विख्यात बॉंग्ला लेखिका तस्लीमा नसरीन का आज जन्मदिन है। इस अवसर पर हम उनकी तीन कविताऍं बधाई और शुभकामनाओं के साथ प्रकाशित कर रहे हैं, जिनका अनुवाद सुपरिचित कवि और अनुवादक सुलोचना वर्मा ने किया है। इन कविताओं के लिए अनुनाद तस्लीमा नसरीन और सुलोचना वर्मा का आभारी है।
प्रेम
यदि मुझे काजल
लगाना पड़े तुम्हारे लिए,
बालों और चेहरे
पर लगाना पड़े रंग ,
तन पर छिड़कना पड़े
सुगंध,
सबसे सुन्दर साड़ी
यदि पहननी पड़े,
सिर्फ तुम देखोगे
इसलिए माला चूड़ी पहनकर सजना पड़े,
यदि पेट के निचले
हिस्से के मेद,
यदि गले या आँखों
के किनारे की झुर्रियों को कायदे से छुपाना पड़े,
तो तुम्हारे साथ
है और कुछ, प्रेम नहीं है मेरा |
प्रेम है अगर तो
जो कुछ है बेतरतीब मेरा
या कुछ कमी, या कुछ भूल ही,
रहे असुन्दर, सामने खड़ी हो जाऊँगी,
तुम प्यार करोगे |
किसने कहा कि
प्रेम खूब सहज है, चाहने मात्र से हो जाता है !
इतने जो पुरुष
देखती हूँ चारों ओर, कहाँ,
प्रेमी तो नहीं देख पाती
!!
व्यस्तता
मैंने तुम्हारा
विश्वास किया था, जो कुछ भी था मेरा सब दिया था,
जो कुछ भी
अर्जन-उपार्जन !
अब देखो ना
भिखारी की तरह कैसे बैठी रहती हूँ!
कोई पीछे मुड़कर
नहीं देखता।
तुम्हारे पास
देखने का समय क्यों होगा! कितने तरह के काम हैं तुम्हारे पास!
आजकल तो व्यस्तता
भी बढ़ गई है बहुत।
उस दिन मैंने
देखा वह प्यार
न जाने किसे देने
में बहुत व्यस्त थे तुम,
जो तुम्हें मैंने
दिया था।
आँख
सिर्फ़ चुंबन
चुंबन चुंबन
इतना चूमना क्यों
चाहते हो?
क्या प्रेम में
पड़ते ही चूमना होता है!
बिना चुंबन के
प्रेम नहीं होता?
शरीर स्पर्श किये
बिना प्रेम नहीं होता?
सामने बैठो,
चुपचाप बैठते हैं
चलो,
बिना कुछ भी कहे
चलो,
बेआवाज़ चलो,
सिर्फ़ आँखों की
ओर देखकर चलो,
देखो प्रेम होता
है कि नहीं!
आँखें जितना बोल
सकती हैं, मुँह क्या उसका तनिक भी बोल सकता है!
आँखें जितना
प्रेम समझती हैं, उतना क्या शरीर का अन्य कोई भी अंग समझता है!
मूल पाठ
প্রেম
—তসলিমা
নাসরিন
যদি
আমাকে
কাজল পড়তে
হয় তোমার
জন্য ,
চুলে
মুখে রং
মাখতে
হয়,
গায়ে
সুগন্ধী
ছিটোতে
হয়,
সবচেয়ে
ভালো শাড়িটা
যদি পড়তে
হয়,
শুধু
তুমি দেখবে
বলে মালাটা
চুড়িটা
পড়ে সাজতে
হয়,
যদি
তলপেটের
মেদ,
যদি
গলার বা
চোখের
কিনারের
ভাঁজ কায়দা
করে লুকোতে
হয়,
তবে
তোমার
সঙ্গে
অন্য কিছু,
প্রেম
নয় আমার।
প্রেম
হলে আমার
যা কিছু
এলোমেলো,
যা
কিছু খুঁত,যা
কিছুই
ভুলভাল
অসুন্দর
থাক, সামনে
দাঁড়াবো,
তুমি
ভালবাসবে।
কে
বলেছে
প্রেম
খুব সহজ,
চাইলেই
হয়!
এত
যে পুরুষ
চারিদিকে, কই,
প্রেমিক
তো দেখি
না!
ব্যস্ততা
তোমাকে
বিশ্বাস
করেছিলাম, যা
কিছু নিজের
ছিল দিয়েছিলাম,
যা
কিছুই
অর্জন–উপার্জন
!
এখন
দেখ না
ভিখিরির
মতো কেমন
বসে থাকি
!
