अनुनाद

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अफ़ज़ाल अहमद का “एक पागल कुत्ते का नौहा”

(जीवन स्थितियों का इतना गहरा अवसाद, रचना के अनुभव में निहित तनाव की इतनी आवेगपूर्ण लय, इतना ताजगी भरा चाक्षुक बिंब विधान और पैराबल्स, काव्यात्मक तर्क का ऐसा ढांचा और इसके साथ कवि मिजाज में एक खास तरह की बेपरवाहीए अनौपचारिकता और बोहेमियनपन – मेरे मन में यह इच्छा जागी कि क्यों न इन कविताओं को हिंदी के समकालीन साहित्य संसार के सामने लाया जाए ! – विजय कुमार, पहल -45)
एक मज़दूर की हैसियत से
मैंने ज़हर की बोरी
स्टेशन से गोदाम तक उठाई
मेरी पीठ हमेशा के लिए नीली हो गई

एक शरीफ़ आदमी की हैसियत से
मैंने अपनी पीठ को सफ़ेद रंगवा लिया

एक किसान की हैसियत से मैंने एक एकड़ ज़मीन जोती
मेरी पीठ हमेशा के लिए टेढ़ी हो गई

एक शरीफ़ आदमी की हैसियत से मैंने
अपनी रीढ़ की हड्डी निकलवा कर अपनी पीठ
सीधी करवा ली

एक उस्ताद की हैसियत से मुझे
खरिया मिटटी से बनाया गया

एक शरीफ़ आदमी की हैसियत से
ब्लैक बोर्ड से

एक गोरकन की हैसियत से
मुझे लाश से बनाया गया
एक शरीफ़ आदमी की हैसियत से
मरहूम की रूह से

एक शायर की हैसियत से मैंने
एक पागल कुत्ते का नौहा लिखा

एक शरीफ़ आदमी की हैसियत से
उसे पढ़ कर मर गया !
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गोरकन – कब्र खोदने वाला
नौहा – एक तरह का शोकगीत
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फोटो – कबाड़खाने से

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