अनुनाद

चंद्रकांत देवताले की कविता

अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही



अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही
तो मत करो कुछ ऐसा
कि जो किसी तरह सोये हैं उनकी नींद हराम हो जाए

हो सके तो बनो पहरुए
दुस्वप्नों से बचाने के लिए उन्हें
गाओ कुछ शांत मद्धिम
नींद और पके उनकी जिससे

सोये हुए बच्चे तो नन्हें फ़रिश्ते ही होते हैं
और सोयी हुयी स्त्रियों के चेहरों पर
हम देख ही सकते हैं थके संगीत का विश्राम
और थोड़ा अधिक आदमी होकर देखेंगे तो
नहीं दिखेगा सोये दुश्मन के चेहरे पर भी
दुश्मनी का कोई निशाँ

अगर नींद नहीं आ रही तो
हंसो थोड़ा , झाँकों शब्दों के भीतर
खून की जांच करो अपने –

कहीं ठंडा तो नहीं हुआ ?
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