अनुनाद

नाज़िम हिकमत – कुछ और कवितायेँ

ये कवितायेँ भीं वाया वीरेन डंगवाल …….

रूबाईयात


जो दुनिया तुमने देखी रूमी, वो असल न थी, न कोई छाया वगैरह
यह सीमाहीन है और अनंत, इसका चितेरा नहीं है कोई अल्लाह वगैरह
और सबसे अच्छी रूबाई जो तुम्हारी धधकती देह ने हमारे लिए छोड़ी
वो तो हरगिज़ नहीं जो कहती है – सारी आकृतियाँ है परछाईयाँ वगैरह

न चूम सकूं न प्यार कर सकूं तुम्हारी तस्वीर को
पर मेरे उस शहर में तुम रहती हो रक्त मांस समेत
और तुम्हारा सुर्ख शहद वो
जो निषिद्ध मुझे
तुम्हारी वो बड़ी बड़ी आंखें सचमुच हैं
और बेताब भंवर जैसा तुम्हारा समर्पण
तुम्हारा गोरापन
मैं छू तक नहीं सकता !

0 thoughts on “नाज़िम हिकमत – कुछ और कवितायेँ”

  1. इतना सहज है कि अनुवाद तो लगता ही नहीं,,,,,यह सब तो पहल के क से है या कहीं और से उत्स भी बताओ…

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