पौ भरि
याँ इ काँ इ
धार पार
तुमरि फाम धरि छु
जेठक सैव
ह्यूण क निमैलि सुर्ज
जसि
चौमासकि घोघ जसि
यस छु यो पहाड़ आजि ले
च्येलि सौरास जाण बख्ती
कि डाड़ जस
न्योलि कि घांटि जस
तितुर कि सांकि जस
त्यर याँ ऊण मुश्किल छु
म्यर याँहें जाण मुश्किल
क्वे दुसरि जा्ग
दुसरी दुनि में , नई ठौर
त्वे मिलण ऊँल जबत
मेर हुण क आदुक है
ज्यादे याँ छुटि जाल
मैं पो भरि रै जूँल
न आपण मन क जस
न त्यर मन जस

(हिन्दी अनुवाद)
यहीं-कहीं
धार के पार
तुम्हारी याद ठहरी हुई
है
ग्रीष्म की शीतल छाव,
शरद की कोमल-निर्मल सूरज
जैसी
चौमास के पके गुदगुदे
मक्के जैसी
ऐसा ही है यह पहाड़ आज
भी
ससुराल जाती बेटी के
विलाप की तरह
न्योली के गीत की तरह
तीतर के कंठ की तरह
गूँजते-बसते हैं मेरे मन
में
तेरा यहाँ लौट आना
मुश्किल है
मेरा यहाँ से जाना
मुश्किल
किसी दूसरी जगह
दूसरी दुनियाँ में, या नई जगह में बसना मुश्किल
जब भी मैं तुझसे मिलने
आऊंगा
मेरा आधे से ज़्यादा
हिस्सा यही छूट जायेगा
और
तेरे लिए मैं पाव भर भी
नहीं रह जाऊँगा।
ना मेरे मन जैसा
ना तेरे मन जैसा।
***

थुलम* क भितर
ह्यून न्हे जाल् आब दूर
दुसर देश
घाम मातर तुमर हथकोलि जस
हल्क गरम -नरम आजि ले छु
मिठ छु तुमर हथकोलि क
म्यर हाथों दगाड़ बिलकण
मैं एक ग्वाँर
कथुवा क न्याति
एक नई जुगुत भिड्या
द्यूँल
तुमर बिलकण महसूस करण
लिजि
टाँकि ऊँल थुलम
रतिव्याण भ्यार तार में
जब ब्याखुल सूर्ज घामकि
चद्दर समेट्ल
तब मैं तुमर बिलकण क
एहसास
समेट ल्हूँल थुलम क भितर
(हिन्दी अनुवाद)
यह शरद भी चला जायगा
अब दूर-दूसरे देश
लेकिन घाम तुम्हारी
गदेली पर नरम-गरम सा
अभी भी बचा है
इस मिठास का अंदाजा
तुम्हारी गदेली का
स्पर्श मेरे हाथों से
होने पर होता है।
मैं एक गँवार
कथागो की तरह
फिर कोई नई जुगुत भिड़ा
ही लूँगा
तुमसे जुड़ा, तुम्हारा छुआ
महसूस करने को
टाँक आऊँगा थुलम
अलसुबह आंगन के तार पर
जब साँझ को सूरज अपनी
चादर समेटेगा
तब मैं भी तुम्हारे होने
का एहसास
समेट लाऊँगा नरम-गरम
थुलम के भीतर।
***

तुमर आंगुलन लिजि
हिमालकि गंङक जस
सुनारि माछ* कणचुल जस
तुमर आंगुल
बिल्कण उनर म्यर हाथोंक
दगड़
जाणि ठस्स
म्यर कल्ज में ठसक
दिगो
म्यर हींय में फुटि पड़ो
तुमर रटन क
एक बुरुंश गुलाबि
(हिन्दी अनुवाद)
हिमाल के नदियों की
सुनहरी मछली सी
तुम्हारी उँगलियाँ
मिलना उन उँगलियों का
मेरे हाथों से
जिससे मेरे कलेजे में
उठती है कसक
आहा रे!
मेरे हृदय में खिल उठा
है
तुम्हें पाने की दुरूह
इच्छा का
एक गुलाबी बुराँश।
***

