सपना
जिनका कोई सपना नहीं था
वे उम्र भर
दूसरों का सपना पूरा करने में लगे रहे
जिन्हें स्वप्न दिखाए गए
उनके पास
बित्ता भर ज़मीन भी नहीं थी
उन सपनों को टिकाने के वास्ते
स्वप्निल योजनाएं
जिनके नाम पर बनतीं
हकीकत में वे
उन्हें बरगलाने के काम आतीं
जिन आंखों को
दरकार थी पहले रोशनी की
उनसे ही
पूछा जाता
उनके हिस्से की धूप का पता
सपना इसलिए नहीं था
क्योंकि उन आंखों में
सदियों से नींद ही न थी
सपनों भरी नींद अब भी एक सपना है ।
टूटना-बनना
बनने के लिए टूटना
एक कारण है
टूटने के बाद बनना
एक सिद्धि
कुछ लोग जैसे हैं वैसे ही बने रहते हैं
कुछ लोग टूट जाते हैं
कुछ लोग बनते हैं फिर टूट जाते हैं
कुछ लोग टूटने के बाद बनते हैं
टूटने की प्रक्रिया को अपने लिए अपनाना होता है
यह अपनाना ही अपने को बनाने के लिए होता है
बनते रहने की ज़िद
हमेशा के लिए टूट जाने से बचाती है ।
धूप का दर्शन
मृत्यु का भय उस धूप को नहीं था
जो जीवन भर
हम सबकी अनंत इच्छाओं के गीले कपड़े सुखाती रही
न ही बताया
उतने पानी का भार
हिम्मत के उस तार ने
जिस पर सूखते थे वे कपड़े
जो होते पहले भारी
फिर उतारते वक़्त मिलते हल्के
इस तरह
हमारी गीली इच्छाओं का पानी
उड़कर पहुंचा उम्मीदों के बादल तक
हम सबने कुछ नहीं देखा
हमने सिर्फ इतना जाना
मृत्यु को एक दिन
शरीर में से होकर गुज़रने देना होगा
इसमें हर्ज ही क्या
अगर तब तक हम
अपने हिस्से की धूप का मज़ा ले लें ।
तेलंग जी की तीनों कविताएँ पढ़ीं। पर इनमें से धूप का दर्शन में उनका वैचारिक प्रवाह बेहतरीन लगा।
…..in rukhe dino me gahri nami se bharti hui kavitaye…..khaskr tutna-banna…..kuch aaese hi dino ko ji raha hu aajkal…. ya shayad hamesa se….
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सपनो भरी नीन्द अब भी एक सपना है……
इच्छाये गिले कपडे के मानिन्द होते है जिन्हे जिन्दगी की धूप ताउम्र सुखाती है पर इच्छाये सुखने की नाम तक नही लेते है पर धूप कभी मद्म और कभी तेज हो जाती है ………..
तीनों ही रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं यथार्थ से जुड़ी हुई…
कविताये काफी अच्छी हैं
कभी आराम से बैठ कर पूरा ब्लॉग पढना होगा. बहुत आकर्षण है.