अब बच्चा
अब बच्चा
कुछ देख रहा है
कुछ सुन रहा है
कुछ सोच रहा है
क्या वह देख रहा है
उस तरह की चीज़ों को जैसी देखी थीं मोहम्मद ने
एक पहाड़ी गुफा में
खुदा के इलहाम के बाद?
क्या वह सुन रहा है
उन आवाज़ों को
जिन्हें नाज़रेथ के जीसस ने
अपने सिर के ऊपर बजते सुना था
जब उसका बपतिस्मा हुआ था
जार्डन के किनारे?
क्या वह खोया है
विचारों में
जैसे शाक्यमुनि खोये थे बोधिवृक्ष के नीचे?
नहीं!
बच्चा इसमें से कुछ भी नहीं
देख
सुन
और सोच रहा है
यह तो देख
सुन
और सोच रहा है
ऐसा कुछ जिसे कोई दूसरा देख
सुन
और सोच नहीं सकता
कुछ ऐसा
कि मानो एक शांत ओर अनोखा आदमी होने के नाते
ये अकेला ही ले आएगा
बहार
इस दुनिया में
सिर्फ अपने ही दम पर
तभी तो
यह मुस्करा रहा है
एक प्यारी-सी मुस्कान !
अनुवाद – शिरीष कुमार मौर्य
पुनश्च द्वारा प्रकाशित काव्यपुस्तिका से