अनुनाद

शमशेर बहादुर सिंह की कविता

शिला का ख़ून पीती थी

शिला का 
ख़ून  पीती थी
वह जड़
जो कि पत्थर थी स्वयं

सीढियां थी बादलों की झूलती
टहनियों-सी

और वह पक्का चबूतरा
ढाल में चिकना :
सुतल था
आत्मा के कल्पतरु का ?
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