अनुनाद

नाज़िम हिकमत की दो कवितायेँ

ये अनुवाद किये है हमारे समय के सबसे बेचैन कवि वीरेन डंगवाल ने ………

तर्क

घोड़ी के सिर जैसे आकार वाला यह देश
सुदूर एशिया से चौकडियाँ भरता आता भूमध्य सागर में पसर जाने को
यह देश हमारा है

ख़ून सनीं कलाईँ भिंचे दांत नंगे पैर
धरती गोया एक बेशकीमती कालीन
यह जहन्नुम
यह स्वर्ग हमारा है

उन दरवाज़ों को बंद कर दो जो पराए हैं
वे दुबारा कभी खुले नहीं
आदमी कि आदमी पर गुलामी ख़त्म हो
यह हमारा तर्क है

रहना एक पेड की तरह अकेला मुक्त
एक वन की तरह भाईचारे में
यह बेताबी हमारी है !

अखरोट का पेड

मैं एक अखरोट का पेड हूँ गुल्हान पार्क में
मेरी पत्तियां चपल हैं चपल जैसे पानी में मछलियाँ
मेरी पत्तियां निखालिस हैं
निखालिस जैसे एक रेशमी रूमाल
उठा लो
पोंछो मेरी गुलाब अपनी आंखों में आंसू एक सौ हज़ार

मेरी पत्तियां मेरे हाथ हैं जो हैं एक सौ हज़ार
मैं तुम्हें छूता हूँ एक सौ हज़ार हाथों से
मैं छूता हूँ इस्ताम्बुल को

मेरी पत्तियां मेरी आंखें हैं, मैं देखता हूँ अचरज से
मैं देखता हूँ तुम्हें एक सौ हज़ार आंखों से, मैं देखता हूँ इस्ताम्बुल को

एक हज़ार दिलों की तरह धड़को
धड़को मेरी पत्तियों

मैं एक अखरोट का पेड हूँ गुल्हान पार्क में
न तुम ये बात जानती हो न पुलिस !

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