यह कौन नहीं चाहेगा उसको मिले प्यार
यह कौन नहीं चाहेगा भोजन वस्त्र मिले
यह कौन न सोचेगा हो छत सर के ऊपर
बीमार पड़ें तो हो इलाज थोड़ा ढब से
बेटे-बेटी को मिले ठिकाना दुनिया में
कुछ इज़्जत हो, कुछ मान मिले, फल-फूल जायं
गाड़ी में बैठें, जगह मिले, डर भी न लगे
यदि दफ्तर में भी जायें किसी तो न घबराएं
अनजानों से घुल-मिल भी मन में न पछताएं
कुछ चिंताएं भी हों, हां कोई हरज नहीं
पर ऐसी नहीं कि मन उनमें ही गले-घुने
हौसला दिलाने और बरजने आसपास
हों संगी-साथी, अपने प्यारे खूब घने
पापड़-चटनी, आंचा-पांचा, हल्ला-गुल्ला
दो चार जशन भी कभी, कभी कुछ धूम-धांय
जितना सम्भव हो देख सकें इस धरती को
हो सके जहां तक, उतनी दुनिया घूम आयें
यह कौन नहीं चाहेगा?
पर हमने यह कैसा समाज रच डाला है
इसमें जो दमक रहा, शर्तिया काला है
वह कत्ल हो रहा सरेआम चौराहे पर
निर्दोष और सज्जन जो भोला-भाला है
किसने आखिर ऐसा समाज रच डाला है
जिसमें बस वही दमकता है, जो काला है ?
मोटर सफेद वह काली है
वे गाल गुलाबी काले हैं
चिंताकुल चेहरा बुद्धिमान
पोथे कानूनी काले हैं
आटे की थैली काली है
हर सांस विषैली काली है
छत्ता है काली बर्रों का
वह भव्य इमारत काली है
कालेपन की वे संतानें
हैं बिछा रहीं जिन काली इच्छाओं की बिसात
वे अपने कालेपन से हमको घेर रहीं
अपना काला जादू हैं हम पर फेर रही
बोलो तो, कुछ करना भी है
या काला शरबत पीते-पीते मरना है ?
***
आयेंगे, उजले दिन ज़रूर आयेंगे
आतंक सरीखी बिछी हुई हर ओर बर्फ
है हवा कठिन, हड्डी-हड्डी को ठिठृराती
आकाश उगलता अंधकार फिर एक बार
संशय विदीर्ण आत्मा राम की अकुलाती
होगा वह समर, अभी होगा कुछ और बार
तब कहीं मेघ ये छिन्न-भिन्न हो पायेंगे
तहखानों से निकले मोटे-मोटे चूहे
जो लाशों की बदबू फैलाते घूम रहे
हैं कुतर रहे पुरखों की सारी तस्वीरें
चीं-चीं, चिक-चिक की धूम मचाते घूम रहे
पर डरो नहीं, चूहे आखिर चूहे ही हैं
जीवन की महिमा नष्ट नहीं कर पायेंगे
यह रक्तपात यह मारकाट जो मची हुई
लोगों के दिल भरमा देने का ज़रिया है
जो अड़ा हुआ है हमें डराता रस्ते पर
लपटें लेता घनघोर आग का दरिया है
सूखे चेहरे बच्चों के उनकी तरल हंसी
हम याद रखेंगे, पार उसे कर जायेंगे
मै। नहीं तसल्ली झूट-मूट की देता हूं
हर सपने के पीछे सच्चाई होती है
हर दौर कभी तो खत्म हुआ ही करता है
हर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती है
आयें हैं जब चलकर इतने लाख वर्ष
इसके आगे भी चलकर ही जायेंगे
आयेंगे, उजले दिन ज़रूर आयेंगे
***
काला शरबत पीते -पीते नहीं मरेंगे
आस-मिठास बचाने को हर हाल लड़ेंगे
वीरेन दा जैसे कवि जब टेर लगायेंगे
आयेंगे,आयेंगे, उजले दिन भी आयेंगे
बढिया काम हो रहा है शिरीष भाई। जारी रहो। शुभकानाऎं।
जैसी कविताएँ वैसा ही टाईटल। सही जा रहे हो भाई।
dhanywad, gaadhe waqt mein ummeed ka swar jilaye rakhne ke liye
dhanywaad..bas itna hi, gaadhe waqt mein ummeed ka swar jilaye rakhne ke liye