ईज और बिमारि
गोठकि कलड़ि*,
देलिक कुकुर ,
चुलेकि बिरालि
पाख्- छाजकि चड़ी
बाट्क बटोही
कैं कें नि छोड़ सकि ईज
बिमारि कतुक आयीं कतुक
गयीं
ईज हर बार
बिमारि कें हराते रै
तड़ि में तारण
पाखुड़न में तात*
भ्द्यालि में प्ल्यो*
तौल* में भात
पकाते रै
सबनक है पैलि गोठक कलड़
छुटो
फिर देलिक कुकर
तै बाद चुलकि बिराली
फिर पा्ख-छाजकि चड़ी
उड़िगे
बा्ज कुड़िक बा्ट सुनसान
छु
बटोही अनजान छु
ईज कूंछि बिमार छुं
डॉक्टर बतुं आ्ब ईजा कि
उमर है ग्ये
(हिन्दी अनुवाद)
गोठ की कलड़ि आँगन का कुकुर
रसोई की बिल्ली
छज्जे और खिड़कियों की
चिड़िया
रास्ते का बटोही
किसी को भी नहीं, छोड़ सकती है ईजा
बीमारियां कितनी आयी, कितनी गई
ईजा हर बार
बीमारियों को हराती रही
शरीर में तारण
हाथ-पैरों में तात
कढ़ाई में प्ल्यो
तौले में भात
पकाती रही
सबसे पहले गोठ की कलड़ि
छूटी।
फिर आँगन का कुकुर
उसके बाद रसोई की बिल्ली
फिर छज्जे और खिड़कियों
की चिड़िया उड़ी गई।
बंजर घर का रास्ता अब
सुनसान है
बटोही सभी अनजान हैं
ईजा कहती है मैं बीमार
हूँ
डॉक्टर बताता है
कि अब ईजा की उम्र हो
गई।
***

कौतिक्यार*
कौतिक* हैरौ
तुम ले आओ
ढेड़ मूख देखौ
याँ सबै टेढ़ी रयीं
पेटाक जुग जस
सरकारक अनाड़ में बेड़ी
रयीं
याँ मैस छोड़ो
देप्त ले रिसा जस रईं
हर जा्ग टाँकि छन गुस्स
वाल भगवान
अवाज काँ न्हा फुस्स छु
इंसान
याँ सब एक दुसर कें
फर्जी बतूनी
याँ सब एक दुसर है द्वि
आंगुल बाकि छन
सबै कुंभ नै भेर ऐ ग्यान
सब एक दुसर है ठुल पापि
छन
याँ सबनक गुद्दी है
ज्ञान फुटि बर्बाद हुनो
खुदै आपणी हाम
खुदै आपण तैंस देखौ
देखौ पें
अमृत काल क मृत मैस देखौ
(हिन्दी अनुवाद)
कौतिक चल रहा है
तुम भी आओ
यहाँ जिसका भी मुँह देखा
टेढ़ा ही पाया
पेट के जोंक सा
सरकार की आंतों में बँधा
ही पाया
आदमी छोड़ो
इस वक्त देवता भी नाराज
लग रहे हैं
हर जगह टाँक दिए गए हैं
ग़ुस्से वाले भगवान
आवाज कहीं नहीं है, फुस्स है इंसान
इधर सब एक दूजे को फर्जी
बताते हैं
इधर सब एक दूजे से दो
अंगुल अधिक जताते हैं
सभी नहा के आए हैं कुंभ
से
सब एक दूसरे से बड़े
पापी हैं
यहाँ सबके दिमागों से
फूट रहा ज्ञान बर्बाद हो रहा है
हम सब ख़ुद अपनी तारीफ़
में व्यस्त हैं
ख़ुद ही अपने गर्व में
पस्त हैं
देखो भई
इस अमृत काल का
मृत आदमी देखो।
****

