अनुनाद

मैने मुट्ठी में भींच कर रखा एक ख़्वाब था – प्रीति आर्या की कविताऍं

courtesy : Bhaskar Bhauryal

 

अपना एक कोना 

एक स्त्री!

अपने आस पास, 

सब कुछ रचती है

बड़े इत्मीनान से

ख़ाली मकान को 

बंजर ज़मीन को

खंडहर को

ख़ुद बनाती–

घर, आंगन, द्वार 

उसमें बसता हंसता खेलता परिवार,

हरा भरा सतरंगी संसार,

पोषित होता जिनमें ऐसे ही 

पीढ़ी दर पीढ़ी फलते–फूलते संस्कार 

रचती है एक स्त्री

सुंदर समाज,

सुंदर सभ्यता,

औ’ सुंदर संस्कृति

वही स्त्री भूल जाती हैं अक्सर 

इस संसार में ख़ुद का होना 

और 

ख़ुद के लिए रचना 

बस अपना एक कोना ।।

***

 हत्यारे 

अजीब इत्‍ति‍फ़ाक़ था

मैने मुट्ठी में भींच कर रखा एक ख़्वाब था। 

यूं तो पलकें थीं बंद लेकिन  

आंखों में नींद का नहीं कोई एहसास था

ख्‍वाहिश थी, उसे ले जाऊ आंखों तक और 

छोड़ दूं नींद के आगोश में, 

जहां गहरे नीले समंदर में

जल परी बन लगाएं गोते

खोज लाए नायाब मोती ।।

वो बन वाष्प उड़ जाएं आसमान में

और घटा-सा बरसे घनघोर

भिगो दें धरती का ओर-छोर।।

या फि‍र ऊंची श्वेत चोटियों में

हिम सा बिछ जाएं रजत दुशाला ओड़

और पिघल पिघल बहे बन नद कलकल।।

तभी लेता है ख़्वाब भी एक गहरी नि:स्वास

और खोल देता है चेतना के द्वार

मुठ्ठी कुछ ज्यादा भींच जाती है 

भिंची रहतीं है तब भी 

जब दम तोड़ नहीं देता है ख़्वाब।।

ऐसे ही हर दिन हर पल कई ख़्वाब

अपने होने को प्रमाणित करते सर उठा देते थे

और सच मानिए जनाब!

उन सभी ख़्वाबों का भी एक ही ख़्वाब था

देह, लिंग, जाति, धर्म आधारित 

भेद भाव से आजादी पाना,

किंतु वो तो मारे जाते थे रोज मेरे हाथों 

कभी अनायास, कभी साभ्यास ।

बताओ तुम्हारे क़ानून में इन हत्याओं के लिए

क्या कोई सजा है?

***

 अपराध 

मैंने पूछा 

क्या है मेरा अपराध?

स्त्री होना 

शूद्र होना 

शिक्षित होना 

योग्य होना 

अपने अधिकार मांगना 

तुम्हारे समकक्ष होना 

या फिर ये सब ही ?

समस्त उपस्थित विद्वतजन निरुत्तर थे।

और दूसरे ही दिन दलित लड़की के 

बलात्कार और निर्मम हत्या की 

रक्तिमा से अखबारों के पृष्ठ स्याह थे । 

हां! इसके बाद मैने कभी कोई प्रश्न नहीं किया

क्योंकि प्रश्न पूछना ही सबसे बड़ा अपराध था!  

***

 

प्रीति आर्या, अल्मोड़ा उत्तराखंड 

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