अनुनाद

अनुनाद

यह कविता किसी दिशा में नहीं जाती इस पर चढ़ने वाले लोग अपने उतरने की व्यवस्था स्वयं कर लें – अमित श्रीवास्‍तव

इधर दुनिया भर में मची गड़बड़ और ख़राबे के बीच भी भाषा और कविता में साहित्‍य की राजनीति के पुराने पत्‍ते फेंटने का हुनर रखने वाले सभी मशहूर, अपूर्व, अद्भुत इत्‍यादि बताए जा रहे वरिष्‍ठ और कनिष्‍ठ खिलाड़ी चाहें तो इस कविता का डिस्‍क्‍लेमर पढ़ कर वापस लौट जाऍं।  निश्चित रूप से यह भी एक दृश्‍य है, जिसमें कथित मशहूरअपूर्वअद्भुतवरिष्‍ठ-कनिष्‍ठ कवियों-आलोचकों के बनाए कुहासे से बाहर जो कविता तड़पती है, उसे संभव करने वाले युवा कवि भी हमें दिखाई दे जाते हैं। अमित ऐसा ही कवि है। ये दोनों कविताऍं पहले भी अनुनाद पर छपी हैं, पर समकालीन इस दृश्‍य में इन्‍हें बार-बार छापे जाने की जो ज़रूरत बची है, उसका क्‍या कीजे…..
   


   डिस्क्लेमर   

(यह कविता किसी दिशा में नहीं जाती इसपर चढ़ने वाले लोग अपने उतरने की व्यवस्था स्वयं कर लें)

ये अलहदा काम नहीं पर करें कैसे
हम आजाद हैं
चुनने को कि मरें तो ससुरा मरें कैसे

दो टांगो के बीच घुसाकर
नाक झुकाकर कान उठाकर
सर लगाकर पीछे को
गहरी सांस छोड़ दें
गुत्थम-गुत्था दोनों टाँगे
दोनों बाजू गोड़ दें
अकाल मृत्यु आसन करने से पहले भक्तगण
जीने की सभी आशाएं छोड़ दें

कृपया पहली ताक़ीद पर ध्यान दें बार-बार-बार बताया गया कि इस कविता में कोई ऑफर नहीं चल रहा, कहा न, कोई नहीं, इतना भर भी नहीं जितना कि जीने के लिए जीवन

शाम मरियल सी धुवें में
पिटी-पिटाई, टेढ़ी-मेढ़ी
एक लकीर सी
उठती गिरती उजबक चलती
शोर-शोर में प्राइम टाइम के
धड़ाम से गिरती  

सुबह निकलती डूब डूब के
झाडू उछाल देती   
हर दूजे रविवार की चमच्च
बिस्किट निकाल लेती
टूटी-डूबी चाय में
चल बे चल उठ चल बे
कसी जीन है गाय में
पिलेट में धर दो हुंवा हमरी राय में 

जी नहीं, फाइव टू फाइव टू फाइव हमारा टोल फ्री नहीं है, किसी का नहीं है, दिमाग़ न खाएं, अपना सर बचाएं 

तू इसक करता है तो कर मियाँ
पर हिंया नईं
चल फूट रस्ता नाप
मेरे बाप
इधर गोली-शोली आग-वाग
पत्थर बाजी है भरपूर
अम्न का रस्ता इतिहास में घुसता
लंबा चलता
चलता जाता
कहीं नहीं आता कभी नहीं आता

तुझे पेड़ पे चढ़ना आया कि नईं
पानी में सांस लेना
आँख खोल कर सोना
एक क्लिक पर हंसना
एक इशारे पर रोना धोना
तुझे कबर गढ़ना आया कि नईं
अपने मरने की दावत खाना  

जी हाँ लॉजिंग कॉम्प्लीमेंटरी बस अपनी आई डी ले आओ, फूड बिल तो देना ही पड़ेगा जी  

रोटी खायेगा मर साले
सर उठाएगा मर साले
रोली, चन्दन, टीका बस
फ़तवा सोंटा लोटा बस
अब इत्ता तो कर साले
जीना चाहता है तो मर साले

कविता को आख़िरी हिचकी आई है दोस्तों संभाल लेना
चाहो तो अपना अक्स निकाल लेना
थूक लगाकर ज़रा सुखाकर
अपने पिंजरे के बाहर टटका देना
तुम बाशिंदे गुफाओं के
बिल में रहना
पर बाहर नेमप्लेट भी लटका देना

हमारे कस्टमर केयर रिप्रेज़ेन्टेटिव से बात करने के लिए डायल करें नौ या दस या चौवालिस या टू ज़ीरो वन सिक्स या फाइव फोर थ्री या टू फोर फाइव, फर्क नहीं पड़ता, लाइन बिज़ी है तो सुनें ये सिम्फनी
 
नाला झरना एक समान
उगना सड़ना एक समान
हंसना डरना एक समान
गण्डा चिमटा एक समान
जीना-मरना एक शब्द है
सीधा-उल्टा एक समान

लाल लंगोटा
गटई घोंटा
बोल मेरे केंचुए कित्ती मिट्टी
इत्ती मिट्टी

कविता को चुल्लू भर मिट्टी नसीब हुई|

   चुनो   

गालियों और नारों के बीच
चुनो
फतवों और निषेधाज्ञाओं के बीच
चुनो
हत्या और आत्महत्या के बीच

चुनो
अपनी आख़िरी आवाज़
अगला बंकर
जंग खाए ताले
और उलझी बेड़ियों के बीच

चुनो
दरवाज़े चुनो
ये पर्दे फट चुके हैं
ढांपने को कुछ नहीं है
पर चुनो
कि बेशर्म साँसे उधड़ी पड़ी हैं

चुनो भूख चुनो
प्यास चुनो
चुनो बेघर होने के तमाम इंतजामों के बीच
कौन सा बेहतर है

चीख और आंसुओं में
अरदास और प्रार्थनाओं में
घण्टे की पुकार और मुहरों के तिरस्कार में
चुनो

रक्त छायाओं
और सफेद होती परछाइयों में
चुनो
साजिशों को चुनो

हत्यारा चुनो
अपनी सज़ा
अपनी अदालत
चुनो
राम या रहमान
चुनो
अपना इम्तेहान

चुनो
कि चुनने के अलावा
अब कोई और चारा नहीं

बदरंग और बेस्वाद के बीच
उलझन और उदासी के बीच
ठहाकों के बीच अपनी कमजोरियों से एक चुनो

चुनो बंजर आसमान
काली धरती
बेहद शुष्क हवाओं के बीच

बेवा या बलात्कार चुनो

चुनो
तुम चुनने को स्वतन्त्र हो
चुनो कि तुम
अभिशप्त हो
चुनो कि अब तक तुमने चुना नहीं
सुना नहीं
हड्डियों के ढाँचे
खिंची हुई तलवारें
भिंचे हुए जबड़े
फटे हुए नक्शे
झुके तराजू
सुनो इनकी मरी हुई आवाज़ें
सुनो ध्यान से सुनो

जल गई एक किताब के पन्नों की राख़ उँगलियों में लगाकर
चुनो
अपना विपक्ष चुनो

0 thoughts on “यह कविता किसी दिशा में नहीं जाती इस पर चढ़ने वाले लोग अपने उतरने की व्यवस्था स्वयं कर लें – अमित श्रीवास्‍तव”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top