यो देप्त अलग छु
किसनुवा
त्यर त जोग्याण रंङक
पटुक
त अदकट निशाण
कुथल जस जँघि, पजम
त्यर हाथ में त जाँठ
त्यरि तो अघिल-पछिल
रमक-झमक
त इक हत्थि ढोग
हँला त्यर इष्टक तस भनार
तस पैरण
तस नाचण त नि छी यार
सांचि बताए
किसनुवा
तू कैक छे रे?
आपण इष्टक त न्हाते
यो देप्त अलग छु
(हिन्दी अनुवाद)
(किशन सिंह के लिए)
किशनुवा
तेरा यह जोगी रंग का
वस्त्र
यह अधकटा निशाण
जाँघों तक फैला भारी सा
पैजामा
तेरे हाँथ में यह लाठी
तेरी यह आगे-पीछे की
रमक-झमक
तेरा यह एक हाथ से
नमस्कार करना
हैं !
तेरे ईष्ट का ऐसा स्वरूप
ऐसा पहनावा
इस तरह का नाच तो
बिल्कुल नहीं था यार।
सच्ची बताना
रे किशनुवा!
तू किसका है?
अपने ईष्ट का तो नहीं
लगता
यह देवता तो बिल्कुल अलग
है रे।
***

तैं जब ले आली
(पूर्वी कुमाउनी सौर्याली के लहजे में एक कविता)
तैं जब ले आली
आये !
मैं पक्का तेर बाट चाँल
हिमाल क ह्युं छन तक
ह्युं गल जाल जबत
मेरि कफुली तैं सोचे
मेर शरीर हैं उड़ी ग्यो
हंसप्राण
रेग्यो माट मुट्ठि भर
मै ह्युं जस गलि भेर
तेर भितर रकत जस बगि
जूँल
पगलि
माटो छ असल पदारथ
ऊस लुकै समालि भेर राखे
एक न एक दिन
तेरि माया जरुर
वापिस फरक्या भेर ल्याली
फिर प्राण उ माट में
फिर फुल्ललो
पय्याँ को फूल
फागुन आल
फिर चैत आल
भिटाऊ* न्याति फुलली तैं
लुक्कू पाल खेलली
भिड़-पाखन में
प्योली क फूल बनि भेर
यो अनकस्सो
टैम ले हौलाक जस फाटल
आहा !
हामर ले घट पानि आल
यो निमिनाक चिसो सुर्ज
बुरुंजक फूल जस
टक्क लाल रंङ में फुलल
(हिन्दी अनुवाद)
(पूर्वी
कुमाऊनी सौर्याली के लहजे में एक कविता)
तुम जब भी आएगी
आना!
मैं तुम्हारी राह तकूँगा
हिमाल में बर्फ रहने तक
जब बर्फ पिघल जाएगी
मेरी प्रिये तुम सोचना
मेरे शरीर से उड़ चुका
है यह हंसप्राण
और रह गई केवल
मुट्ठी भर मिट्टी
मैं बर्फ जैसा पिघल कर
तुम्हारे भीतर रक्त की
तरह बह जाऊँगा
पगली!
मिट्टी है असल पदारथ
उसे छुपा के, सहेज कर रखना
मुझे यकीन है
एक ना एक दिन
तुम्हारा प्रेम ज़रूर
वापिस लौटा लायेगा
फिर इस मिट्टी में प्राण
फिर खिलेगा
पद्म का पुष्प
फाल्गुन आयेगा
आयेगा फिर चैत
भिटारू के तरह खिलेगी तुम
आँखमिचौली खेलेगी
दुर्गम पहाड़ों और आंगन
की दीवारों पर
प्योली का फूल बनके।
यह अजीब वक्त
गुज़र जाएगा
आहा!
हमारे घराट पर फिर पानी
होगा
यह बुझा हुआ ठंडा सूरज
बुराँश के फूल की तरह
टक्क लाल रंग में
खिलेगा।
***
1 भेड़ के ऊन से बना एक तरफ़ से ओढ़े जाने वाला एक तिब्बती कंबल
2. महासीर
3. गाय की बछिया
4. बल/शक्ति
5. पतली सी झोली
6. कुमाऊनी पारंपरिक ताँबे का बर्तन
7. मेलों में जाने वालों का मेला
8. सांस्कृतिक मेला
9. स्प्रिंग लिली
( कविताओं का हिन्दी अनुवाद हिमांशु विश्वकर्मा ने किया है। )
बहुत हि ह्रदयस्पर्शी एवं मार्मिक हैं प्रत्येक कविता, कवि ने अपने ह्रदय की भावनाओं को सहज व बड़े हि सुन्दर प्रकार से प्रस्तुत किया है। सादुवाद 💐