अनुनाद

फिलीस्तीनी-अमरीकी कवि सुहीर हम्माद की कविता – चौथी तथा अंतिम किस्त / चयन, अनुवाद तथा प्रस्तुति : यादवेंद्र

अमरीका में

अभी इस वक्त आप जहां खड़े हैं
वह जगह आपकी चुराई हुई है
कारण चाहे जो भी रहा हो – अभी इस वक्त आप जहां यह कविता पढ़ रहे हैं
मैं पक्के यकीन के साथ कह सकती हूं
कि यह चुराई हुई ज़मीन ही है

यह लकोटा भूमि थी यह नवाजो भूमि थी यह क्रीक भूमि थी
थी यह पहले उनकी और अब भी उनकी ही है –
यह सचाई तो बदली ही नहीं कभी
न ही तुमने इस बारे में सोचा कभी भी
तुम तो यही मानते रहे कि
तुम्हारे इस धरती पर क़दम रखने से पहले ही
प्रयाण कर चुका था इस धरती से
आखिरी इंडियन !
या तुम भी जन्मे थे आंशिक तौर पर अपाची ही
यह कविता तुम पर नहीं मढ़ रही है कोई दोष
बल्कि दे रही है एक अवसर
कि कर सकते हो तुम अब भी कुछ शुरू
चाहे वह शाब्दिक स्वीकार क्यों न हो

जहां तुम अभी खड़े हो, देखो वहां से
उत्तर
दक्षिण
पश्चिम
या पूरब – किसी भी दिशा में –
सब ओर अब भी जारी हैं चोरियां
नौकरियों की
रोज़गार की
कहीं से कुछ तो शुरू कर ही दें

चाहे वह शाब्दिक स्वीकार ही क्यों न हो !
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(बोल्ड शब्द अमरीका के मूल निवासी इंडियन लोगों की पहचान के प्रतीक हैं।)

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