बिवाई पड़े पांवों में चमरौंधा जूता , मैली – सी धोती और मैला ही कुरता , हल की मूठ थाम -थाम सख्त और खुरदुरे पड़ चुके हाथ और कंधे पर अंगोछा , यह खाका ठेठ हिन्दुस्तानी का नहीं , जनकवि अदम गोंडवी का भी है , जो पेशे से किसान हैं। दिल्ली की चकाचौंध से सैकडों कोस दूर , गोंडा के आटा – परसपुर गाँव में खेती करके जीवन गुजारने वाले इस ‘ जनता के आदमी’ की ग़ज़लें और नज़्में समकालीन हिन्दी साहित्य और निज़ाम के सामने एक चुनौती की तरह दरपेश है। यहाँ उनके कलाम में देखें अपना और हिन्दुस्तानी सर्वहारा का जूझता और झुलसता चेहरा
– सुरेश सलिल
एक
ज़ुल्फ़ – अंगडाई – तबस्सुम – चाँद – आईना -गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर इनका शबाब
पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब
इस सदी की तिश्नगी का ज़ख्म होंठों पर लिए
बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब
डाल पर मजहब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
सभ्यता रजनीश के हम्माम में है बेनक़ाब
चार दिन फुटपाथ के साये में रहकर देखिए
डूबना आसान है आंखों के सागर में जनाब
***
दो
दो
जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
गांव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
रमसुधी की झोपड़ी सरपंच की चौपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में
ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसाल में
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chutiyapanthi mat karo. kuch apni achchi kavitayain do.
badiya kayi aur har badi bat ko besad saral tarike se kah jane wale adam gondavi sahab.ashcharya ki abhi tak koi comment nai aaya
shirish jee main kothevali hoon…aur sirf adam gondvi chacha jee ko hi padha hai..
“जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
गांव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में “
बहुत उम्दा.. बेहतरीन.
प्रस्तुति के लिए आपका आभार.
बहुत अच्छी गज़लें हैं ….. खास तौर पे दूसरी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी. पढ़वाने का शुक्रिया.
बहुत बढ़िया साहब!
तो आप अदम गोंडवी साहब का खज़ाना ले ही आए!
बधाई!!!
अबे जे हो क्या रिया तेरे हियां हिरिया. हटाता क्यों नहीं ऐसी चीज़ों को कमेन्ट बक्से से. अच्छे ख़ासे मूड की ऐसी तैसी फेर दी इन एकाध लोगों ने.
फ़िलहाल. ग़ज़लें बढ़िया छांटी हैं. बढ़िया. किताब भेज दी क्या मौरिया साहब ने?
होने दो अशोक दा !
मैंने सोचा थोड़ा लोकतंत्र चलने दूं !
हमारा कुछ ना जाता इस सबसे ! तुम्हारे ही शब्दों में `हमें क्या काम दुनिया से, हमें ……….. प्यारा है !´
किताब भोत जल्दी स्पीड पोस्ट से भेजी मोरिया साब जी !
हम उनके आभारी हैं !
Mauryaji, kya Adam Gondvi ki baaki kavitayein bhi aap uplabdh karayenge?
— ajit sahi, tehelka, nayi dilli
kavita kosh per adam saheb ka sahitya uplabd hai
"hum kahte sarafa gulmuhar hi zindgi hum gariboon ki nazar me ek kahar hi zindgi." colloquial in lanaguage and heart rendering,ofcourse adam sahab. you r the real adam who guided and leaded the generation of generatios.i m ur nazmi lover,my native is gonda(mankapur)but i m still leaving in allahabad in the shelter of trinity,Ganga,Yamuna,Saraswati where melt and hug each other.i m doing re-search in american literature,while much interested in hindi urdu sanskrit. Dhruv.kr.sing holland hall 28,university of allahabad.
adam saheb ke jaane ke baad shayad ab koyi unki jagah nahi bhar sakta
gondavi saheb hamare hi blok ke rahne wale thye unke na rahne ke baad jo khalipan aaya hai shayad ab usko bharpana sambhaw nahi,,