गौरांशी
चमोली की कविताऍं मैंने फेसबुक के एक पेज पर हुए लाइव में सुनीं। जीवन और समाज
की बुनियाद समझ से भरी इन कविताओं में मुझे सहजता का वो दुर्लभ-सा सिरा हर कहीं मौजूद मिला, जिसकी हमारी किंचित
विकसित और जटिल जीवनशैली में अब याद भर रह गई है। प्रकृति और पर्यावास से कवि का सहज जुड़ाव, पेड़ों से दोस्तियॉं, जंगल की कहानियॉं, बाघ-रीख आदि की हमें नॉस्टेल्जिक बनाती याद तो यहॉं दी जा रही कविताओं में है ही, इस कठोर संसार में स्त्री होने की मुश्किल
का एक तीखा समकालीन अहसास भी यहॉं है। गौरांशी का अनुनाद पर स्वागत है और अनुनाद उन्हें कविता में
सध जाने की नहीं, सहज रहने की शुभकामना देता हैं।
कवि का कथन
मुझे
लिखना अच्छा लगता है क्योंकि, मैं जिन जगहों या चीजों से लगाव महसूस करती
हूं, उनकी याद
बनाए रखना चाहती हूं। मैं उनके होने ,खिलने ,बने रहने, टूटने, ख़त्म होने
की खुशी और पीडा को महसूस कर पाती हूं । मुझे हर चीज में एक कहानी दिखती है। मैं
उस कहानी को पढना चाहती हूं। मैं चाहती हूं अगर कोई मेरा लिखा हुआ कुछ पढे तो वह
भी कुछ- कुछ वैसा ही महसूस कर पाए। मुझे लगता है हमें दुनिया को देखने -समझने के
बने बनाए और पारंपरिक तरीकों के अलावा नए नज़रियों से भी देखने की कोशिश करनी
चाहिए। प्रकृति की बनायी हर चीज अपने आप में अलग और अनूठी है। इस विविधता का
सम्मान व सुरक्षा होनी चाहिए। दुनिया को एक ऐसी जगह होना चाहिए जहां हर एक पत्ते, पेड़, जानवर,नदी, हम सबको रहना
– होना अच्छा लगे।
– गौरांशी
चमोली
पैर
सबसे आगे चलने वाले
पैर
खोजते बनाते हैं
रास्ता
एक पूरी नयी पीढी के
लिए
निरंतर चलते रहने
कभी न थकने वाले पैर
रचते हैं नया – बेहतर
इतिहास
सबसे पीछे चलने वाले
पैर
बनाते हैं नए कायदे
नेतृत्व के कायदे
गिर कर उठ फिर चलने
वाले पैरों के पास होती हैं
सबसे रोचक कहानियां
लेकिन
गिर कर फिर न उठने
वाले पैरों को
चोटी की नरम घास जादू
नहीं दिखाती
और जो पैर कभी नहीं
चलते
वो गप्प लगाते हैं
चढाई आसान होने की
गप्प।
***
बच्चियां
मुसाफ़िर हो जाने से
जगह के साथ
नाम बदलते हैं
संस्कृति बदलती है
पत्तों की खु़शबू
बदलती है
धान का रंग बदलता है
मिट्टी में पानी
बदलता है
चिड़ियों की आवाज़
बदलती है
बस स्त्रियां एक-सी
मिलती हैं
सबसे पहले उठकर
सबसे बाद में सोने
वाली
जंगलों के गीत गाने
वाली
भैंस के बच्चे को
प्यार करने वाली
बच्चियां भी एक सी
मिलती हैं
प्यारी चुलबुली
बेवजह उग आने वाली
घास जैसी।
***
हम आज़ाद हैं
हम आज़ाद हैं
जब तक हमारे सिर झुके
हैं
जब तक हम मौन खडे हैं
ये सडकें, ये नदी, वो आसमान
सब हमारा है
जब तक हमारे हाथ
भीख में रोटी के लिए
उठते है
बस सिर उठाकर
अपना हक़ मांगने पर
हम अपराधी हो जाते
हैं ।
***
जंगल 1
क्या एक पेड की मौत
का शोक
जंगल मनाता होगा ?
