
ना पढ़ो सही पर पत्तों पर अपना रंग तो देखो!

  18.
चिड़िया की आवाज लिखनी है कविता में 
 

मुझे चिड़िया की आवाज लिखनी है कविता में
मैं रोज पत्तों से पूछता हूँ उसकी भाषा!


19.
प्यार का अनुवाद 
 

जब नष्ट हो रहा हो सब कुछ
और दिन आखिरी हो सृष्टि का
मेरे प्रियतुम मुझे प्यार करती रहना!
क्योंकि यह प्यार ही है
जिसका कविता हर भाषा में अनुवाद
उम्मीद की तरह करती है।

  20.
कठपुतली और कहानी 
 

क्या आपने कभी कठपुतली का नाच देखा है?
चमक- दमक और रंगों से सजे
मंच पर नाचते हैं वे,
पर उनके अंदर कोई कहानी नहीं पलती।

वेजिनके अंदर कोई कहानी नहीं पलती
कठपुतली बन जाते हैं!


21.
यूँ ही नहीं 
 

एक फूल खिला यूँ ही,
एक बच्चा मुस्कराया यूँ ही
एक मनुष्य घर से निकला,
गुनगुनाया यूँ ही.

यूँ ही नहीं बड़बड़ाता है
नरक का बादशाह –
इस दुनिया के नष्ट होने में
देर है कितनी?


22.
एक दिन जब होगी उम्मीद 
 

एक दिन मेरे पास
इतनी उम्मीद होगी
कि मैं अपने कहे शब्दों से
प्यार करने लगूँगा!
उस दिन असत्य के सामने
इतनी रोशनी होगी
कि साफ झलकेगा उसका नकलीपन,
उस दिन विश्वास से चमकेंगी
उत्सवधर्मी शुभकामनाएँ!!



23.
जड़ की ओर 
 

लौटना चाहता हूँ वहाँ
जहाँ से चला नहीं हूँ,
जैसे फुनगी पर खिलती है पत्ती
और जड़ की ओर लौटना चाहती है.


24.
खेल-खेल में 
 

खेल-खेल में बच्चे ने
आकाश सर पे उठा लिया,
बार-बार टकरा जाती थी
आकाश से उसकी गेंद!


25.
जादू तेरे प्यार में है 
 

एक चिड़िया मेरे पास आकर
तेरी जुबां  में बोलती है
कुछ जादू तेरे प्यार में है
कि पंछी भी तेरा कहा मानते हैं.



26.
भाषा, दुःख और खुशी 
 

आप कहें और वो समझें
यह भाषा है!

आप कहें और वो ना समझें
यह दुःख है!!

और आपके कहे बिना
वो समझ जाएँ
यही खुशी है!!! 



27.
याद 
 

उसने हँसकर देखा मुझे
और रो पड़ी…
यह बारिशों के  
पहले का मौसम था
और फिर बारिश हुई।




28.
नींद में हँसी 
 

नष्ट होनी ही वाली थी यह दुनिया
फिर इसे बचाने का जिम्मा
बच्चों की हँसी को सौंपा गया
और तब से बच्चे
नींद में भी हँसते हैं।


29.


रहने लायक यह दुनिया

  
कुछ कहानियों ने हमें इंसान बनाया
कुछ कविताओं ने उदासी में थामा हाथ
दुनिया यूँ ही नहीं हो गयी रहने लायक
सदियों से,
सुंदर फूलों के बीज बचाते आए हैं कुछ लोग।

30.
दो शब्द 
 

दो ही शब्द हैं दुनिया में!
एक जो तुम कहती हो,
एक जो मैं लिखता हूँ !!

