अधबना स्वर्ग
हताशा और वेदना स्थगित कर देती हैं
अपने -अपने काम
गिद्ध स्थगित कर देते हैं
अपनी उड़ान
अधीर और उत्सुक रोशनी बह आती है बाहर
यहाँ तक कि प्रेत भी अपना काम छोड़
लेते हैं एक-एक जाम
हमारी तस्वीरें – हिमयुगीन कार्यशालाओं के हमारे वे लाल बनैले पशु
देखते हैं दिन के उजास को
यों हर चीज़ अपने आसपास देखना शुरू कर देती है
यों हर चीज़ अपने आसपास देखना शुरू कर देती है
धूप में हम चलते हैं
सैकड़ों बार
यहाँ हर आदमी एक अधखुला दरवाज़ा है
उसे हरेक आदमी के लिए बने हरेक कमरे तक ले जाता हुआ
हमारे नीचे है एक अन्तहीन मैदान
हमारे नीचे है एक अन्तहीन मैदान
और पानी चमकता हुआ पेड़ों के बीच से –
वह झील मानो एक खिड़की है पृथ्वी के भीतर देखने के वास्ते।
अनुवाद – शिरीष कुमार मौर्य
bahut sundr bhaiya…kvi ke bare me bhi tippni dal diya kren
धन्यवाद प्यारे हरे !
कवि के बारे में पिछली पोस्ट में नोट लगाया था- विश्व कविता वाले लेबल में देख लो !