अनुनाद

उजाड़ में संग्रहालय – चंद्रकांत देवताले

पुराने उम्रदराज़ दरख्तों से छिटकती छालें
कब्र पर उगी ताज़ा घास पर गिरती हैं


अतीत चौकड़ी भरते घायल हिरन की तरह
मुझमें से होते भविष्य में छलाँग लगाता है



मैं उजाड़ में एक संग्रहालय हूँ


हिरन की खाल और एक शाही वाद्य को
चमका रही है उतरती हुयी धूप

पुरानी तस्वीरें मुझ पर तोप की तरह तनी है।


भूख की छायायों और चीखों के टुकडों को दबोच कर
नरभक्षी शेर की तरह सजा -धजा बैठा है जीवित इतिहास



कल सुबह स्वतंत्रता दिवस का झंडा फहराने के बाद
जो कुछ भी कहा जायेगा
उसे बर्दाश्त करने की ताक़त मिले सबको
मैं शायद कुछ ऐसा ही बुदबुदा रहा हूँ !
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0 thoughts on “उजाड़ में संग्रहालय – चंद्रकांत देवताले”

  1. कल सुबह स्वतंत्रता दिवस का झंडा फहराने के बाद
    जो कुछ भी कहा जायेगा
    उसे बर्दाश्त करने की ताक़त मिले सबको
    मैं शायद कुछ ऐसा ही बुदबुदा रहा हूँ !

    -बहुत उम्दा, क्या बात है!

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