व्योमेश शुक्ल समकालीन हिंदी कविता और आलोचना का सुपरिचित नाम है। कम लोग जानते हैं कि वे रंगकर्म में भी गहरी दिलचस्पी और भागीदारी रखते हैं। इधर तो व्योमेश के रचनात्मक समय का ज़्यादातर हिस्सा रंगकर्म को ही समर्पित होता है। वे बनारस में रूपवाणी नामक संस्था के संचालक हैं। यह दरअसल तीस वर्ष पुरानी संस्था है, जिसने रामानन्द सागर के टी.वी. सीरिलय के पहले राधेश्याम कथावाचक की रामायण को बैले रूप में प्रस्तुत किया था। इधर व्योमेश के नेतृत्व में इस संस्था को नया रूप मिला है। अब रूपवाणी लोकरंग, बच्चों के लिए रंगकार्यशालाओं, कवितापाठ, संगीत, नृत्य आदि कई दिशाओं में सघन कार्य कर रही है। 2011 में रूपवाणी ने मोहन राकेश के ‘आषाढ़ का एक दिन’ (कालिदास की जीवन ट्रैजेडी पर आधारित नाटक) का मंचन समसामयिक सन्दर्भों से जोड़कर किया था। कामायनी के 75 वर्ष पूरे होने पर रूपवाणी ने उसे मंच पर साकार किया है, जो इसके पहले हुए इस तरह के प्रयासों से कई रूपों से भिन्न भी है। अनुनाद ने व्योमेश से इस प्रस्तुति की विस्तृत रिपोर्ट के लिए अनुरोध किया था, जिसके प्रथम चरण के रूप में कुछ तस्वीरें हासिल हुई हैं। अनुनाद के पाठकों के लिए नाटक से कुछ दृश्य….
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यदि श्रद्धा और मनु अर्थात मनन के सहयोग से मानवता का विकास रूपक है, तो भी बड़ा ही भावमय और श्लाघ्य है। यह मनुष्यता का मनोवैज्ञानिक इतिहास बनने में समर्थ हो सकता है-
– जयशंकर प्रसाद (कामायनी के आमुख पर)
कामायनी के रंगकर्मी
मनु : स्वाति
श्रद्धा : प्रतिमा
लज्जा/आकुलि/काम/सूत्रधार : प्रशस्ति
लज्जा/किलात/रति/सूत्रधार : अवंतिका
इड़ा : नंदिनी
मानव : रौशन
राज्यकर्मी : मीनाक्षी
संगीत निर्देशन : अरविन्ददास गुप्त
परिकल्पना : धीरेन्द्रमोहन
निर्देशन : व्योमेश शुक्ल
निर्देशकीय सहकार(नृत्य) : प्रशस्ति
नेपथ्य निगमन : जे.पी.शर्मा
नेपथ्य सहकार : स्वाति, नंदिनी, मीनाक्षी, तापस
प्रस्तुति : रूपवाणी, बनारस : सी 27/ 111, बी 4, जगतगंज, वाराणसी-2
फोन – 9335470204, 9415623224
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achchhi prsatuti badhai..
'कामायनी' का मंचन देखना एक यादगार अनुभव रहा है। व्योमेश शुक्ल जी ने महाकवि जयशंकर प्रसाद कृत इस महान कृति के 75 साल पूरे होने के अवसर को जिस सिद्दत से स्मरणीय आकार दिया, यह उल्लेखनीय व प्रशंसनीय है। उन्हें बधाई और यहां चित्र उपलब्ध कराने के लिए 'अनुनाद' का आभार..