गर हुए खुशकिस्मत इस जहाँ में हम
युद्ध के मैदान में एक खिड़की आ खड़ी होगी दो सेनाओं के बीच
युद्ध के मैदान में एक खिड़की आ खड़ी होगी दो सेनाओं के बीच
और जब सैनिक झांकेंगे उस खिड़की से
तो उन्हें नहीं दिखाई देंगे दुश्मन
देखेंगे अपने आपको गोया बच्चे हों वे
और रोक देंगे लड़ाई
लौट पड़ेंगे अपने घरों को और सो जायेंगे.
और जब तक वे जागेंगे, धरती फिर
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कैमेरून पेनी ने यह कविता तब लिखी थी जब वे मिशिगन के एक स्कूल में चौथी कक्षा के छात्र थे. इसका प्रथम प्रकाशन हुआ था नॉर्थ अमेरिकन रिव्यू के नवम्बर/दिसंबर 2001 अंक में; 2005 में बनी डॅाक्युमेंट्री फ़िल्म ‘वॉयसेज़ इन वॉरटाइम‘ में भी यह कविता संकलित है.
तस्वीर नैशनल कोएलिशन अगेंस्ट सेंसरशिप की वेबसाईट से साभार; स्पैनिश में ‘गुएरा’ का अर्थ है ‘युद्ध’.
bahut hi khoobsoorat abhivyakti hai …prastuti ke liye badhaayi
चौथी कक्षा में लिखी गयी एक बड़ी कविता है ये.शायद अपने मूल रूप में सारी अच्छी कवितायेँ इसी उम्र में बनाई जाती हों!और बड़े होने पर उन्हें कायदे से लिखा जाता हो.
आज कल ये कवि क्या कर रहें है?
इसका अर्थ है कि प्रतिभा उम्र की भी मुंहताज नहीं होती !!
संजय जी,
बिलकुल यही सवाल मेरे मन में भी आया था; पर इस कवि के 'व्हेयरअबाउट्स' को लेकर इन्टरनेट पर कोई ख़ास जानकारी मिली नहीं.
और कोशिश करता हूँ – कुछ मिला तो आपको सूचित करूंगा ज़रूर.
क्या कहूं साथी
बस आमीन!
ठीक कहते हो संजय. बस इतनी सी है कविता ….बाक़ी तो "क़ायदे" के नाम पे वैचारिक प्रदूषण भर है.
Bharat Bhai, sukhad achraj hua, itti chhoti umr men itnee badee kavita. dost kah hee rahe hain ki isi umr men likhi jaati hai aisi kavita.
…aur apke bare men kya likha jaye ki America men rahte hue kitna sarthak kam karta rahta hai yh shakhs
बहुत ही शानदार कविता है। भारत जी आपका आभार ऐसी शानदार कविता की प्रस्तुती के लिए।
पिकासो ने एक बार कहा कि बड़े चित्रकारों जैसा चित्रांकन तो वो बचपन में ही कर लदेते थे। बच्चों जैसा चित्रांकन करना सीखने में लम्बा वक्त लगा।
अफसोस की हमारे कवियों,कलाकारों में बच्चों की तमाम सहजता,ईमानदारी,प्रकृतस्थता गायब हो गयी है। उनमें बचा रह गया है मात्र बच्चों का बचकानापन !
कम उम्र में बहुत बहुत बहुत बड़ी कविता.
अच्छी ’ छाया-वादी ’ कविता , लगी /
पता नही क्यो,कुरुक्शेत्र आ गया आखो के सामने ………………….
शायद ऐसी ही मासूम/सम्मोहक सोच से खीच के श्री क्रिश्न , अर्जुन को बाहर ले आये थे ,उस समय /
आमीन