मनाता ही होगा मैने
देखा है उसे
सुलगते हुए।
***
जंगल 2
वे जो बड़ा-सा चीड़
अपनी पत्तियों की उलझन
में
सूरज की असीम ऊर्जा
छिपाए बैठा है
मेरा दोस्त है।
***
जंगल 3
खू़बसूरती के भीतर मज़बूती
छिपाए
तेज़ हवा के झोंकों
में
दूर उड़ा जा रहा है
वह
एक बीज
एक बडे़-से पेड़ का
बहादुर बच्चा
***
जंगल 4
जंगल का रखवाला होना
आसान नहीं होता
क्योंकि जंगल का
रखवाला होने से
जंगल की दावेदारी
नहीं आती
आपको लड़ना पड़ता है
जंगल से
व्यवस्था से
जिसके पास ताक़त है
दावेदारी ले लेने की
बाज़ार से
जो जब तब ख़रीद सकता
है दावेदारी।
***
जंगल 5
जंगल हूं मैं
नदी का पाला हुआ
कभी बर्फ़ से ढँका
कभी चीड-सा सूखा
खूबसूरत हूं
सड़क किनारे हुआ
वृक्षारोपण नहीं
बेबुनी
तुम्हारी पहुंच से
परे
मेरी खूबसूरती खलेगी तुम्हें
चुभन देगी आंखों को
क्योंकि बांध नहीं
पाओगे मुझे
जानती हूं मैं
समझती हूं
जंगल हो जाना
तुम्हारे खू़बसूरती
के मायनों से परे है
तुम्हें आंगन के पेड
पसंद हैं।
***
वो काम नहीं करती
वो गंवार है
चूल्हा जलाती है
कमजोर है
घीडे का भार उठाती है
मूर्ख है
जंगल बचाती है
अनपढ है
धरती चीर के धान
उगाती है
कम अक्ल है
नदी के गीत गाती है
वो कहते हैं
उसमें सार्मथ्य नहीं
इसलिए काम नहीं करती
।
***
पत्ते
पत्ते टूटते हैं
सूखते हैं
मरते नहीं है
इनमें ज़िन्दा रहती
हैं
बरसात तूफ़ान से जीती
गयी जंग
रिसते डांडों में बने
रहने का साहस
बाघ के पंजे पर
घसियारी की दरांती की
जीत
एक छोटे भोटिया
कुत्ते की आंख के ऊपर पडे़
पंजे के निशान के
पीछे का राज़
सर्दियों की धूप में
पहाड की चोटी की नींद
रीख के हाथों से
जिंदा निकल आने की कथा सुनाते हुए
पी गयी चाय
इनमें जिंदा रहती है
***
परिचय
जन्मतिथि 14-10-2000
उत्तरकाशी में रहती
हैं । जीवविज्ञान में स्नातक की छात्रा है। ट्रेकिंग, ट्रेवलिंग, पेंटिग, क्राफ़्ट वर्क ,किताबें पढ़ना
और कविताएं लिखना अच्छा लगता है।
सहज सरल व सुन्दर कविताएँ। बहुत बधाई।
गौरांशी संभावनाशील कवयित्री हैं। उन्हें शुभकामनाएं। यूं ही लिखती रहें। अनुनाद द्वारा नवोदित कवयित्री को मंच प्रदान करना शानदार पहल है।
बहुत ही लाज़वाब कविताएँ।बधाई।
गौरांशी की कविताओं में भोलेपन और भलेपन का जादू है। आपने ठीक ही उसे सहज रहने की शुभकामनाएं दी हैं। लेकिन इस भोलेपन और भलेपन में ऐसा भी नहीं कि कवि की दृष्टि समाज में स्त्री की स्थिति को पकड़ नहीं पाई हो। गौरांशी के पास एक राजनीतिक समझ भी है। वह लगातार रचनाशील रहे यही उम्मीद करता हूँ।
-प्रदीप सैनी
सुन्दर कविताएँ
इतनी छोटी सी उम्र में इतनी सुन्दर और सुल्झी हुईं कविताएँ लिखतीं हैं गौरांशी| उनकी कविताओं से ढेर सारी सम्भावनाओं की खुशबु आती है|उनको बहुत बहुत बधाई|अनुनाद का आभार |