अनुनाद

अभी फिलहाल वे पर्वतीय जीवन की दुश्वारियों पर बात कर रहे हैं / भूपेन्‍द्र बिष्ट की कविताएं

   राज़ हो कितना गहरा   

 

प्रेम में प्रतीक्षा से पाला पड़ता रहता है

प्रेम के साथ एक प्रकाश भी नत्थी होता है अपने किस्म का

यूं मनाते रहते हैं प्रेमी जन 

न हुआ करें ये दोनों चीजें

 

प्रतीक्षा में मीठी आतुरता का जो सन्नद्ध भाव होता है

उसे मानते ही नहीं दोनों

उल्टा कहा करते हैं

कोई नहीं होता सब्र का फल मीठा 

सब कहने की बातें हैं

 

दुनिया की निगाह से बचकर

या लोगों की नजरों से छुप छुपाकर

चुराए गए क्षणों का आशय

किसी भी शब्दकोश में इस तरह नहीं मिलता

जैसे वह हो एक घुप्प मौका

कतई उजाले के बगैर

 

पर समझ लिया करते हैं इसे बिल्कुल वैसा ही वे — जिनकी बात हो रही है

 

गर्मियों में पेड़ों की छांव में प्रतीक्षा करती प्रेमिका युगों से स्तंभित हो जैसे

बरसात में किसी परित्यक्त इमारत की आड़ में इंतजार करता प्रेमी भी मानो वर्षों से जड़वत खड़ा हो

पर शरद की निर्मल गुनगुनी धूप बनाए रखती है प्राणवान

किसी भी मोड़ पर प्रतीक्षारत इन प्रेमियों को

 

हिमाकत पर उतर आएं

तो शाम का झुटपुटा और नीम रोशनी भी

काम की चीज़ हो सकती है 

प्रेम में मुब्तिला जनों के लिए

 

अलबत्ता उनकी नज़दीकी को लेकर  

लोगों की खुसर फुसर प्रकाशित करती रहती है इन बेचारों के विरल और विपुल संसार को कुछ इस तरह 

मानो कोई डालता जाता हो किसी गुह्य चीज़ पर टॉर्च की फुल रोशनी बीच बीच में.

***

 

   कुछ और कह रहा है ट्रेंड   

 

वैसी फिल्म अब नहीं आती

जिसे देखकर युवतियां अपने आंसू पोंछती हुई निकलती थी सिनेमा हॉल से बाहर

मां के संग 

 

वैसे कथानक भी अब कहां रचे जाते हैं 

जैसे बच्चा अगवा कर ले कोई गद्दार गर  

तो उसे छुड़ाने धर्मेंद्र के जाने पर

ताली बजाने लगें पर्दे के आगे सयाने भी

होकर मुतमईन

 

पुरवा सुहानी आयी रे ~ पुरवा,

ऋतुओं की रानी आयी रे …..

जब यह गीत बजने लगे अंदर

और उस पर भारती के मोहक नृत्य का छायांकन जोरदार 

तो किशोर उम्र का भाई उठ आए अपनी सीट छोड़ 

जो दीदी भी आई हो पूरब और पश्चिमदेखने उस दिन

 

आंखों की ऐसी शरम, ऐसी तरबियत

सिनेमा के झूठे किरदारों के साथ ऐसा अगाध सच्चा अपनापन 

अब स्मृतियों में भी शेष नहीं रहा

 

अपने बीते दिनों की ऐसी धुंधलाई कहानियों को 

मन ही मन हम लाख उकेरने भी लगें फिर से इधर 

घर – बाहर नए बच्चों के मोबाइल पर उधर 

ट्रेंड मगर करते जाते हैं गॉसिप गर्ल

या द बॉय इज माइनटाइटिल वाले म्यूजिक वीडियो.

***

 

   रास्‍ते   

 

 

रास्ते बने हुए हों या बना लिए जाएं 

उन पर चलना ही तो होता है कहीं जाने के लिए

या कहीं से वापस लौटते हुए 

 

बात इतनी सी ही होती

तो ज्यादा मुश्किल न होता 

छूटे हुए रास्तों का बखान 

 

चलते चलते थक जाने से हम रास्तों पर

बैठ भी गए अक्सर

कई मर्तबा ठहरकर खड़े खड़े उसकी प्रतीक्षा करते रहे

साथी जो, बोझिल कदमों से आ रहा था क्लांत 

 

कभी रास्ते में पड़ी हुई माचिस की डिब्बी मिल गई हमें 

वाह ! उसकी उपयोगिता का ख़याल 

कि धूप दिखाई जाएगी इसे तो सीलन जाती रहेगी 

इस तरह छुटपन में गांव-घर के रास्ते 

हमारे खिलंदड़ापन वाले रास्ते थे

और बाद में कामकाजी दुनिया के रास्ते

बगैर हमनवा वाले

 

कुछ रास्ते ऐसे भी थे जो शायद हमें बुलाते रहे

पर हो न सका उन रास्तों पर फिर से हमारा आना

उन रास्तों का खयाल मगर हमें बराबर रहा 

कोई हंसी जैसा, कुछ कसमे-वादे जैसा 

किसी हर्बेरियम में सहेजे शुष्क पुष्प दलों जैसा

और कभी नए मौसम की पत्तियों के हरेपन जैसा भी

 

इस मलाल को काफी हद तक कम कर देता है

इंदीवर का लिखा यह गीत सुनना — 

हंसते हंसते कट जाए रस्ते

जिदंगी यूं ही चलती रहे. ……. 

***

 

 

   नाम जालपा   

 

देर वसंत से 

उस पौधे में पत्तियां आनी शुरू होती हैं

और भरपूर ग्रीष्म तलक 

लकदक हो जाता है वह घने हरेपन से

 

उसे न तो आंगन की जरा सी जगह में 

किसी हुलास से लगाया गया 

और न बड़े जतन से किसी गमले में

हर मौसम में अपने आप पनपता रहा वह 

दीवार और रास्ते की संधि पर

 

मानसून की बारिश अपने वक्त पर हो या न हो

मेघ घहरा उठने भर से ही

उसमें फूल आने लगते हैं

सुंदर, रानी रंग के

उन फूलों का नाम मैं जानता न था

 

एक रोज़ हमारे घर आए उद्यान महकमे के

आलिम-फ़ाज़िल 

आपने बताया कि ये जालपा के फूल हैं

 

तभी से मुझे उन फूलों के साथ

दो और चीज़ प्रिय लगने लगी

एक नाम जालपा

दूसरा फूलों और वनस्पतियों को

नाम से बुलाने का हुनर. 

***

 

 

   बेचारे पहाड़   

 

 

लोग पहाड़ क्यों आते हैं

हिमालय देखने 

या कि उनके पास पैसा होता है

 

वे हवा पानी बदलने की चाह क्या इसलिए रखते हैं

कि उनके पास फुरसत होती है 

 

सघन वृक्ष, चढ़े वैशाख में भी गझिन हरियाली,

कृशकाय बनैली नदी, कोई सुर्ख फूल भी मिल सके जहां

सुबह तड़के निकल पड़ते हैं उस तरफ 

इसलिए कि उनके पास उन्नत किस्म का एक कैमरा होता है

 

अभी फिलहाल वे पर्वतीय जीवन की दुश्वारियों पर बात कर रहे हैं 

 

क्या करें ?

 

कल शाम से मोबाइल नेटवर्क काम ही नहीं कर रहा !

***

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