কেউ
ফিরে তাকায়
না।
তোমার
কেন সময়
হবে তাকাবার
! কত রকম
কাজ তোমার
!
আজকাল
তো ব্যস্ততাও
বেড়েছে
খুব।
সেদিন
দেখলাম
সেই ভালবাসাগুলো
কাকে
যেন দিতে
খুব ব্যস্ত
তুমি,
যেগুলো
তোমাকে
আমি দিয়েছিলাম।
চোখ
খালি
চুমু চুমু
চুমু
এত
চুমু খেতে
চাও কেন?
প্রেমে
পড়লেই
বুঝি চুমু
খেতে হয়!
চুমু
না খেয়ে
প্রেম
হয় না?
শরীর
স্পর্শ
না করে
প্রেম
হয় না?
মুখোমুখি
বসো,
চুপচাপ
বসে থাকি
চলো,
কোনও
কথা না
বলে চলো,
কোনও
শব্দ না
করে চলো,
শুধু
চোখের
দিকে তাকিয়ে
চলো,
দেখ
প্রেম
হয় কি
না!
চোখ
যত কথা
বলতে পারে,
মুখ বুঝি
তার সামান্যও
পারে!
চোখ
যত প্রেম
জানে, তত
বুঝি শরীরের
অন্য কোনও
অঙ্গ জানে!
अनुवादक : सुलोचना वर्मा
शिक्षा : कॅंप्यूटर
अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
सम्प्रति : दूरसंचार कम्पनी में वरिष्ठ कार्यक्रम
प्रबंधक के पद पर कार्यरत
प्रकाशन : “अंधेरे में जगमग”
(कहानी संग्रह) नेशनल बुक ट्रस्ट के महिला प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत प्रकाशित,
“बचे रहने का अभिनय” (कविता संग्रह) और “मेरी कथा”(नटी बिनोदिनी की आत्मकथा का
हिंदी अनुवाद) सेतू प्रकाशन से प्रकाशनाधीन
हिंदी और बांग्ला की पत्रिकाओं में रचनाओं
का प्रकाशन | रचनाएँ कथादेश, शुक्रवार, सदानीरा, नया ज्ञानोदय, समकालीन भारतीय साहित्य, छपते-छपते,
पाठ, दुनिया इन दिनों, नया प्रतिमान, हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, दैनिक जागरण, स्त्रीलोक,
हिंदी समय, रविवाणी, प्रवाह, देशज समकालीन, सृजनलोक, जनादेश, समालोचन, आगमन, वंचित
जनता, कल्पतरु एक्सप्रेस,
स्पर्श, जानकी पुल, सिताब दियारा, शब्द व्यंजना, भवदीय प्रभात, पारस परस, प्रतिलिपि,
साहित्य रागिनी, पंजाब टुडे (पंजाबी), बांग्ला (खनन, रुपाली आलो, देयांग ) आदि में प्रकाशित
|
बांग्ला (रबीन्द्रनाथ टैगोर, क़ाज़ी नज़रूल
इस्लाम, लालन फ़कीर, तस्लीमा नसरीन, रूद्र मोहम्मद शहीदुल्लाह, शंख घोष, सुनील
गंगोपाध्याय, मलय राय चौधुरी, बिप्लब चौधुरी आदि) और अंग्रेजी (अमिय चटर्जी) की कई
कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है|
पढ़ने लिखने के अतिरिक्त छायाचित्रण व
चित्रकारी में रुचि है तथा संगीत को जीवन का अभिन्न अंग मानती हूँ।
दूरभाष : ९८१८२०२८७६ / ९३५४६५९१५०
ई मेल : verma.sulochana@gmail.com
प्रेम की महीन कविताएँ। अनुवाद कितना सरस किया है। आज का दिन बन गया ये कविताएँ पढ़कर।
খুব সুন্দর হয়েছে অনুবাদ|
तसलिमा नसरिन के जन्मदिन पर बांग्ला मूल रचनाओं के साथ सुन्दर अनुवाद पढ़वाने के लिए सुलोचना मैम और अनुनाद का आभार |
बहुत सुन्दर औ प्रेमील कविताएँ
… शरीर स्पर्श कीय बिना प्रेम नहीं होता ?
बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण अनुवाद है , शब्दों को कितना खूबसूरती से चुना है.
सिर्फ़ चुंबन चुंबन चुंबन
इतना चूमना क्यों चाहते हो?
–
सुलोचना वर्मा जी, आपने ने बहुत शानदार अनुवाद किया।
सुन्दर कविताएँ।
शुक्रिया |
शुक्रिया आपका इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए
शुक्रिया
धन्यवाद
शुक्रिया