अनुनाद

जैसे नींद सुनती है सपनों को जैसे एकांत सुनता है अकेलापन/ऋतु डिमरी नौटियाल  की कविताएं 

 

  सिर्फ़ एक शब्‍द नहीं, कोई शब्‍द   

  आसमान में जब आते हैं बादल
  कोरे कागज में जैसे आ जाता है शब्द
  शब्द, मुखपृष्ठ हो जाता है
  अर्थ, पूरी किताब

युद्ध लिखो तो
   विनाश आ जाता है
   विनाश की लपेट में
   आ जाती हैं पीढ़ियाँ

प्यार लिखो तो
    वर्जनायें आ जाती हैं
    वर्जनाओं की लपेट में
    आ जाती है सहज शांति

कलम लिखो तो
     हथियार आ जाता है
     हथियार की लपेट में
     आ जाती है आजादी

आसमान में जब आते हैं बादल
       नीचे धरती समझ रही होती है
       अकेले नहीं आते बादल

***

 


   घुन कौन !   

 

सीट पर रुमाल फेंककर
नहीं घेरी थी उसने जगह
ना ही कुत्ते की तरह जगह जगह मूत कर
गंध से बनाये थे अपने इलाके
अप्रवेश हेतु

तुम रखते हो दाने की थाली, धूप में;
वो आदमी नहीं है
जून की गर्मी में टीन के छप्पर के नीचे
अपनी शर्म छिपाये, पर देह जलाये;

घुन है भयी, निकल आयेगा बाहर
भागेगा वो कहीं ना कहीं
दाने के भीतर उसने अपने रुमाल नहीं फेंका
उसने मेरा दाना है घेरा”
तुम चाहे कहते रहो कितना ही

***

   प्रेम पत्र   

 

एक ही लिफ़ाफ़ा थामे रहा
कितने सालों के ख़त,
पते बदलते रहे ख़तों के
कानों का पता नहीं बदला,

जैसे नींद सुनती है सपनों को
जैसे एकांत सुनता है अकेलापन
जैसे भूख सुनती है पेट में
पानी के चलने की आवाज़
जैसे रात सुनती है
दीमकों की लकड़ी चबाने की आवाज़

वैसे ही कान सुनते रहे
 अंत तक 

  प्रेमपत्र

 ***

   अप्रतिबद्ध   

 

आओ कान खाली करते हुए,
सहमति के फर्श में
कुछ घंटियाँ गिर रही हैं असहमतियों की
उन्हें ध्यान लगाकर कानों को सुनाओ

आओ आंख खाली करते हुए
असहमति की आच्छादित धूप में
वो कोना तलाशो
जिसमें आंखों के लिए
सहमति का  छाया भर अंधेरा ढूँढ पाओ

आओ हाथ खाली करते हुए
ऊंगलियों से छोटी छोटी खुशियाँ उठाओ
उन्हें जुगनुओं की पीठ पे बिठाओ
उन्हें छोटी छोटी रौशनी में चमकते देख पाओ

आओ पैर खाली करते हुए,
 अपने घर को नापो अपने पैरों से
 एक यात्रा बनाकर,
 कहीं से भी लौटो
 अपनी इस मंजिल को अपने लिए
 इंतज़ार करता हुआ पाओ

***

   विनिमय   

 

प्रेम में पड़ती है लड़की
घड़ी में चाबी देना भूल जाती है

समय,
जैसे धड़कना धीरे हो जाता है
धारा,
डर का किनारा पार करती है बेधड़क
वो थोड़ा!
लड़का बन जाती है

प्रेम में पड़ता है लड़का
गुम हुई घड़ी मिल जाती है उसे
सुइयों को संभालता है नजाकत से
वो थोड़ा !
लड़की बन जाता है

 ***

   चेखव के लिए   

(तितली, दुल्हन)

वो कभी तितली की तरह भटक रही थी
हर फूल में
अपना रस ढूँढती हुई,
हर फूल को छूकर
वही फूल बनने की कोशिश करती हुई

 तुमने ढूँढी
 उसके भीतर एक और स्त्री,
 उसका मन
 मनुष्य कर दिया
 अस्तित्ववाद के सवाल से जूझता हुआ,
 साशा तुम ही हो
 तभी भी, अभी भी

 

   बस का फ्री टिकट   

1.
दादी बोली थी
मुन्नो चुप रहो
खेत भी आदमी का
रोटी भी आदमी की
जेब भी आदमी की
पैसा भी आदमी का
इज्जत भी आदमी की
  आदमी भी आदमी का,
  जो बोल दोगी
‌  तो सब गंवाओगी

   मुन्नो बोली
   एफ आई आर कराऊंगी
    दिल्ली के हर कोने में बस जाती है
     कोई एक कोना तो होगा
     जो मेरे लिए काम थामे होगा
      जेब मेरी होगी
       आवाज भी मेरी होगी

2.  मुन्नो को काम मिला
      मुन्नो ने शन्नो को बताया
      शन्नो ने बन्नो को बताया
      पूर्वी दिल्ली ने पश्चिम दिल्ली को बताया
       उत्तरी दिल्ली ने दक्षिण दिल्ली को बताया
       फेयरर सैक्स के पैरों से रौशनी फूटने लगी
       अंधेरे थकने लगे जैंडर अनुपात के वजन से
          वो,
        सहारा पाने के लिए
        उजाले की तरफ सरकने लगे

3.   मुन्नो सुन रही थी
       मोबाईल में वाद विवाद
       “औरतों के लिए बस का फ्री टिकट
        घरों के टूटने की तरफ
        पहला कदम होगा”

          मुन्नो ने कमेंट लिखा
         ” घर को पहले
          पिंजरे से आज़ाद होकर
          घोंसला तो बनने दो”

***

 

 

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