मेदी लोकितो १९६२ में जनमी इंडोनेशिया की आधुनिक काव्य धारा की चर्चित कवि हैं . दो बच्चों की माँ लोकितो चीनी मूल की इंडोनेशियाई कवि हैं.उनका कहना है कि साहित्य उनका लक्ष्य था नहीं पर एक बड़े और लोकप्रिय इंडोनेशियाई कवि और फिल्मकार की प्रेरणा से उनका आक्सिडेंट्ली साहित्य से जुडाव हो गया,और अब तो वे इंडोनेसिया की महत्वपूर्ण कवि मानी जाती हैं.उनके ३ संकलन तो प्रकाशित हैं ही साथ ही देश और विदेश की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में भी कवितायेँ छप चुकी हैं. नवोदित साहित्यकारों को बढ़ावा देने और उनको आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने की दिशा में भी उन्होंने विशेष काम किया है…खास तौर पर नेट के माध्यम से.साहित्य के अलावा वे देसी हस्तकला के उन्नयन के लिए भी काम करती हैं. यहाँ प्रस्तुत है उनकी कुछ बेहद छोटी रचनाएँ…
पिछवाड़ा
बरसात ने छू दिए
पत्तियों के नोंक
उग आये इन्द्रधनुष
मेरे पिछवाड़े में…
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पत्तियों के नोंक
उग आये इन्द्रधनुष
मेरे पिछवाड़े में…
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यात्रा
धरती पर नाव खेना
न लहरें..यहाँ तक कि अंधड़ भी नहीं
फिर भी चकनाचूर हो गयी नाव
धूल से.. पत्थरों से…
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न लहरें..यहाँ तक कि अंधड़ भी नहीं
फिर भी चकनाचूर हो गयी नाव
धूल से.. पत्थरों से…
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झील
नीली पहाड़ी झील में
ईश्वर की हथेलियाँ रोपती हैं सितारे
ये सितारे ही टिमटिमाने लगते हैं
चंचल मछलियों की आँखों में…
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ईश्वर की हथेलियाँ रोपती हैं सितारे
ये सितारे ही टिमटिमाने लगते हैं
चंचल मछलियों की आँखों में…
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तुम और मैं
अब बुढापे तक पहुँच गया तो याद ही नहीं रहा
कि मेरे ह्रदय में तन कर खड़ा हुआ है
एक विशाल वृक्ष
जिसके रसीले फल तो मैंने तोड़े ही नहीं कभी…
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कि मेरे ह्रदय में तन कर खड़ा हुआ है
एक विशाल वृक्ष
जिसके रसीले फल तो मैंने तोड़े ही नहीं कभी…
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प्रार्थना
मेरे ह्रदय में बसी पहाड़ियों के चारों ओर
लिपट गयी हैं कांटेदार लत्तरें और झाड़ियाँ
पर अब इनमे कोई कोंपल नहीं फूटती
बसंत में भी
छू लेने दो अपना पावन हाथ
मेरे प्रिय ईश्वर…
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लिपट गयी हैं कांटेदार लत्तरें और झाड़ियाँ
पर अब इनमे कोई कोंपल नहीं फूटती
बसंत में भी
छू लेने दो अपना पावन हाथ
मेरे प्रिय ईश्वर…
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बसंत
मेरे बाग़ में बसंत ने दस्तक दी
तो तितलियों ने चक्कर काटने शुरू कर दिए
मेरी नन्ही बेटी के इर्द गिर्द
उसके बाल फूलों जैसे जो हैं…
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तो तितलियों ने चक्कर काटने शुरू कर दिए
मेरी नन्ही बेटी के इर्द गिर्द
उसके बाल फूलों जैसे जो हैं…
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प्रस्थान
मकड़ी के जाले ने
डोरे डाल लिए चमकदार सुबह के
ओस कणों पर
जब चाँद छोड़ कर चला गया
गीली दूब को…तनहा….
डोरे डाल लिए चमकदार सुबह के
ओस कणों पर
जब चाँद छोड़ कर चला गया
गीली दूब को…तनहा….
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अनुवाद तथा प्रस्तुति – यादवेंद्र
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pyari si kavitayen
ये कितनी सुंदर हैं … यादवेन्द्रजी
.. शुक्रिया
sweet!
इतने सारे शब्द चित्र !! और सबके सब अनोखे!!! शुक्रिया!!
छोटी किन्तु , अर्थपूर्ण गहरी ..बड़ी सुंदर रचनाये …पसंद आई
प्रस्थान बहुत सुन्दर लगा…
पिछली कुछ पोस्ट पढने से चुक गया था… इसलिए अशोक जी की कविताओं से लेकर अब तक के लिए धन्यवाद…