अजेय हिमाचल के सुदूर इलाके लाहौल में रहने वाले नौजवान कवि हैं। उनकी कवितायें पहल जैसी पत्रिकाओं में छपी हैं। अनुनाद उन्हें अपने साथ पा कर खुश है !
एक नदी
उस में कूद जाने के लिए
एक नदी
उसमें तैरने के लिए
एक नदी
उसमें डूब जाने के लिए।
एक नदी हम सोचें
अपने आकाश और उसकी सूखती हवा के लिए
एक नदी हम खोजें
अपनी धरती
और उसकी तपती मिट्टी के लिए
एक नदी हम पोसें
अपनी ज़िन्दगी
और उसमें गायब हरियाली के लिए।
एक नदी एक मुश्त, अभी
एक चिलचिलाते समय के लिए
और पीते रहें उसे किश्तों में
आहिस्ता – आहिस्ता।
***
कहीं यह आखिरी कविता न हो
दोस्तो, ध्यान से सुनना
आप्त वचनों की तरह
शुद्ध हृदय से बोल रहा हूँ
आखिरी बार।
तमाम जनतांत्रिक माहौल और उदारवादी अहसासों के बावजूद
पता नहीं क्यों डर रहा हूँ
कि इसके बाद कोई कविता नहीं लिखी जाएगी
कि इस के बाद जो कुछ भी लिखा जाएगा
वह होगा
आवेदन
जहाँ तय रहेगा पहले से एक प्रपत्र
तय रहेगीं विवरणों की सीमाएं
छोटे-छोटे कॉलमों में आप केवल `हाँ ´ या `नहीं´ लिख सकेंगे
बड़ी हद `लागू नहीं´ लिख लीजिए
टीप के लिए नहीं बने होंगे हाशिए ।
अथवा होंगी
याचिकाएँ जिन्हें दायर करने के लिए आपकी एक हैसियत चाहिए
और कोई अधिसूचना या
तयशुदा कानूनी शब्दावली में कोई अध्यादेश
जिसे फौरी तौर पर पढ़ने से
लगे कि सचमुच ही जनहित में जारी किया गया है!
इसके बाद कुछ लिखा जाएगा
तो हलफनामे और अनुबंध लिखे जायेंगे
और भनक भी नहीं लगेगी
कि आपने अपने इन हाथों से अपनी कौन सी
ज़रूरी ताकतें रहन लिख दीं!
इसीलिए दोस्तों ध्यान से सुनना
बड़ी मेहनत से लिख रहा हूँ
अपने नाखून छील कर
अपनी ही पीठ पर
गोद रहा हूँ ये तल्ख तेज़ाबी अक्षर।
तुम ध्यान दोगे अगर
तो मेरी दहकती पीठ पर ठंडक उतर आएगी
दूना-चौगुना रक्त दौड़ेगा धमनियों में
स्वस्थ मज्जा से मेरी खोखली रीढ़ भर जाएगी
तुम्हारी सामूहिक उर्जा से आविष्ठ होगा
मेरा स्नायुतंत्र
तन कर सीधी खड़ी हो जाएगी मेरी संक्रमित देह
मौसम की मनमर्जि़यों के खिलाफ
चमकेंगे नए हरूफ मेरी बेचैन छाती पर
यही मौका है, दोस्तो ध्यान से सुनना
तन्मय होकर
कहीं यह आखिरी कविता न हो !
***
अति सुन्दर लिखा है।
अजेय की कविताओं का एक लिंक छोडने की गुस्ताखी कर रहा हूं शिरीष भाई – http://likhoyahanvahan.blogspot.com/2008/07/blog-post_19.html#links
अजेय जितने स्वच्छ मन हैं, उतनी ही सुंदर कविताएं.