***


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  1. प्रिय श्री राकेश रोहित की कविताओं को पढ़ कर ही उसे जानने की कोशिश करता रहा हूं । मुझे ऐसा लगता है कि राकेश की कविताओं में कवि शब्दों का चयन सहज कर रहा होता है और जब वह लिखता है तो चेतना के उस अनुछुए भाग को वह स्पर्श कर जाता है जहां पाठक भाव विभोर हो उठता है और वह सोचने पर मज़बूर हो जाता है कि कम शब्दों में जीवन की बड़ी बातें कैसे कही जा सकती हैं ! राकेश, स्पर्श एवं स्पदन के कवि हैं. वे भाषा को हर बार नई कलात्मक परिवेश से जोड़ देते हैं । उनके यहां प्रकृति, उनकी कविता का प्रेम है जहां वे एक बच्चे की नज़र से उसे देखते और परखते हैं किंतु वह बच्चा दुनियां की बेरहमी की कम, बल्कि दुनियां की खूबसूरती के बारे में, हर दम, सोंचता-विचारता नज़र आता है । वह ओस के लावण्य के साथ ही उसे घास की जड़ में पहुंचने के लिए विकल होता है ।
    राकेश से कविता को बहुत अपेक्षा है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कवि प्रकृति की हर सत्ता को अपनी कविता में समाविष्ट करना चाहता है, वह चाहता है कि इंसानियत को विध्वंस से नहीं, दो शब्दों से ही जानो, वर्ना सब बेमानी है और उसके लिए वे, प्रेम या प्यार के अनेकानेक भंगिमाओं को सहज सरल शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते हैं जहां पाठक की तन्मयता नहीं टूटती – उसे पढ़ते हुए । कवि थोड़े से शब्दों के बीच बचे हुए उस अंश की कविता रचता है जिसे कविता खुद चुनने में असमर्थ है, किंतु, कवि के शब्द, कविता का स्पर्श कर रहे होते हैं, और वह पुलकित हो रहा होता है कि कविता को आभास है कि शब्द एक बच्चे की तरह उसकी गोदी में खेल रहा है । इंसानी चेतना में जो भाव आज विखंडित हो रहे हैं उसके घाव को कवि फूलों से सहला रहा होता है – ऐसी है राकेश की कविताओं का दर्द और अपनापन । वह कवि नहीं कविता की स्वयं एक भाषा है जो शब्दों को हर बार एक नए बीज की तरह बोता जा रहा है । इस कवि से हिन्दी जगत को बहुत उम्मीद है और ऐसा लग रहा है कि यह निराला की विरासत का संवाहक है, अज्ञेय की तहर मौन और पैनी दृष्ट रख रहा है, उसकी भाषा में पंत की सुकुमारिता भी है । निश्चय ही राकेश की कविताएं आज के विध्वंसपरक समय के सामने जीने का सरल अर्थ व्याख्यायित कर रही है और वह कह रहा है कि देखो – दुनियां कितनी सुंदर है, जरा ठहरो और बच्चा बन, बच्चे की तरह हंस लो भाई – भले नींद में ही क्यों न हो ! व्यंग्य भी इतना सरल और सुकुमार होगा और इतना हृदय स्पर्शी – वह श्री राकेश की कविताओं को पढ़ कर ही जाना जा सकता है । कवि को हमारा साधुवाद है कि वह हिन्दी कविता को एक नया आग़ाज दे रहा है । वह उसे एक नई दुनियां में ले जा रहा है जहां प्रेम के महत्व दे कर ही खूबसूरत जिंदगी का आचमन किया जा जकता है ।

  2. बहुत ही सुंदर ,लाजवाब और अद्भुत अभिव्यक्ति वाली सारी कवितायेँ हैं |

  3. वही एक पल मेरी ज़िंदगी में
    हर रोज़ कम पड़ जाता है
    ………………………………………………….और
    दो ही शब्द हैं दुनिया में
    एक जो तुम कहती हो
    एक जो मैं लिखता हूँ ।
    प्रेम बच रहेगा और प्रेम कविताएँ भी जब बाक़ी सब खत्म हो जायेगा, क्योंकि हम जैसे प्रेम में आस्था रखने वाले लोग भी कहीं न कहीं बच रहेंगे , मुट्ठी भर ही सही । एकांत कोने में बैठ कर पढ़ी जाने वाली कोमल कविताएं । मुझे तो पसंद आनी ही थीं ।

  4. कोमल और स्वतःस्फूर्त अनुभूतियों को जैसे शब्द मिल गए हों ….बहुत सुन्दर कवितायेँ ! बधाई प्रस्तुति और प्रस्तोता दोनों को !

  5. छोटी छोटी सुंदर कविताएं।जीवन की अनुभूतियों ने शब्दों का जैसे आकार ले लिया हो।राकेश जी को बधाई।

  6. बेहतरीन कवितायें !! राकेश जी का कवि मन एक बच्चे की तरह उनकी कविताओं में से झाँकता है कि उसके बताने भर से इस कठोर संसार में मासूमियत बची रह जाती है और प्रेम को एक बार फिर जीवन मिल जाता हो! ये कवितायें ठंडी हवा के झोंकों की तरह हमारे जीवन में आती हैं और ठहर जाती हैं !! बहुत ही ईमानदार अभिव्यक्ति!! बधाई राकेश जी! आपकी की कविताओं में एक कभी न ख़त्म होने वाला नयापन है जो एक पाठक को बाँधे रखता है और जोड़े रखता है आपसे!!

  7. सर एक ही बार में साडी कविताएं पढ़ गया
    बिहार सरला भाषा और बेहद गहरा असर….क्या कहने..!

  8. एक एक कविता मन को छूती है अजीब सी चमक है सहज तरीके से कही गयी इन कविताओं मे अवचेतन मन के मर्म को स्पर्श करने की पूरी क्षमता है जिसे समझ पाना कठिन सा है कि इसने मन के किस तार को छुवा है जो देर तक झंकृत होता है।

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