अनुनाद

पिता की बरसी पर – येहूदा आमीखाई

अपने पिता की बरसी पर
मैं गया
उनके साथियों को देखने
जो दफ़नाए गए थे उन्हीं के साथ एक क़तार में
यही थी
उनके जीवन की स्नातक कक्षा

मुझे याद हैं उनमें से अधिकतर के नाम
जैसे कि एक पिता को
अपने बच्चे को स्कूल लाते हुए याद रहते हैं
उसके दोस्तो के नाम

मेरे पिता
अब भी मुझसे प्यार करते हैं और मैं तो हमेशा ही करता हूं उनसे
इसीलिए मैं कभी नहीं रोता उनके लिए
लेकिन यहां
इस जगह का मान रखने की ख़ातिर ही सही
मैं ला चुका हूं थोड़ी-सी रुलाई अपनी आंखों में
एक नज़दीकी क़ब्र को देखकर

एक बच्चे की क़ब्र –
हमारा नन्हा योसी जब मरा
चार साल का था !

0 thoughts on “पिता की बरसी पर – येहूदा आमीखाई”

  1. हृदय स्पर्शी!!!

    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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